1857 के नायक-वीर कुँवर सिंह- हर्ष नारायण दास - Teachers of Bihar

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Tuesday 23 April 2024

1857 के नायक-वीर कुँवर सिंह- हर्ष नारायण दास


 1857 के क्रान्ति के महानायक वीर कुँवर सिंह उज्जैनिया राजवंश के उदवंतसिंह के पौत्र  का जन्म23 अप्रैल1777  को हुआ था।उनके पिता का नाम साहबजादा सिंह और माता का नाम पंचरत्न कुँवर था।ऐसा कहा जाता है कि मुगल सम्राट शाहजहाँ ने उनके पूर्वज को राजा की उपाधि प्रदान की थी, तब से उनके परिवार के सभी उत्तराधिकारी"राजा'' के नाम से संबोधित किये जाने लगे।

उन्हें पढ़ने लिखने में रुचि नहीं थी।तीरंदाजी, घुड़सवारी जैसे वीरतापूर्ण क्रियाकलापों में अधिक दिलचस्पी रखते थे।

उनका विवाह गया जिले के देवग्राम के संपन्न जमींदार फतह नारायण सिंह की पुत्री से हुआ।उन्हें एक पुत्र भी हुआ, जिसका नाम दिल भजन सिंह था।उनके जीते जी दिलभजन सिंह का  असामयिक निधन हो गया था,जिससे उन्हें गहरा शोक हुआ।

 सन1826 में कुँवर सिंह ने अपनी पैतृक जमींदारी संभाली।1845-46 में कुँवर सिंह के जीवन में परिवर्त्तन आया।जब ब्रिटिश शासन की द्वेषपूर्ण नीति के विरुद्ध समस्त उत्तर भारत में असंतोष का वातावरण उत्पन्न हो गया। अनेक भूमिगत संगठन कायम हो गए।और छापामार संघर्ष की योजनाएं भी तैयार की गई, जिनमें कुँवर सिंह की प्रमुख भूमिका थी।  अंग्रेजी साम्राज्य के खिलाफ1857 में एक जेहाद छिड़ता है।29 मार्च1857 को मंगल पांडेय के नेतृत्व में क्रान्ति की जो चिंगारी बैरकपुरी कलकत्ता की छावनी में जली वह दानापुर की ब्रिटिश सैनिक छावनी में पहुँच गई।

25जुलाई1857 को दानापुर के देशी सिपाहियों ने विद्रोह कर दिया और आरा के लिये कूच कर गए।26जुलाई को विद्रोहियों ने बाबू वीर कुँवर सिंह को अपना नेता मान लिया कुँवरसिंह नेविद्रोह की तैयारी पहले से ही कर रखी थी।राज्य भर के दस हजार देशभक्त सैनिक जुटाए गए।कुँवर सिंह ने अपने किले की मरम्मत की और बंदूक बनाने का एक कारखाना भी स्थापित किया।साथ ही इतनी खाद्य सामग्री एकत्र कर ली गई कि बीस हजार सैनिकों को छह माह तक भोजन की कठिनाई नहीं हो।27 जुलाई को कुँवर सिंह ने आरा पर अधिकार कर लिया।मजिस्ट्रेट एच०जी०बेक ने यूरोपियन अफसरों, स्त्रियोंऔर बच्चों को लेकर शहर के एक दो मंजिले मकान में आश्रय लिया।कुँवर सिंह ने उनको घेर लिया। मजिस्ट्रेट एच०जी०बेक ने लिखा है कि"मेंने एक बजे देखा कि विद्रोही सैनिक टुकड़ियां सरकारी अहाते में प्रवेश की।विद्रोहियों को खजाने पर पदस्त नजीरों के गार्ड ने स्वागत किया।विद्रोहियों द्वारा पहले खजाना लूट लिया गया।फिर कोठी पर धावा बोला गया।चारों तरफ से गोलियां चल रही थीं।''कुँवर सिंह आरा में अंग्रेज सैनिकों पर घेरा डाले रहे।दानापुर से आया कैप्टन डेनवर भी गोली का शिकार हुआ।आरा पर कुँवर सिंह का अधिकार हो गया।

