समस्याओं के घाट पर भारतीय मतदाता- श्री विमल कुमार "विनोद" - Teachers of Bihar

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Monday, 5 December 2022

समस्याओं के घाट पर भारतीय मतदाता- श्री विमल कुमार "विनोद"

लोकतंत्र में जनता अपने जन-प्रतिनिधि को अपना बेशकीमती वोट देकर चुनती है।ऐसी स्थिति में एक महत्वपूर्ण प्रश्न उठता है कि आखिर जनता कैसे उम्मीदवार को अपने जीवन का सबसे बड़ा शुभचिंतक समझे,क्योंकि भारतीय शासन एवं राजनीति को जाति,वंश,धर्म, संप्रदाय अपने आगोश में समेटे हुये है।ऐसी विकट परिस्थिति में मतदाता के सामने अच्छे जनप्रतिनिधि का चयन करना बड़ी चुनौतीपूर्ण कार्य के रूप में उभर कर आती है,क्योंकि चुनाव के समय घर-घर जाकर वोट मांगने वाले जनता के सेवक, चुनाव जीतने के बाद जनता के सेवक नहीं बल्कि जनता के मालिक समझने लगते हैं,जो कि एक विकट समस्या के रूप में नजर आने लगती है।ऐसी परिस्थिति में हमें मतदान तो अवश्य करना चाहिये लेकिन जाति,धर्म,वंश,संप्रदाय तथा नोटों के बंडल के लालच से उपर हटकर,"सकारात्मक सोच तथा अंतरात्मा की आवाज पर"अपने जनप्रतिनिधि को वोट देना है।

भारत में लोकतंत्रात्मक शासन पद्धति पायी जाती है जहाँ जनता अपने जनप्रतिनिधि को वोट देकर पाँच वर्षों के लिये चुनती है।  वयस्क मताधिकार के आधार पर प्रत्येक भारतीय मतदाता को जिन्होंने 18 वर्ष की उम्र प्राप्त कर ली है बिना किसी जाति,धर्म लिंग,वंश ,पेशा,संप्रदाय के भेदभाव किये ही मत देने का अधिकार प्रदान कर दिये जाते हैं।

 लोकतंत्र में जनता अपना कीमती मत देकर अपने जन --प्रतिनिधि को चुनती है।मतदान के समय चुनाव में खड़े प्रत्याशी अपने आप को कुशल,ईमानदार, शिक्षित,समाजसेवी,कर्मठ कहते हुए जनता से वोट मांगने जाते हैं तथा जनता की समस्याओं का वास्तविक उद्धार कर्ता कहकर वोट मांगते हैं।लाचार विवश जनता जो कि लगातार गरीबी,बेरोजगारी, भूखमरी ,महंगाई जैसी समस्याओं से जूझ रही है,उन नेताओं के लंबे-लंबे भाषणों के शब्द जाल में उलझ कर अपना बहुमूल्य वोट देकर उसमें उलझ जाती है,जो कि अपने आप में एक समस्या है।

 कल तक चुनाव के दिनों में  जो कर्मठ,जुझारू,समाजसेवी प्रत्याशी घर-घर जाकर मतदाताओं को चाचा,भैया,माता, दीदी कहकर वोट लेने का नाटक कर रही थी आज उन नेताओं का दर्शन होना भी दुर्लभ हो चुका है। शायद जनता को ऐसा महसूस होता है कि पुनःपाँच वर्षों के बाद  ही पुनः गरीबों के नेता का पदार्पण हो पायेगा।जनता यही सोचकर अपनी बदनसीबी पर पश्चाताप करती हुई नजर आती है।

आज के संदर्भ में जब मैंने एक राजनीतिक चिंतक होने के नाते यह जानने का प्रयास किया कि आखिर सरकारी,गैर सरकारी  संगठनों के लगातार मतदाताओं को जागरूक करने के बाबजूद भी मतदान का प्रतिशत कुछ मतदान केंद्रों को छोड़कर बाकी में 65-70% से आगे नहीं बढ़ पा रहा है, तो मुझे ऐसा लगा कि आज भी जनता गरीबी,महंगाई, बेरोजगारी,पेयजल की समस्या, सिंचाई की समस्या आदि से निजात पाने में असफल रही है।मुझे तो  ऐसा लग रहा है कि सांसद के द्वारा गोद लिए गये आदर्श ग्राम पंचायत में भी तालाब जीर्णोद्धार की आस लगाये रह गये।सांसद द्वारा गोद लिए गये आदर्श ग्राम पंचायत में न तो शिक्षा के क्षेत्र में विकास हुआ और न ही सिंचाई के साधनों का विकास हुआ,न ही शत-प्रतिशत खुले में शौच से मुक्ति हो सकी। मुझे लगता है कि आज बहुत जागरूक किये जाने के बाबजूद भी जनता को चुनाव में भाग लेने  से बहुत मतलब नहीं रह गया है।यदि चुनाव में भाग ले रहे प्रत्याशी या राजनीतिक दलों के लोग मतदाताओं को जागरूक न करे तो लगता है चुनाव का प्रतिशत का ग्राफ बहुत नीचे चला जायेगा क्योंकि आज भी जनता समस्या के घाट पर ठीक वैसा ही खड़ा है, जैसा कि एक मुन्ना किसी व्यक्ति को मामा कहकर गंगा के  घाट पर ले जाता है।जब वह व्यक्ति गंगा में डुबकी लगाता है,उसी समय वह मुन्ना मामा का सारा समान लेकर फरार हो जाता है।जिसके बाद वह व्यक्ति गमछा लपेट कर लोगों से पूछता ही रह जाता है कि किसी ने मेरे मुन्ना रूपी नेता को देखा है जो कि कल  हाथ जोड़कर मुझे चाचा कहते हुये वोट मांग रहा था और जीतने के बाद में गमछा पहनकर समस्याओं के घाट पर ही खड़ा रह गया और वह पाँच वर्षों तक मुझे पुनः देखने भी नहीं आया।

     चुनाव के इस महापर्व के शुभ अवसर पर राजनीति शास्त्र के शिक्षक,चिंतक लेखक होने के नाते आप सबों से मेरी करबद्ध प्रार्थना है कि आप मतदान के दिन अपने-अपने मतदान केंद्रों पर जाकर अपना मतदान अवश्य करें ताकि सपनों के सुन्दर भारत के निर्माण से आप जुड़े रह सकें।

    समस्यायें तो प्रत्येक व्यक्ति के जीवन में आती ही रहती हैं।हर समस्या अपने आप में एक समाधान है।सरकार प्रयासरत है लोगों के विकास के लिये,इसलिये सकारात्मक सोच विकसित करके अपनी अंतरात्मा के आवाज पर मतदान करके लोकतंत्र के  महापर्व का आनंद उठाने का अनुरोध करते हुये आने वाले कल की बहुत सारी शुभकामनायें।


आलेख साभार-श्री विमल कुमार

"विनोद"प्रभारी प्रधानाध्यापक राज्य संपोषित उच्च विद्यालय

पंजवारा,बांका(बिहार)।

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