किसी भी विषय पर कुछ लिखने का सबसे सफल तरीका मेरे हिसाब से उस विषय को अपने अनुभव से जोड़कर साझा करना है। यह मेरी निजी राय है। आप सहमत हों ऐसा जरूरी नहीं, किन्तु मेरे हिसाब से, उस विषय में तभी प्रामाणिकता आ सकती है। नारी शिक्षा या महिला शिक्षा पर कुछ लिखने/बोलने से पहले मैं चाहती हूँ कि मैं अपने अनुभव को साझा करूँ। मेरी माँ श्रीमती मधुरानी शिक्षिका थीं। वो हिन्दी विषय पढ़ाती थीं। बचपन से ही उन्हें घर और कार्यालय में संतुलन साधते देखा। उनको देख-देख मेरे व्यक्तित्व का निर्माण हुआ है। यह समझ लीजिए मुझमें स्वावलंबन का बोध उन्हें की दाय है। मेरा दृढ़ आत्मविश्वासी होने के लिए भी मैं उन्हीं की ऋणी हूँ। और कह सकती हूँ कि यदि कोई शिक्षित महिला आपके आस पास घर में है तो निश्चित ही उसका सकारात्मक असर पड़ेगा।
अब महिला शिक्षा के लिए थोड़ा सैद्धांतिक इतिहास और कुछ आँकड़ें भी देख लेते हैं ताकि हमें अंदाज़ा हो जाए कि इक्कीसवीं सदी में शिक्षा के मामले में आधी आबादी कहाँ खड़ी होती है। भारत में महिला शिक्षा का एक लंबा और जटिल इतिहास रहा है। अतीत में, महिलाओं को शिक्षा तक पहुंच प्राप्त थी, इसका सबूत थेरीगाथा की कहानियाँ हैं। लेकिन समय के साथ यह कम हो गई। 19वीं सदी तक 0.2% से भी कम महिलाएँ साक्षर थीं। 19वीं सदी में कई समाज सुधारकों और शिक्षकों ने महिला शिक्षा को आगे बढ़ाने के लिए काम किया। ये थे ज्योतिबा फुले, ईश्वर चंद्र विद्यासागर और राजा राम मोहन राय। उन्होंने दावा किया कि महिलाओं की मुक्ति के लिए शिक्षा आवश्यक है क्योंकि इससे उनकी सामाजिक प्रतिष्ठा बढ़ेगी। इसके अतिरिक्त, ब्रिटिश औपनिवेशिक प्राधिकरण ने महिला शिक्षा को बढ़ावा दिया। 1854 में सरकार द्वारा कई लड़कियों के स्कूल स्थापित किये गये।
भारत सरकार ने देश की आजादी के वर्ष 1947 में शिक्षा को सभी नागरिकों के लिए मौलिक अधिकार घोषित किया। इसके अतिरिक्त, सरकार ने महिलाओं की शिक्षा का समर्थन करने के लिए कई पहल शुरू की हैं। इन पहलों के कारण महिला साक्षरता की दर में वृद्धि हुई है, जो 1947 में 6% से बढ़कर 2011 में 65.46% हो गई है। इन सफलताओं के बावजूद, भारत में महिलाओं की शिक्षा के लिए अभी भी कई बाधाएं हैं। लड़कों की तुलना में लड़कियों की स्कूल छोड़ने की दर अधिक है। विभिन्न पृष्ठभूमि की महिलाओं के लिए सुलभ स्कूली शिक्षा की गुणवत्ता भी भिन्न-भिन्न होती है। प्रशासन इन मुद्दों को सुलझाने का प्रयास कर रहा है। राष्ट्रीय शिक्षा नीति (एनपीई) 2020 के अनुसार, 2030 तक लड़कियों को 100% की दर से प्राथमिक विद्यालय में दाखिला लेना होगा।
सर्व शिक्षा अभियान (एसएसए) और मध्याह्न भोजन योजना जैसी पहलों के माध्यम से सरकार लड़कियों की शिक्षा के स्तर को ऊपर उठाने का भी प्रयास कर रही है।
भारत में पिछले कुछ दशकों के दौरान महिला शिक्षा में उल्लेखनीय प्रगति हुई है। हालाँकि, अभी भी काम किया जाना बाकी है। महिलाओं की शिक्षा में निवेश जारी रखकर भारत एक ऐसी आबादी से लाभान्वित हो सकता है जो बेहतर शिक्षित और अधिक स्वतंत्र है।
भारत में महिला शिक्षा के इतिहास में कुछ महत्वपूर्ण मोड़ निम्नलिखित हैं:
पुणे में ज्योतिबा फुले और उनकी पत्नी सावित्रीबाई फुले ने 1848 में पहला महिला विद्यालय स्थापित किया। 1854 में ब्रिटिश औपनिवेशिक प्राधिकरण द्वारा कई लड़कियों के स्कूल बनाए गए थे। अखिल भारतीय महिला सम्मेलन की स्थापना 1921 में हुई थी। भारत को 1947 में आज़ादी मिली। 1947: भारत को आजादी मिली.
