मजदूर दिवस: सूक्ष्म अवलोकन-देव कांत मिश्र 'दिव्य' - Teachers of Bihar

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Monday, 1 May 2023

मजदूर दिवस: सूक्ष्म अवलोकन-देव कांत मिश्र 'दिव्य'


मजदूर दिवस प्रत्येक वर्ष १ मई को मनाया जाता है। इस दिवस का सूक्ष्म अवलोकन करने के पहले मजदूर शब्द पर एक दृष्टि डालना उचित जान पड़ता है। मजदूर का शाब्दिक अर्थ है -श्रमिक, दिहाड़ी पर काम करने वाला, पैसे पर शारीरिक श्रम करने वाला व्यक्ति, अपनी मेहनत से जीविका कमाने वाला कोई आदमी इत्यादि। कहने का तात्पर्य है शारीरिक बल+ मस्तिष्क कार्य+ प्रयास= मजदूर अर्थात् अपनी मानवीय शक्ति के द्वारा जिसमें दिमागी कार्य, शारीरिक शक्ति और निरंतर प्रयास निहित है से जो कार्य सम्पन्न करता है वह मजदूर है। कल- कारखानों में काम करने वाले, इमारत बनाने वाले, बोझ ढोने वाले या ऑफिस में काम करने वाले बाबू भी मजदूर के अंतर्गत ही आते हैं। गौरतलब है कुछ लोग मजदूर का अर्थ गरीब से लगाते हैं। जबकि इसका आकलन हमेशा गरीब से नहीं किया जाना चाहिए। मजदूर हमारे समाज की एक इकाई है। हर सफलता का एक अभिन्न अंग है। यह हमारे समाज को मजबूत व परिपक्व बनाता है, समाज को सफलता की ओर अग्रसर करता है। मजदूर वर्ग में वे सभी लोग आते हैं जो किसी संस्था या निजी तौर पर किसी के लिए काम करते हैं और बदले में मेहनताना लेते हैं। शारीरिक व मानसिक रूप से मेहनत करने वाला हर इंसान मजदूर है। एक बात दीगर है कि जब हम मकान बनाते हैं तो उसमें बालू, ईंट, सीमेंट, छड़ के साथ- साथ मानवीय श्रम की आवश्यकता होती है। यदि मानवीय श्रम नहीं हो यानी मेहनत करने वाले श्रमिक नहीं मिले तो क्या मकान बन पाएगा? यदि खेत की लहलहाती फसल को काटने वाले मजदूर नहीं मिले तो क्या फसल समुचित ढंग से तैयार हो सकेगी? यथार्थ के धरातल पर देखा जाए तो इसका जबाव नहीं में मिलता है। कहने का मतलब है कि मजदूर के महत्व व इनके योगदान को कभी भी नकारा नहीं सकता है। इन्हीं सब मजदूर को सम्मान प्रदान करने के लिए मजदूर दिवस मनाया जाता है। वाकई मजदूर दिवस, मजदूर वर्ग मजदूरों और ट्रेडमेन का एक वैश्विक उत्सव है जिनके अथक प्रयासों से हमारी सामाजिक और आर्थिक प्रगति की नींव पड़ती है। यों कहा जाए तो वह मानवीय श्रम का सबसे अच्छा उदाहरण है। वह आर्थिक क्रियाकलापों की धुरी है। आज के मशीनी युग में भी उसकी महत्ता कम नहीं हुई है।

उद्योग, व्यापार, कृषि, भवन निर्माण, पुल एवं सड़कों के निर्माण में उसका योगदान सराहनीय वह प्रशंसनीय है। यों तो यह दिवस

पूरी दुनिया में मनाया जाता है। परन्तु ऐतिहासिक रूप से श्रम दिवस की शुरुआत अमेरिका में ही हुई थी जिसमें मजदूरों के लिए आठ घंटे के काम की वकालत करते हुए बिल पारित किया गया था और १८८६ के बाद से मजदूरों और कर्मचारियों की कड़ी मेहनत का सम्मान करने के लिए श्रम दिवस का जश्न शुरु हुआ था। यानी मजदूर दिवस की शुरुआत १ मई,१८८६ से।

               प्रतिवर्ष १ मई को मजदूर दिवस तो मनाया जाता है।इस दिन सभी संगठित कार्यालय में अवकाश रहता है। परन्तु विचारणीय प्रश्न है कि केवल दिवस को दिवस तक ही नहीं रहने दिया जाए अपितु मजदूरों की आर्थिक दशा पर भी सकारात्मक ध्यान देना होगा। क्योंकि विशेषकर असंगठित क्षेत्र के जो श्रमिक हैं उन्हें एक तो काम के हिसाब से कम मजदूरी मिलती है और किसी भी तरह की सामाजिक सुरक्षा भी नहीं मिलती है। काम के दौरान मृत्यु होने पर कोई सरकारी मदद भी नहीं मिलती है। फलस्वरूप उनके परिवार को भी काफी परेशानी से जूझना पड़ता है। साथ ही संगठित क्षेत्र के कामगारों को अच्छी मजदूरी मिलने के साथ ही सारी सुविधाएँ भी मिलती हैं। अतः निष्कर्ष के तौर पर कहा जाता है कि मजदूर हमारे आर्थिक विकास की सच्ची धुरी है। इनके कुशल श्रम पर ही सब कुछ टिका हुआ है। अतः इनके महत्व को नजरंदाज न करते हुए सारी मूलभूत सुविधाएँ प्रदान की जानी चाहिए ताकि इनकी आँखों में एक नई चमक आ सके।



देव कांत मिश्र 'दिव्य' मध्य विद्यालय धवलपुरा, सुलतानगंज, भागलपुर, बिहार

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