भारत वर्ष के साथ-साथ विश्व चे जितने भी त्योहार हैं सभी परंपरागत नियम,साफ-सफाई के साथ जुड़े हुये रहते है।सभी त्योहार चाहे करमा,जीतिया,
दुर्गापूजा,कालीपूजा,छठ व्रत सारे का प्रारंभ नहाय-खाय से प्रारंभ होता है,क्योंकि स्वचछ तन में ही स्वचछ मन बसता है,क्योंकि लोगों के मन में एक भय व्याप्त रहता है कि यदि हम साफ सुथरा होकर पर्व नहीं करेंगे तो जीवन में किसी प्रकार की अनहोनी हो सकथी है,जो कि जीवन के लिये दुःखदायी होगी।इसके मूल में एक कारण है कि किसी भी ईष्ट को गंदगी अंर गंदी चीजें पसंद नहीं होती है।मेरा यह आलेख"उत्कृष्ट
सोच विकसित करते त्योहार"जो कि पर्यावरणीय तथा मनोविश्लेषणात्मक आलेख है जो कि लोगों को स्वचछ रहने के लिये प्रेरित करती है।जैसा कि हमलोग जानते हैं कि
छठ पर्व जो किआस्था विश्वास स्वच्छता,सांप्रदायिक सद्भाव परिवार/तप का प्रमुख पर्व माना जाता है जिसमें लोग अपने घरों तथा आस-पास के सड़कों तथा गलियों की पूरी तरह से साफ सफाई करने का प्रयास करते हैं ।इस अवसर पर लोग नदी घाटों की भी साफ सफाई करते हैं, ताकि स्वच्छता बनी रहे।चूँकि स्वच्छता जीवन का अभिन्न अंग है, क्योंकि स्वच्छता में कमी रहने के चलते जल,मिट्टी,वायु,सारी चीजें प्रदूषित हो जाती है।साथ ही
जमीन में ज्यादा रासायनिक कीटनाशकों के प्रयोग किये जाने से पर्यावरण प्रदूषित होता है तथा
इसके चलते 'डाला' में
चढ़ाये जाने वाले फल भी प्रदूषण का शिकार हो जाते हैं।
डैसा कि हम छठ व्रत के समय छठ व्रत करने के लिये घाटों की सफाई करते हैं,लेकिन छठ पर्व समाप्त होने के तुरंत बाद हमलोगउसी घाट पर मलमूत्र निकास करने,थूक खंखार फेंकने से जरा सी भी परहेज नहीं करते हैं।साथ ही छठ पर्व चे निस्तार यानि परना के बाद जिस पत्तल पर प्रसाद खाते हैं उस पत्तल को वहीं पर फेंक देते हैं।जिस घाट को साफ-सुथरा कराकर अरघर्य देते हैं या अन्य पूजा पाठ करते हैं,वहीं पर गंदगी फैलाना मुझे लगता है कि हमलोगों के दिखावटी स्वचछ चेहरे पर एक दिखावटी धब्बा है।
मुझे लगता है कि छठ व्रत जिसमें लोग घाट,रास्ता,गली मोहल्ले की सफाई दिल से या भय से भी करते हैं,उसे स्वचछ रखने की सोच विकसित करनी चाहिये।
आगे एक लेखक,समालोचक होने के नाते मुझे लगता है कि दुनियाँ की सारी बिमारी चाहे मलेरिया,
कालाज्वर,पीलिया,कोरोना वायरस,बी-कोली तथा विश्व की सारी बैक्टीरियल या वायरस जनित बिमारी सभी के जड़ में
दूषित जल,प्रदूषित भोजन,
प्रदूषित हवा आदि की प्रमुख भूमिका है।प्रदूषण रहने के कारण से सूर्य नहीं निकलेंगे और सूर्य नहीं निकलेगा तो जल शुद्ध नहीं मिल पायेगा ,क्योंकि जल की शुद्धता सूर्य के किरण पर निर्भर करती है।
समालोचात्मक समीक्षा के रूप में
जबकि छठ व्रत में साक्षात सूर्य
देव की पूजा की जाती है।एक ऐसे देवता की पूजा जिसकी कुदृष्टि हो जाने से संपूर्ण सृष्टि का विनाश होना लगभग तय है।
सूर्य की निगाहें रोशनी है और यह रोशनी सर्वत्र और सर्वव्यापी
विद्यमान है।आमतौर पर आम नागरिक की धारणा है कि यदि हम कहीं भी गंदगी छोड़ते हैं तो भगवान देख लेंगे।इसलिए उनकी
सफाई उस स्थान तक की जाती है,जहाँ तक आदमी नहीं बल्कि
सूर्य की रोशनी पहुँच जाती है।यही कारण है कि मानव जहाँ तक संभव हो अपनी आँखों से देख पाता है,वहाँ भरपूर सफाई का प्रयास करता है,क्योंकि गंदगी पर किरण पड़ने से परावर्तित होकर जब किसी भी जीव पर चाहे वह
पेड़-पौधा हो या कोई प्राणी पर पड़ता है तो वह सबके लिए
नुकसान दायक होता है।
छठ पर्व चूँकि कार्तिक महीना के
षष्ठी के दिन होता है इस दिन , ग्रह-नक्षत्र,उपग्रह आदि की किरण को ध्यान में रखते हुए मनाया जाता है ताकि हानिकारक किरणें हमारी धरती पर न आये तथा किसी भी जीव को हानि न पहुँचा दे।
छठ पर्व के समय स्वच्छता पर ध्यान दिये जाने का एक कारण यह भी माना जाता है
चूँकि नदियों में बरसात के दिनों में बाढ़
आ जाने के गंदगी फैल जाती थी
जिससे लोगों को तरह-तरह की बिमारियों का सामना करना पड़ता था,जिससे बचने के लिए तथा अपने घरों में फसल को लाने के लिये भी स्वच्छ रहना पसंद करते थे।लोग अपने स्वास्थ्य की रक्षा करने के लिये ताजे फल को डाला में सजाकर सूर्य भगवान को अरघय देते हुये अर्पित करते हैं।
ऐसा देखा जाता है कि बहुत सारे त्योहार में लोग साफ-सफाई,
परंपरागत रूप से घर,सड़क,
घाट की सफाई करते हुए नजर आते है।
यह एक ऐसा पर्व है जिसमें मुस्लिम संप्रदाय के लोग भी सड़कों की सफाई करते हुए नजर आते हैं ।
इन सभी बातों के अलावे एक प्रश्न खड़ा होता है कि पर्व त्योहार के अवसर पर तो लोग अपने घरों की सफाई करते हैं,लेकिन अन्य
लेकिन दिनों में लोग अपने
घरों को साफ सुथरा करके कचरों को यत्र-तत्र फेंकने से बाज नहीं
आते है जिसके चलते डेंगू,कोरोना वायरस
कालाज्वर तथा अन्य बहुत सी बीमारियाँ फैलती है।
साथ ही लोगों को छठ व्रत के शुभ
अवसर पर एक संकल्प लेना चाहिए कि हम वातावरण में गंदगी न फैलायें ,और न फैलाने दें।इस प्रकार से हम देखते हैं कि
छठ पर्व स्वच्छता का संदेश देती है।
आलेख साभार-श्री विमल कुमार
"विनोद"भलसुंधिया,गोड्डा(झारखंड)।
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