(वृक्षों की सुरक्षा,संवर्धन,जन-सहभागिता एवं जनलाभ के संदर्भ में)
वृक्षारोपण जो कि एक आम बात है जिसे सभी लोग आसानी से बोलते हैं,जिसे वन,पर्यावरण एवं जलवायु परिवर्तन विभाग के द्वारा संपूर्ण भारत वर्ष में लगाया जाता है।इसमें से बहुत सारे वृक्ष जिसे वन,पर्यावरण एवं जलवायु परिवर्तन विभाग के द्वारा अपने वन क्षेत्र में लगाया जाता है,जबकि बहुत सारे वृक्षों को लोग अपने जमीन पर लगाने का प्रयास करते हैं।सरकार के द्वारा लगाये गये वृक्षों की देखभाल तो वन,पर्यावरण एवं जलवायु परिवर्तन विभाग तीन से चार वर्षों तक करती है,लेकिन उसके बाद धीरे-धीरे बहुत सारे वृक्षों को लोग अपने स्वार्थ के लिये काट देते हैं।इस तरह से वृक्षों को नष्ट कर दिया जाना पर्यावरण की दृष्टि से बहुत ही गलत काम है।इसी संदर्भ में वृक्षों को लगाये जाने के बाद बचाकर रखने पर कुछ सवाल उठते हैं,जिसमें वृक्षों की सुरक्षा,संवर्धन,जन सहभागिता एवं
जनलाभ की बात सामने आती है,क्योंकि वृक्षारोपण अब सरकारी विभागों के नारे से आगे बढ़कर युवा वर्ग के श्रृंगारिक गतिविधियों का एक अक्षुण्ण अंग बनता जा रहा है।इसके अलावे आज वृक्षारोपण युवा वर्ग का एक रंगरोगन बनता जा रहा है,जो कि किसी भी कार्यक्रम में लोग तस्वीरखिंचवाने के लिये तथा अपने को सोशल मीडिया तथा अखबारों की सुर्खियों में दिखने के लिये वृक्ष लगाने का काम करते हैं।लेकिन सबसे अहम मुद्दा वृक्षों की सुरक्षा,संवर्धन,जन सहभागिता एवं जनलाभ जैसे अहम मुद्दा की बात आती है,के संबंध में पर्यावरणविद का मानना है कि।जो भी वन,विभाग लगाता है वह समाज एवं पर्यावरण को ध्यान में रखकर लगाया जाता है,क्योंकि कोई भीअधिकारी या कर्मचारी किसी भी स्थान पर तीन-से-पाँच साल तक पदस्थापित रहकर पुनः अन्यत्र चले जाते हैं,लेकिन स्थानीय लोग वहीं रहते हैं।अतः जो वृक्ष उन्हें
मिलता है उसे अपनी संपत्ति मानकर बचाना चाहिये। किसी भी जगह पर मिलने वाली हवा तथा प्रकृति का आनंद वहाँ के स्थानीय लोग ही लेते हैं इसलिये उन वृक्षों का संरक्षण उसे करना चाहिये।
(ख)लोगों को वृक्ष लगाने के बाद अपने बाल-बच्चों की तरह लालन-पालन करते हुये वृक्षों को बचाने का प्रयास करना चाहिये।साथ ही वृक्षों के साथ जब आप पुत्रवत संबंध बनाये रखेंगे तभी वृक्षों को बचाया जा सकता है।इस प्रकार से जब आप वृक्षों की रक्षा करने का प्रयास करेंगे तभी वृक्षों को बचाते हुये संवर्धन किया जे सकता है तथा वृक्षों का विकास संभव हो सकता है।
(ग) वृक्षों से लाभ हमें मुर्गी तथा अंडा की तरह लेना चाहिये।अर्थात हमें वृक्षों को काट कर नष्ट।नहीं करना चाहिये,बल्कि वृक्षों का पालन-पोषण करते हुये उससे फल,फूल, लकड़ी, शुद्ध,हवा आदि का जीवन में आनंद लेना चाहिये।
जहाँ तक जन लाभ की बात होती है,झारखंड में महुआ तथा रेशम के कीट पालन करने वाले अर्जुन के वृक्ष से जन लाभ मिलता है ।लेकिन दुर्भाग्य की बात है कि इसके लिये प्रारंभ से लाभुक के नाम के साथ महुआ के वृक्षों को जंगलों में लोग बचाकर रखना चाहते हैं क्योंकि यह उनलोगों के जीवन के लिये लाभदायक होता है
जनलाभ के क्षेत्र में अर्जुन के पेड़
में रेशम के कीट के पालन करके
जन लाभ दिया जा रहा है।
जन लाभ का तीसरा साधन है
अप्रैल-मई के महीने में झारखंड में बीड़ी पत्ता के काम में भी झारखंड सरकार को लगभग 20 (बीस करोड़) रूपया का राजस्व
प्राप्त होता है,तथा इतनी ही राशि बीड़ी पत्ता को चुनने में काम करने वालों को मिलती है, जिससे जनलाभ की बात होती है।
(2) लोगों के बीच वृक्षों से होने वाले लाभ के बारे में समझाये जाने की आवश्यकता है।साथ ही उन्हें कुछ-कुछ वृक्षों को व्यक्ति विशेष के नाम से आवंटित कर देना चाहिये,जिससे कि लोगों के मन में वृक्षों को बचाने तथा उसकी रक्षा करने के लिये आकर्षण बढ़ेग।इसके साथ ही लोगों को यह महसूस होना चाहिये कि यह वृक्ष हमारी है तथा