1950: भारत का संविधान पुरुषों और महिलाओं के लिए समान अधिकारों की गारंटी देता है, जिसमें शिक्षा का अधिकार भी शामिल है। 1961: राष्ट्रीय महिला शिक्षा परिषद की स्थापना की गई। 1986: राष्ट्रीय शिक्षा नीति को अपनाया गया। 2001: 86वां संवैधानिक संशोधन अधिनियम 6 से 14 वर्ष की आयु के सभी बच्चों के लिए प्रारंभिक शिक्षा को मौलिक अधिकार बनाता है। 2020: राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 को अपनाया गया।
भारत जैसे विकासशील देश में महिलाओं की शिक्षा में अभी भी कई बाधाएँ हैं। बल्कि हकीकत यह है कि शिक्षा के लिए जितना बजट आवंटित किया जाना चाहिए था वह निराशाजनक है। ऐसे में महिला-शिक्षण को साध पान अब भी एक भागीरथी कार्य है। गरीबी, लैंगिक दृष्टिकोण, कुशल शिक्षकों का अभाव, अच्छे स्कूल और संसाधनों का अभाव कुछ ऐसी समस्याएं हैं जिनसे अब भी स्त्रियों को दो-चार होना पड़ता है।
इन बाधाओं के बावजूद, कई भारतीय लड़कियां और महिलाएं हैं जो शिक्षा के क्षेत्र में उत्कृष्ट प्रदर्शन कर रही हैं। ये महिलाएं रूढ़िवादिता को खत्म कर रही हैं और आने वाली पीढ़ियों के लिए दरवाजे खोल रही हैं।
आधुनिक दुनिया में महिलाओं के लिए शिक्षा महत्वपूर्ण है। यदि अगली पीढ़ी शिक्षित नहीं होगी तो वह स्वनिर्णय कैसे ले पाएगी? क्योंकि मौजूद सामाजिक स्थितियों में एक से भले दो कमाने वाले हों तो बेहतर। शिक्षा रोजगार के अवसर मुहैया कराने में मददगार साबित होता है। इसे भी हम कैसे नकार दें कि समाज और समुदाय की भी महती भूमिका होता है। आज भी देखा जाता है कि समुदाय में लड़कियों की शिक्षा को उतनी प्राथमिकता नहीं दी जाती, लेकिन चीजें धीरे-धीरे बदल रही हैं।
अलग से क्या कहना, लेकिन फिर भी दोहराना जरूरी लगता है कि आज, महिलाओं को विभिन्न उद्योगों में काम करते देखना आम बात है। इनमें वकील, प्रोफेसर, अकाउंटेंट, आईएएस अधिकारी, चिकित्सक, नर्स और पुलिस अधिकारी शामिल हैं। मंद गति से ही सही लेकिन इन सबको देखते हुए हम कह सकते हैं कि शिक्षा की बदौलत महिलाओं की स्थिति में काफी सुधार हुआ है।
यह हमारा नैतिक दायित्व है कि हम महिलाओं को शिक्षित करने के लिए आवाज उठाएं। एक बेहतर उन्नत और प्रगतिशील समाज की यही पहचान है।
महिलाओं की उन्नति देश की उन्नति है।
Suman sourabh ( music teacher)
+2 sarvoday high school waini, samastipur

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