कला शिक्षा का अभिन्न अंग- श्री विमल कुमार "विनोद" - Teachers of Bihar

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Thursday, 29 December 2022

कला शिक्षा का अभिन्न अंग- श्री विमल कुमार "विनोद"

कला का अर्थ अपने मन और आत्मा में छुपी हुई भाव को प्रकट करना है।अर्थात मनऔर आत्मा में छुपी हुयी भाव का मन-मस्तिष्क के अंदर में किसी चीज के बारे में जो द्वन्द होता है,उसे कला कहते हैं। कला संस्कृत भाषा का शब्द है,जिसे फ्रेंच भाषा में "Art" तथा लैटिन भाषा में"Ortim" कहते हैं जिसका साधारण अर्थ है,प्रकट करना,बनाना,पैदा करना या तैयार करना।इसके अंतर्गत  शारीरिक या मानसिक कौशल, हुनर का प्रयोग किसी कृत्रिम चीज के निर्माण में किया जाय वही कला है।इसके अलावे कला का अर्थ अमूर्त चीज का मूर्त रूप में प्रकटीकरण करना है। कला शिक्षण पाठ्यचर्या का अभिन्न हिस्सा है।यह शिक्षा मुख्यतः दो तथ्यों पर आधारित है

(1)प्रत्येक विद्यार्थी अनेकों छुपी हुई सृजनात्मक योग्यताओं से परिपूर्ण होता है,तथा

(2)कला शिक्षा बालक की सृजनात्मकता योग्यताओंं को परिपूर्ण करने में सहायक होता है।

कला के प्रकार-कला मुख्य रूप से दो प्रकार के होते हैं-

(1)लोक कला(Folk Art)-लोक कला स्थानीय सभ्यता,संस्कृति को अपने चित्र,नृत्य,संगीत के माध्यम से प्रस्तुत करने वाले विधा को लोक कला कहा जाता है,जो कि अलग-अलग क्षेत्रों की अलग-अलग प्रकार की होती है।

(2)Fine Art(ललित कला)-जो सौंदर्य की भावना को जागृत करती है।साथ ही यह कला सेवक  मूलक(राज दरबार में कला-कृतियों के लिये चित्रकार) होते थे।यह ललित कला में आता है। इन दोनों कलाओं को पुनः अलग-अलग भागों में वर्णन किया जा रहा है।

(1) नृत्य कला-जिसमें लोग गीत को अपने शारीरिक भाव-भंगिमाओं के द्वारा प्रस्तुत करते हैं।

(2)मूर्तिकला-इसके अंतर्गत लोग किसी भी अमूर्त या मूर्त चीज का सृजन करके एक जीवंत रूप प्रदान करने की कोशिश करते हैं।

(3)ग्राफिक्स कला-जिसमें डिजाइन को सही-सही माप कर बनाया जाता है

(4)वाणिज्य कला-वाणिज्य कला का अर्थ है कि जब किसी भी तरह के कला को तैयार करके उसको व्यवसाय का रूप प्रदान कर दिया जाता है।

(5)वस्तुकला-भवन निर्माण करने में जिस कला का प्रयोग किया जाता है।

(6)शिल्प कला- कपड़ों पर बनायी जाने वाली कला को शिल्प कला कहा जाता है,जिसमें तरह-तरह के चित्रों को बनाया जाता हैं। 

कला सीखने का तरीका-सर्व  प्रथम यदि चित्रकला की बात करें तो उसके लिये कुछ सामग्री की जरूरत होती है,जैसे-पेंसिल जैसे-H.B, 2B, 3B,4B इत्यादि का इस्तेमाल किया जाता है।इसके साथ लकड़ी का कोयला जिसे चारकोल कहा जाता है।इसके अलावे स्केल,रबड़,इरेजर, कैनवास,चित्रांकन पेपर इत्यादि की जरूरत होती है। चित्रकला का प्रथम गुरू प्रकृति को माना जाता है,क्योंकि प्रकृति से बहुत कुछ सीखने को मिलता है।जब पेपर पर चित्रांकन करते हैं  तो किसी "Still life"(मृत चीज) को जीवंत रूप प्रदान करते हैं।तत्पश्चात प्राकृतिक दृश्य को प्रदर्शित करते है।

रेखाचित्र-- कोई भी चित्र को समझने के लिये रेखा को समझना अतिआवश्यक है,जैसे सीधी रेखा,टेढ़ी-मेढ़ी रेखा,वक्र रेखा आदि।

