मातृभाषा - रणजीत कुशवाहा - Teachers of Bihar

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Thursday, 14 September 2023

मातृभाषा - रणजीत कुशवाहा

 आजकल के लोगों पर आधुनिकीकरण का भूत सवार हो गया है।लोग अपनी सभ्यता संस्कृति के साथ अपनी भाषा को भी नापसंद करने लगे हैं। ऐसे लोग दो नाव की सवारी करते है।पर लोग तन से भले विदेशी बन जाएं पर मन से भारतीय बन कर रहेंगे।और भारतीयता हिन्दी भाषा में समाहित है।


एक भारतीय युवती विदेश पढ़ने गई । उसके साथ अधिकतर भारतीय छात्र ही पढ़ते थे।पर धौंस जमाने के लिए वह हमेशा अंग्रेजी में बात करती थी।

एक दिन जब वह बगीचे में टहल रही थी तो अचानक एक जहरीला सांप उसके पैरों में लिपट गया।

वह जोर जोर से चिल्लाने लगी।

 बचाओ -बचाओ!

 हालांकि शोर सुनकर लोग दौड़कर युवती के पास आई और उसको बचा लिया।

पर लोग आश्चर्यचकित थे कि इसने save me जगह बचाओ-बचाओ का प्रयोग क्यों किया। ऐसा इसलिए होता है क्योंकि 

हम जब संकट में होते हैं तो हमारा आंतरिक उदगार मातृभाषा में ही व्यक्त होता है। यहां तक कि 

विस्मयादिबोधक अव्यय के शब्दों का हम अधिकतर प्रयोग मातृभाषा में ही कर सकते हैं।

आप भी मातृभाषा का प्रयोग करें। 🙏🏻🌹

हिंदी दिवस की शुभकामनाएं।🌷


रणजीत कुशवाहा

प्राथमिक कन्या विद्यालय लक्ष्मीपुर रोसड़ा समस्तीपुर

(बिहार)

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