बाबू कुँवर सिंह ने आरा में स्वतन्त्र सरकार की स्थापना की।पटना प्रमंडल के कमिश्नर सैमुअल ने बंगाल सरकार को सूचना भेजी की कुँवरसिंह। ने स्वंय को इस क्षेत्र का शासक घोषित कर दिया है।बाबू कुँवर सिंह ने शेख गुलाम याहिया को मजिस्ट्रेट नियुक्त किया।यद्यपि बाबू कुँवर सिंह बाद में आरा छोड़ने को बाध्य हुए फिर भी उन्होंने उस क्षेत्र में आयुक्त, जज एवं मजिस्ट्रेट की नियुक्तियां की।सैन्य संगठन चुस्त रखा। 

छापामार युद्ध के अगुआ कुँवरसिंह अंग्रेजों से युद्ध करते रहे।अनेक स्थलों पर अंग्रेजों से मुकाबला किया।बीबीगंज में घमासान लड़ाई हुई।बाबू कुँवरसिंह सम्पूर्ण भारत से गोरी हुकूमत को उखाड़ फेंकने के लिये कृत संकल्प थे। इस उद्देश्य की पूर्ति के लिए उन्होंने बिहार से बाहर जाने का निश्चय किया।कुँवर सिंह सासाराम से नोखा गए वहाँ कुछ दिन विश्राम कर रोहतास आये।फिर रामगढ़ बटालियन के विद्रोही सिपाहियों को लेकर मिर्जापुर होते हुए रीवा पहुँचे।लखनऊ के नवाब ने उन्हें शाही पोशाक और हजारों रुपये भेंट किये।,और आजमगढ़ जिले के लिए फरमान दिया।बाद में बाबू कुँवर सिंह अयोध्या पहुँचे।नाना पेशवा के साथ कानपुर की लड़ाई में हिस्सा लिया और आजमगढ़ के लिए चल पड़े।रास्ते  में कर्नल मिलमैन ने 22 मार्च1858 को उनपर चढ़ाई की।।इस संघर्ष में मिलमैन को छोड़ भाग जाना पड़ा।शमशेर कुँवर ने आजमगढ़ के किले पर कब्जा कर लिया।

पुनः16 अप्रैल1858 को लुगार्ड ने आजमगढ़ पर धावा बोल दिया।कुँवरसिंह ने लुगार्ड को धूल चटाया।लुगार्ड ने तब डगलस को  फ़ौज लेकर कुँवरसिंह का पीछा करने को भेजा।लेकिन डगलस के प्रयत्नों को भी कुँवर सिंह ने  विफल कर दिया।शिवपुर के निकट राजपूतों ने वीर बनकुड़ा कुँवरसिंह का अभिनन्दन कियाऔर उन्हें गंगा पार करने में सहायता की।डगलस वहाँ भी पहुँचा।परन्तु घमासान युद्ध में डगलस उनका कुछ भी नहीं बिगाड़ सका।परन्तु कुँवरसिंह घायल हो गये।दाहिने हाथ में उन्हें गोली लगी।उन्होंने यह सोच कर हाथ काटकर पुण्यसलिला माँ गंगा को अर्पित कर दिया कि कहीं उनका समूचा शरीर विषाक्त न हो जाये।सफलतापूर्वक गंगा पार कर जगदीश पुर पहुँच कर उन्होंने वैद्य से अपनी चिकित्सा कराई।कैप्टन ले ग्रैंड ने जगदीशपुर पर फिर आक्रमण कर दिया।कुँवरसिंह ने ब्रिटिश फौज को करारी मात दी तथा पुनः कुँवरसिंह विजयी हुए।

इसलिये23 अप्रैल विजय दिवस के रूप में मनाया जाता है।ठीक3 दिन बाद26 अप्रैल1858 को राष्ट्र नायक बाबू कुँवरसिंह का असामयिक देहावसान हो गया।उनकी मृत्यु ने राष्ट्र की शक्ति को झकझोर दिया।बाद में आम जनता से लेकर सेनानियों तक में इस घटना ने एक नए जोश, एक नई स्फूर्ति का संचार किया तथा भारत माता को जकड़ी जंजीरों को काटने में हमने सफलता पायी और हम स्वतन्त्र हुए।

