संसाधन का अर्थ होता है वैसा साधन जिसका बार-बार प्रयोग किया जा सके।प्रकृति ने मनुष्यों को हवा, जल,भूमि,खनिज,जंगल, जैव-विविधता जैसे अनेकों संसाधन मुफ्त में प्रदान किये हैं। जिसमें मनुष्य सबसे कामयाब तथा विवेकशील संसाधन है तथा संपूर्ण विश्व का विकास मनुष्य जैसे संसाधन की गतिविधियों पर निर्भर करता है।
मनुष्य का जन्म सभी जीवों में श्रेष्ठ माना जाता है ,क्योंकि यह एक क्रियाशील प्राणी है।मनुष्य ही एक ऐसा जीव तथा संसाधन है जो पृथ्वी पर घटित होने वाली सभी गतिविधियों के लिए मुख्य रूप से उत्तरदायी है। विश्व में जितने भी कार्य होते हैं सभी मनुष्य के द्वारा प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से किये जाते हैं,इसलिए मनुष्य को अपने जीवन का सदुपयोग करना चाहिए।इनको अपना जीवन सुन्दर तथा उत्पादकता पूर्ण कार्यों के लिये व्यतीत करना चाहिए।चूँकि संसाधनों के प्रयोग किये जाने से उत्पादन में वृद्धि होगी और उत्पादन में वृद्धि होने से मनुष्य तथा देश की तरक्की होगी।
आज के समय में लोगों की मानसिकता ऐसी हो गई है कि जितनी कम-से-कम कार्य करके अधिक-से-अधिक लाभ मिल सके,जिसके कारण बेरोजगारी बढ़ती जा रही है तथा देश की अर्थव्यवस्था पर बेरोजगार लोगों का खर्च वहन करने का भार पड़ता है।मध्यम वर्गीय लोग जिनके बाप-दादा रईसजादा रह चुके हैं उनकी स्थिति सबसे दयनीय बनी हुई है क्योंकि इनको काम करने में शर्म आती है।इनकी आदत सिर्फ लंबे-लंबे भाषण देना, बेकार का समय बर्बाद करना तथा काम करने से जी चुराना रहा है जहाँ पर मनुष्य रूपी संसाधन का उपयोग नहीं हो पाता है तथा धीरे-धीरे नष्ट होता जाता है।चूँकि जब लोगों को बैठकर खाना मिल जाय तो फिर कार्य करने की क्या आवश्यकता रह जाती है।मनुष्य रूपी संसाधन के पतन के लिये या लोगों को कामचोर बना देने के लिये सरकारी महकमा,समाज तथा धार्मिक अंधविश्वास भी मनुष्य जैसे संसाधन की गतिविधियों के विलुप्तिकरण के लिये उत्तरदायी है।
(1)सरकारी नीति-आज लोक प्रशासन जनता की सेवा पालने के पूर्व से लेकर मृत्यु के बाद तक करती है।ऐसा करना भी चाहिये लेकिन अपना वोट बैंक की राजनीति के लिये सरकार के द्वारा काम करने वाले लोगों को भी सस्ते दर पर या मुफ्त में अनाज उपलब्ध कराकर लोगों को बेरोजगारों की श्रेणी में लाकर खड़ा कर देता है,जहाँ पर काम करने वाले श्रमिकों के उर्जा का ह्रास होता हुआ नजर आता है। आप लोगों को सुविधा दीजिये लेकिन इतनी सुविधा न दे दीजिये कि उसके अंदर काम करने की क्षमता का पतन हो जाय।
(2)समाज-समाज में कुछ आलसी लोगों के द्वारा दूसरों को भी बेरोजगारी धंधा वाले चीजों में उलझाकर रखा जाता है ताकि रईसजादा लोगों के साथ-साथ गरीब कर्मठ लोगों के संसाधनों का प्रयोग न किया जा सके।इससे समाज में बेरोजगारी फैलती है तथा देश के उत्पादन पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है।उदाहरण के तौर पर कहा जा सकता है कि महिला संगठन को सरकार के द्वारा रोजगार मुहैया कराकर उनमें कौशल विकास कराकर कामयाब बना दिया गया है,जिसके द्वारा वह अपना घर- परिवार चलाने का प्रयास कर आने वाले समय में इस पुरुष प्रधान समाज के सामने चुनौती प्रस्तुत की है।इसलिए समाज को ऐसी कर्मठ महिलाओं से शिक्षा लेनी चाहिए।
(3) धार्मिक अंधविश्वास- समाज में व्याप्त धार्मिकअंधविश्वास ने भी मनुष्य रूपी उपयोगी संसाधन को नष्ट करने का प्रयास किया है। ऐसा देखा जाता है कि लोगों ने धार्मिक अंधविश्वास को विकसित करके देश के वैसे लोग जो कि श्रम करके देश का उत्पादन बढ़ा सकते हैं को छोड़कर धार्मिक स्थलों के पास बैठकर मुफ्त का रूपया कमाने का साधन बना लिया है जो कि पर्व त्योहार के समय उसके नाम पर धन कमाने तथा भीख मांगने का तरीका बना कर अपने कार्य करने की क्षमता को नष्ट करने का प्रयास किया है।
इस प्रकार हम कह सकते हैं कि मनुष्य एक आवश्यक संसाधन है जिसका सही रूप से प्रयोग करके देश का उत्पादन तथा विकास को बढ़ावा देने का प्रयास करना चाहिए ताकि लोगों का अपना तथा देश एवं विश्व का विकास हो सके ।
आलेख साभार-श्री विमल कुमार "विनोद"
प्रभारी प्रधानाध्यापक राज्य संपोषित उच्च विद्यालय पंजवारा
बांका(बिहार)।

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