इससे लाभ हमें ही मिलने वाली है,वैसी स्थिति में ही वृक्षों की सुरक्षा,संवर्धन,जन सहभागिता
तथा जन लाभ के द्वारा विकास किया जा सकता है।
"वृक्षारोपण अब सरकारी विभागों के नारों से आगे बढ़कर युवा वर्ग
के श्रृंगारिक गतिविधि का एक अक्षुण्ण अंग बनता जा रहा है।साथ ही आज वृक्षारोपण एक
रंग रोगन सा बनता जा रहा है ।इसके अलावे सरकारी स्तर से इतर जब इस कार्यक्रम को किसी विशेष एजेंसी के द्वारा करवाया जाता है तो यह मनरेगा के तरह कागजातों के जाल में ही ज्यादे फँसा हुआ रह जाता है।
आज वृक्षारोपण के साथ-साथ"वृक्षों की सुरक्षा,संवर्धन,जन सहभागिता एवं जन लाभ"जैसी बातों पर भी गहराई से विचार करने की जरूरत है,तभी वृक्षारोपण सफल हो पायेगा के संदर्भ में श्री रामभरत जी ने अपने
सुझाव निम्न प्रकार के दिये हैं-
(क) जनसहभागिता- वृक्षारोपण करने के पहले आस पास के सारे लोगों को इस संबंध में वृक्षारोपण से संबंधित प्रस्तावों के साथ साझा करने की जरूरत है कि आप यहाँ पर हो रहे वृक्षारोपण से
जलावन के लिये लकड़ी,फलदार वृक्ष,वट सावित्री के पूजन हेतु वट वृक्ष,पीपल वृक्ष या आप किस प्रकार के वृक्षों को लगाना चाहते हैं।साथ ही वहाँ के लोगों से यह पूछना कि आप अपने क्षेत्र में किस प्रकार के वृक्षों को लगाया जाय संबंधी सलाह लेनी चाहिये।
साथ ही जन सहभागिता इस स्तर पर भी होनी चाहिये की एक निर्धारित समय में वृक्षों के परिपक्व हो जाने पर उक्त जमाबंदी के मालिक को लकड़ी
काटने का बंध पत्र(Bond paper)भी वृक्ष लगाने के समय ही मिलना चाहिये,जो कि पूरे भारतवर्ष में कहीं भी नहीं है।
दूसरी बात यह है कि योजना के
प्रारंभ करने के पहले"परिवहन
अनुज्ञा पत्र"निर्गत करने की
वचन बद्धता होनी चाहिये,जो कि जमीन के मालिक,अंचलाधिकारी
तथा वन प्रमंडल पदाधिकारी के बीच "त्रिपक्षीय स्तर"पर समझौता किया जाना चाहिये।आज तक भारतवर्ष में इस तरह की व्यवस्था कहीं भी देखने को नहीं मिलती है।
(ख)जन लाभ-जब लोग वृक्ष लगाने में भाग लेगा तो वह जन लाभ लेना चाहेगा।लेकिन
सार्वजनिक जगह पर आम लोगों को सरकारी वृक्षों को जन लाभ देना भी संभव नहीं है।क्योंकि यदि हम महुआ के पेड़ का मालिकाना हक व्यक्ति विशेष को दे देते हैं तो वह उन वृक्षों को काट भी सकता है।साथ ही आज महुआ के वृक्षों पर कब्जा करने के लिये जानलेवा घटना भी घटते हुये देखने को मिलती है।
आगे सवाल यह भी उठता है कि आखिर जन लाभ का प्रारूप के संबंध में मानना है कि"वन प्रबंधन समिति का ऑन लाइन रजिस्ट्रेशन होना चाहिये।साथ ही "ग्राम वन प्रबंधन समिति का एक पोर्टल"होना चाहिए,जो कि वन विभाग के द्वारा जन लाभ दिलाने में सहायक होगा।इसका प्रत्येक तीन साल के बाद नवीनीकरण होना चाहिये।
साथ ही जहाँ पर वन प्रबंधन समिति नहीं है,वहाँ पर ग्राम पंचायत समिति जो कि पंचायत के मुखिया की देखरेख में बनाया जाना चाहिये।इसके आंकड़ों
(Data)को संरक्षित रखने के लिये"संयुक्त ग्राम वन प्रबंधन समिति पोर्टल" का गठन किया जाना निहायत जरूरी है।
अंत में,पर्यावरण के क्षेत्र में लगातार काम करने के कारण से मुझे लगता है कि वृक्षों को बचाना या पर्यावरण के प्रति जागरूक सोच रखने वाले लोगों की संख्या बहुत ही कम है।साथ ही लोगों की मानसिकता भी यह है कि वृक्ष वन विभाग की चीज है,जिसका मालिक हमेशा इसकी देखभाल नहीं करता है,इसलिये इसको काटकर घर ले जाने से भी बहुत कुछ होने वाला नहीं है।
साथ ही मेरे विचार से वृक्षारोपण करते समय वृक्षों की देखभाल का भार व्यक्तिगत रूप से स्थानीय लोगों को दिया जाना,चाहिये इस शर्त के साथ कि आप वृक्ष की देखभाल कीजिए,वृक्ष से लाभ लीजिए,लेकिन काटने का अधिकार आपको नहीं मिलेगा।
आलेख साभार-श्री विमल कुमार
"विनोद"भलसुंधिया,गोड्डा,
(झारखंड)।

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