भौतिकता को जीवन से कोसों दूर भगाकर।
आनंदमय जीवन जीने का पाठ- पढ़ाया।l
अपने जिंदगी में सदा जीवन उच्च विचार अपनाकर।
वैचारिक बल पर हमें सुखमय जीना सिखाया।।
वेदों की ओर वापस लोटो नारा देकर।
हमें गौरवशाली अतीत से अवगत कराया।
ऐसे थे अपने स्वामी विवेकानंद जी का समर्पण।
मातृभूमि के लिए किये पूरे जीवन अर्पण।। (स्वलिखित)
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पुरानी कहावत है अच्छे लोगों की आवश्यकता ईश्वर को भी होती है। इसलिए वे ईश्वर के जल्द ही प्यारे हो जातें हैं।अगर दारा शिकोह औरंगजेब से हारकर मृत्यु को प्राप्त न होते तो भारत का इतिहास आज दुसरा होता। सुभाष चन्द्र बोस जैसे महत्वाकांक्षी नेता पुरी जिंदगी जीते तो आजाद भारत को अधकचरे नेताओं से नहीं जुझना पड़ता। भगतसिंह जैसे लोग जीवित रहते तो भारत को चीन से हार का मुंह नहीं देखना पड़ता।
आज स्वामी विवेकानंद अगर पुरी जिंदगी जीते तो समस्त संसार को अपने प्रभाव से एक मानव धर्म में समाहित कर देते।
आज हम बात कर रहे हैं सन् 1863 में कोलकाता में जन्मे स्वामी विवेकानंद की जो मात्र 39 वर्ष की अवस्था में मृत्यु को प्राप्त हो गये। रामकृष्ण परमहंस के परम् शिष्य वेदांत के विख्यात और प्रभावशाली आध्यात्मिक गुरु जिनका वास्तविक नाम नरेंद्र नाथ दत्त था। उन्होंने शिकागो के विश्व धर्म सम्मेलन में भारत का प्रतिनिधित्व किया। उस समय भारत गुलाम देश था,उनको बोलने के लिए मात्र २ मिनट दिया गया कि भारत के लोग इससे ज्यादा नहीं बोल पायेंगे , परंतु उन्होंने ऐसी ओजस्वी वाणी कहीं जिससे साबित हो गया कि भारत वैचारिक रूप से विश्व का गुरु है।अपने ज्ञान से उन्होंने पुरी दुनिया को भारत के सनातनी विचार धारा का मुरीद बना दिया।
उनकी विशिष्ट दर्शन जिसने जीवन के हरेक पहलू को छुआ। उनके दर्शन में जिंदगी के हरेक समस्या का समाधान है। आज के युवाओं को उनसे प्रेरणा लेने की सख्त जरूरत है जिस प्रकार विपरीत परिस्थितियों में उन्होंने भारत का सिर ऊंचा किया। वैसे युवाओं को भी करना चाहिए।
एक बार बात है, विवेकानंद समारोह के लिए विदेश ग्रे थे। उनके द्वारा दिये गये वक्तव्य से एक विदेशी महिला प्रभावित हुईं और वह बोली मैं आपसे शादी करना चाहता हूं ताकि मुझे आप जैसा पुत्र प्राप्त हो। इसपर स्वामी विवेकानंद बोले के , मैं संन्यासी हूं भला मैं शादी कैसे कर सकता हूं परंतु आप अगर चाहोगी तो मुझे अपना पुत्र बना लो। इससे मेरा संन्यास भी न टुटेगा और आपकों मेरे जैसा पुत्र भी मिल जायेगा।यह बात सुनते ही वह विदेशों महिला इनके चरणों में गिर गई और बोली कि आप धन्य है। ईश्वर के समान है।जो किसी भी परिस्थिति में अपने धर्म मार्ग से विचलित नहीं होते।
युवा पीढ़ी को भी विपरीत परिस्थितियों का बहाना नहीं बनाना चाहिए उन्हें अपनी और देश की पहचान बनानी ही होगी। ।उठो,जागो,और तब तक नहीं रूको जब तक लक्ष्य प्राप्ति ना हो जाए।राष्ट्रीय युवा दिवस की शुभकामनाएं।
रणजीत कुशवाहा
प्राथमिक कन्या विद्यालय लक्ष्मीपुर रोसड़ा समस्तीपुर
(बिहार)

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