झूठ की पराकाष्ठा-- श्री विमल कुमार "विनोद" - Teachers of Bihar

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Thursday, 29 December 2022

झूठ की पराकाष्ठा-- श्री विमल कुमार "विनोद"

झूठ एक ज्ञात असत्य है जिसे सत्य के रूप में व्यक्त किया जाता है।झूठ एक असत्य बयान के रूप में दिया गया एक प्रकार का धोखा है,जो विशेष रूप से किसी को धोखा देने की मंशा से बोला जाता है और प्रायः जिसका उद्देश्य होता है किसी राज या प्रतिष्ठा को बरकरार रखना,किसी की भावनाओं की रक्षा करना या सजा या किसी के द्वारा किये गये कार्य की प्रतिक्रिया से बचना।

झूठ बोलने का तात्पर्य कुछ ऐसा कहने से होता है जो व्यक्ति जानता है कि गलत या जिसकी सत्यता पर व्यक्ति ईमानदारी से विश्वास नहीं करता और यह इस इरादे से कहा जाता है कि व्यक्ति उसे सत्य मानेगा। एक व्यक्ति जो कि बार-बार अपनी झूठ को सच में बदलने का प्रयास करता है,झूठ भी ऐसा कि देखने में उपर से सच लगता है, लेकिन जब बार-बार कोई झूठ बोलने लगता है तो अंत में लोग "सच को भी झूठ मानने लगता है।" झूठ तो झूठ ही होता है,झूठ कभी भी सच की बराबरी नहीं कर सकता है। "झूठ की पराकाष्ठा"एक ऐसे व्यक्ति की कहानी है जो कि बार-बार अपनी झूठ को सच्चाई में बदलने की कोशिश कर रहा था, लेकिन अगला को अंत में लग रहा था कि यह झूठ बोलकर सच्चाई का गला घोंटने का प्रयास कर रहा है।अगला चूँकि अपनी परेशानी से मजबूर था,इसलिये वह झूठ बोलने वाले का विरोध नहीं कर पा रहा था,लेकिन अंत में जब वह सोच लिया कि मेरा काम हो या न हो झूठ का विरोध करना ही है तो वह अपने काम में सफल हो गया।

झूठ जिन्दगी का सबसे बेकार चीज होती है क्योंकि झूठ बोलने से लोगों की प्रतिष्ठा समाज में गिरती है,मनुष्य का मनोबल गिरता है,जीवन में धोखा मिलती है,लोग नफरत की दृष्टि से देखते हैं।झूठ बोलना जीवन में लोगों की मान-मर्यादा,सम्मान,विश्वास सभी चीजों पर आघात पहुँचाता है।

एक व्यापारी अपने ग्राहक की समस्या का समाधान कराने की झूठी  दिलासा देता है,लेकिन खरा नहीं उतरने पर ग्राहक की उम्मीद टूट जाती है,इसी पर मेरा मानना है कि"झूठ बोलकर भरोसा तोड़ने से अच्छा है कि सच बोलकर रिश्ता तोड़ लिया जाये,क्योंकि रिश्ता फिर जुड़ जायेगा लेकिन भरोसा कभी नहीं जुड़ सकता है।"

झूठ की कमजोरी होती है कि  इसलिये वह बिक जाता है क्योंकि सच को खरीदने की सबको औकात नहीं होती है। झूठ बोलने वाला झूठ बोलते हुये हार जाता है क्योंकि,"झूठ बोलना पहली बार आसान हो सकता है,पर बाद में सिर्फ परेशानी देता है और सच पहली बार बोलना कठिन होता है पर बाद में आराम देता है"।

अंत में हम कह सकते हैं कि,"झूठ के नाव सच के समंदर में चलते नहीं,झूठ बोलने वाले अपना स्वभाव बदलते नहीं"।इसलिये किसी भी व्यक्ति को कम-से-कम झूठ बोलने का प्रयास करना चाहिये ताकि समाज में आपकी मान-मर्यादा,इज्ज़त,प्रतिष्ठा सभी चीज बची रह सके।


आलेख साभार-श्री विमल कुमार

"विनोद"प्रभारी प्रधानाध्यापक राज्य संपोषित उच्च विद्यालय

पंजवारा,बांका(बिहार)।

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