🧏🏽♂️क्या पेड़, तने हुए तने पर सजी-धजी पत्ती, खिले हुए पुष्प व लदे हुए फलों का सिर्फ़ एक नाम है ?
या इससे कुछ इतर ..... विचारों के प्रवाह का, है एक ध्येय अथवा इसे जाता है धरा के आधार का श्रेय।
🌴पेड़
तेरे तने हुए तन पे लगे हुए अंग का रंग निराला है। उसपे चढ़े हुए छाल सिर्फ़ तेरा रक्षक नहीं वह औषधी बन बेहाल जीवों का बन जाता सहारा है। तू अनमोल है इस धरा के हर जीव ने स्वीकारा है।
तेरे तन पे बड़े सलीके से लगी हुई हरी-भरी पत्ती की बत्ती से इस जहां के हर जीव के जीवन में उजियारा है। मौसम के मिजाज़ से तेरे गिरते-उगते पत्ती आसक्ति से कर के मुक्ति हर इंसान को नूतन पैगाम का देता तराना है।
यूँ ही नहीं खड़ा है तेरा यह तन
माँ भारती को करके नमन, जब तू मिट्टी में जकड़ता है अपना जड़; वह करता है पवन के असर को बेअसर, तब तेरे तन के तेज की दिखती है चमक। कुछ यूँ ही मानव मन जब संस्कृति से रहता है संबद्ध, फिर पल-पल महसूस होती है उसकी महक और कयामत तक रहती है उसकी धमक ।
वायु के लय पे
तन से लिपटी हुई नृत्य करती पत्ती, चाहे तन से विलग हुई सुख कर चूर हुई धरा के आँचल में अठखेलियां कर रही पत्ती;
मानव जीवन के हर झंझावात में, सुख के साथ में, दुख के हाथ में, प्रसन्न मिजाज़ से मस्ती की किस्ती को आगे बढ़ाने के भाव को यह देती रहती है शक्ति।
🪷पुष्प की मादकता से हर कोई नहाता है । उससे चली हुई तीर जब नैनो से होकर दिल में समाता है । रोम-रोम ताजगी का पैगाम दे जाता है । फिर दिमाग की दरिया से यह उबाल आता है ; मानव मन यह बार बार कहता है, "हे मानव; यदि तू स्नेह, शांति का सायरन नहीं बजा सकता है तो फिर इस जहां में तेरे जनाजे का मूल्य कहां रह जाता है?"
तेरे मेरे के भाव को तू मिटाता है। मैं छोड़ देता वह तू ले जाता है। तेरे से निकली वायु मुझमें समा जाता है। अपने संग सबके लिए आहार तू बनाता है। यूँ जीवन चक्र का आधार बन जाता है। "प्रत्येक जीव सबका मीत" मानव मन में यह बैठा जाता है। सारे जहां को बंधन के क्रंदन से मुक्त कर देता है।
🌤️सूर्य का ताप हो या बादल का कहर, चाहे दिखाए तुफान अपना तेवर, तुम पर न पड़ता है कोई असर; तू आसमा के नीचे रह करता सहन, पीता रहता सबका जहर और संदेश देता सबके जेहन, "हलाहल से भरा है यह भूवन पर ना भटके तेरा कदम। मिलती न मंजिल बिन अर्पण।"
🍒अजीबोगरीब मौसम के साथ तू, जब दिन महीने साल खपाता है, तब तेरी टहनी की फूनगी पे फल खिलखिलाता है। यह औरों के अरमान जब पूरा कर जाता है, तब तेरी पीढ़ी आगे गतिमान हो पाता है । यूं ही नहीं मिलती है मंजिल किसी को बड़ी नेक नियति से हमें समझा जाता है। सम्पत्ति नहीं बढ़ती है संचय से, सम्मान हमें मिलती है समर्पण से यूँ परोपकार का भाव सब में जगा जाता है।
मनोज कुमार
शिक्षक
रा.आ.चौ.उ.म.वि.धानेगोरौल प्रखंड गोरौल जिला वैशाली

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