साधारण से असाधारण व्यक्तित्व (मेजर ध्यानचंद ) - राकेश कुमार - Teachers of Bihar

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Monday 28 August 2023

साधारण से असाधारण व्यक्तित्व (मेजर ध्यानचंद ) - राकेश कुमार

[ राष्ट्रीय खेल दिवस 29 अगस्त विशेष ]


           अक्सर हम इस बात की चर्चा करते हैं कि जब बच्चा धरती पर आता है तो वह एक नैसर्गिक प्रतिभा लेकर आता है, बस जरूरत होती है उसकी प्रतिभा को पहचानने की तथा सही राह दिखाने की ताकि वह अपने स्वर्णिम तथा देश की स्वर्णिम गाथा की हिस्सा बन सके। आज वर्तमान शिक्षण पद्धति या व्यवस्था में इस बात का प्रावधान किया गया है कि हम ऐसी व्यवस्था के निर्माण पर बल देंगे की बच्चे की प्रतिभा स्वतः निखरकर बाहर आए उस पर कोई चीज़ अभिभावक, शिक्षक या व्यवस्था की ओर से थोपी न जाये ,क्योंकि जीवन में सफ़लता का कोई एक पैमाना नहीं होता। आज के संदर्भ में अगर हम बात करें तो किसी भी देश की सफ़लता को या विकास की स्थिति को वहां के खेल के क्षेत्र में मिली सफ़लता को देखकर भी लगाया जाता है। आज हमारे जीवन के लिए शारीरिक शिक्षा एवं स्वास्थ्य [ खेल-कूद ] अति महत्वपूर्ण हो गया है, क्योंकि कहा जाता है कि तन स्वस्थ तो मन स्वस्थ और जब दोनों स्वस्थ होगें तभी हम अपने जीवन में कामयाबी की उम्मीद कर सकते हैं, इसके एक और पहलू पर अगर हम चर्चा करें तो कोरोना काल में हम प्रत्यक्षतः महसूस कर चूके हैं कि खेल-कूद हमारे जीवन के लिए कितना महत्वपूर्ण है। हम प्रत्येक वर्ष 29 अगस्त को राष्ट्रीय खेल दिवस मनाते हैं जिसका उद्देश्य होता है कि युवा पीढ़ी इस दिन की महता को समझे और सीख ले जीवन की उच्चतम खेल बुलन्दियों को छुए। अपने देश के इतिहास में कई महापुरुष [ विभिन्न क्षेत्रों ] में हुए आज इस खेल दिवस पर ऐसे हैं एक खेल महापुरुष मेजर ध्यानचंद की चर्चा करने जा रहें हैं जिनको सारी दुनिया हॉकी के जादूगर के नाम से जानती है।

हॉकी के जादूगर कहे जाने वाले भारत के महान हॉकी खिलाड़ी मेजर ध्यानचंद सिंह का जन्म 29 अगस्त 1905 को वर्तमान प्रयागराज, यूपी में हुआ था. अपनी बुनियादी शिक्षा प्राप्त करने के बाद, उन्‍होंने 1922 में एक सैनिक के रूप में भारतीय सेना की सेवा की. वह एक सच्चे खिलाड़ी थे और हॉकी खेलने के लिए सूबेदार मेजर तिवारी से प्रेरित थे. ध्यानचंद ने उन्हीं की देखरेख में हॉकी खेलना शुरू किया। हॉकी में उनके उत्कृष्ट प्रदर्शन के कारण, उन्‍हें 1927 में 'लांस नायक' के रूप में नियुक्त किया गया और 1932 में नायक और 1936 में सूबेदार के रूप में पदोन्नत किया गया. इसी वर्ष उन्होंने भारतीय हॉकी टीम की कप्तानी की. वह लेफ्टिनेंट, फिर कैप्टन बने और आखिर में मेजर के रूप में पदोन्नत किए गए। उन्‍होंने 1928, 1932 और 1936 में भारत को तीन ओलंपिक स्वर्ण पदक दिलाए. उन्होंने 1936 के बर्लिन ओलंपिक फाइनल में जर्मनी पर भारत की 8-1 की जीत में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी जिसमें वह 3 गोल के साथ टॉप स्‍कोरर भी बने थे. वह 1928 के एम्स्टर्डम ओलंपिक में 14 गोल करने वाले खिलाड़ी भी थे। इनके जीवन से जुड़े कई ऐसे तथ्य है जिन्हें कुछ शब्दों में व्यक्त करना सम्भव नहीं है। इनके जीवन से बड़ी सीख यह है कि हम जीवन में कुछ भी करें तो एक सकारात्मक जुनून का होना अति आवश्यक है और सफ़लता का मार्ग हमारी उस कार्य के प्रति की गई मेहनत पर निर्भर करता है। हम सभी को इस बात का संकल्प लेना होगा की प्रगति और उन्नति के मार्ग पर हमारा देश जब आगे बढ़े तो उसमें खेल भी शामिल हो। इस आलेख के माध्यम से हम सभी देशवासी नीरज चोपड़ा को भी हार्दिक बधाई देते हैं कि भाला फेंक में उन्होंने इतिहास बनाते हुए विश्व एथलेटिक्स चैंपियनशिप 2023 में स्वर्ण पदक प्राप्त कर देश का नाम रौशन किया और राष्ट्रीय खेल दिवस 2023 पर देश को एक बेहतरीन तोहफा दिया।

राष्ट्रीय खेल दिवस कि असीम शुभकामनाओं के साथ!



आलेखकर्ता 

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    राकेश कुमार 

शारीरिक शिक्षक 

मध्य विद्यालय बलुआ 

मनेर [ पटना ]

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