कला से सीखना-सीखने के बहुत से तरीके हैं-करके सीखना,खेल-खेल में सीखना,प्रकृति से सीखना के साथ-साथ विद्यार्थी कला के द्वारा भी सीखते हैं।कला एक प्रकार की अनुकृति है,जो कि गीत,चित्र,अभिनय,जिसे किसी भी कृति से अनुकृति किया जाता है।वह हमारा इतिहास होता है,हमारी परंपरा होती हैं और कुछ कलायें ऐसी होती है जिसमें कलाकार समाज को ऐसी सीख देने के लिये भविष्य निर्माण की भी कल्पना करते हैं,ताकि हमारे बच्चे कैसे कला से सीखेंगे।

बच्चे कैसे कला सीखेंगे- 

       जहाँ तक विद्यार्थियों के कला सीखने की बात है,तो किसी भी चीज को यदि कलात्मक तरीके से सीखाया जाय तो बच्चे सीखने मेंअधिक रूचि हैं। उदाहरण-दस बच्चे हैं,जिसे खेल में मन लग रहा है,तो हम दसों बच्चा को उसकी कल्पना शक्ति जागृत करने के लिये नाम के जगह पर क्रमशः एक,दो,तीन, चार से लेकर दस तक कोडिंग कर देंगे। पुनः दूसरे चक्र में उनके नाम के जगह पर क्रमशः तोता,मैना,मुर्गा,  बिल्ली,शेर इत्यादि नाम रख देंगे।अगले चरण में उन बच्चों को जो जानवर का नाम जिसको दिया गया है,उसकी आवाज निकालने कहेंगे तथा उसके चलने का तरीका इन बच्चों को बारी-बारी से कहेंगे तो बच्चा अधिक आनंद उठायेगा।इस तरह से बच्चों में प्रेरण,सृजन,वाचन,कल्पना,अभिनय इत्यादि का विकास होता है।

अंत में कहा जा सकता है कि कला के द्वारा बच्चे किसी चीज को बहुत रूचि,एकाग्रता,और तन्मयता के साथ-साथ सीखते हैं। कला समावेशित सीखना ( Art Integrated learning) क्या है-

    विद्यालयों में विभिन्न पाठयक्रम के  विषय वस्तु साथ-साथ जब कला को भी जोड़ कर बच्चों को रोचकपूर्ण ढंग से सीखाने को हम समेकित शिक्षा कह सकते हैं।विद्यालय के पाठ्यक्रम में भाषा,गणित,सामाजिक अध्ययन जैसे विषयों के साथ यदि चला को जोड़ दिया जाय तो वह अधिक रूचि कर होगा।जैसे-गणित को सीखाते समय यदि कुछ आम के चित्र को दिखाकर यदि पूछा जाय कि कितने आम हैं तो आम देखकर उसकी रूचि बढ़ेगी तथा उससे उसको किसी भी प्रकार के गणित को सीखने में आसानी होगी। उसी तरह भूगोल विषय को सीखाते समय यदि पहाड़,नदी,नाले या किसी जीव के तस्वीर को जोड़कर सीखाया जाय तो बच्चे आसानी से सीख सकते हैं।कई बार कला विज्ञान की अवधारणा को आसानी तथा सरलता से सपष्ट कर सकती है।

अमूर्त अवधारणाओं को विभिन्न कला रूपों का उपयोग करके समझने में मूर्त और आसान रूप दिया जा सकता है। किसी भी विषय को कला के माध्यम से बच्चों को सीखाने से बच्चों को उस चीज के बारे में विस्तृत जानकारी मिलती है,जैसे आम के बारे में यदि बताया जाय तो विस्तृत क से पता चलेगा कि पहले मंजर था,फिर टिकौला हुआ,पुनःआगे चलकर आम परिपक्व होकर पक गया।ऐसे संपूर्ण या समग्र शिक्षण कहा जाता है। हमारे विद्यालय में सीखने-सीखाने की प्रक्रिया में यदि कला समेकित शिक्षा का समावेश हो जाय तो न केवल बच्चों के लिये रूचिकर होगा,बल्कि शिक्षक-शिक्षिकाओं के लिये भी इस तरह की शिक्षा बाल केन्द्रित के साथ-साथ  आनंददायक हो जायेगी।

इसके अलावे कला के साथ ज्ञान की प्राप्ति होती है।साथ ही प्रत्येक व्यक्ति को मनोरंजन अच्छा लगता है और मनोरंजन को पाने के लिये एकाग्रचित्त होता है,जिज्ञासा बढ़ती है।बच्चे कला के द्वारा अपने विषय को जल्दी सीख जाते हैं।


आलेख साभार-श्री विमल कुमार "विनोद" 

प्रधानाध्यापक राज्य संपोषित उच्च विद्यालय पंजवारा बांका(बिहार

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