उनके सम्मान में प्राचार्य मनोरंजन प्रसाद सिंह ने"वीर कुँवरसिंह''नामक कविता को लिखा था।जब यह कविता 1929 में रामवृक्ष वेणीपुरी के सम्पादन में निकलने वाली"युवक''में छपी तो ब्रिटिश सरकार ने इसे तत्काल प्रतिबंधित कर दिया।परन्तु इस कविता को वह लोकप्रियता नहीं मिली, संभवतः इसका कारण इसका प्रतिबंधित हो जाना हो, वीर कुँवरसिंह को वह लोकप्रियता नहीं मिल सकी जिसके वे हकदार थे।


प्रस्तुत है वह कविता

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"वीर कुंवर सिंह"


मस्ती की थी छिड़ी रागिनी, आजादी का गाना था।

भारत के कोने-कोने में, होगा यह बताया था ॥

उधर खड़ी थी लक्ष्मीबाई, और पेशवा नाना था।

इधर बिहारी वीर बाँकुरा, खड़ा हुआ मस्ताना था ॥

अस्सी वर्षों की हड्डी में जागा जोश पुराना था।

सब कहते हैं कुंवर सिंह भी बड़ा वीर मर्दाना था ॥

नस-नस में उज्जैन वंश का बहता रक्त पुराना था।

भोजराज का वंशज था, उसका भी राजघराना था।

बालपने से ही शिकार में उसका विकट निशाना था।

गोला-गोली, तेग-कटारी यही वीर का बना था।

उसी नींव पर युद्ध बुढ़ापे में भी उसने ठाना था।

सब कहते हैं कुंवर सिंह भी बड़ा वीर मर्दाना था॥

रामानुज जग जान, लखन ज्यों उनके सदा सहायी थे।

गोकुल में बलदाऊ के प्रिय जैसे कुंवर कन्हाई थे।

वीर श्रेष्ठ आल्हा के प्यारे ऊदल ज्यों सुखदायी थे।

अमर सिंह भी कुंवर सिंह के वैसे ही प्रिय भाई थे।

कुंवर सिंह का छोटा भाई वैसा ही मस्ताना था।

सब कहते हैं कुंवर सिंह भी बड़ा वीर मर्दाना था ॥

देश-देश में व्याप्त चहुँ दिशि उसकी सुयश कहानी थी।

उसके दया-धर्म की गाथा सबको याद जबानी थी॥

रूबेला था बदन और उसकी चौड़ी पेशानी थी।

जग-जाहिर जगदीशपुर में उसकी प्रिय रजधानी थी॥

वहीं कचहरी थी ऑफिस था, वहीं कुंवर का थाना था।

सब कहते हैं कुंवर सिंह भी बड़ा वीर मर्दाना था ॥

बचपन बीता खेल-कूद में और जवानी उद्यम में।

धीरे-धीरे कुंवर सिंह भी आ पहुँचे चौथेपन में॥

उसी समय घटना कुछ ऐसी घटी देश के जीवन में।

फैल गया विद्वेष फिरंगी के प्रति सहसा सबके मन में॥

खौल उठा सन् सत्तावन में सबका खून पुराना था।

सब कहते हैं कुंवर सिंह भी बड़ा वीर मर्दाना था।

बंगाल के बैरकपुर ने आग द्रोह की सुलगाई।

लपटें उसकी उठी जोर से दिल्ली औ' मेरठ धाई॥

काशी उठी लखनऊ जागा धूम ग्वालियर में छाई।

कानपुर में और प्रयाग में खड़े हो गए बलवा।

रणचंडी हुंकार कर उठी शत्रु हृदय थर्राना था।

सब कहते हैं कुंवर सिंह भी बड़ा वीर मर्दाना था।

सुनकर के आह्वान, समर में कूद पड़ी लक्ष्मीबाई।

स्वतंत्रता की ध्वजा पेशवा ने बिठूर में फहराई।

खोई दिल्ली फिर कुछ दिन को वापस मुगलों ने पाई।

थर-थर करने लगे फिरंगी उनके सिर शामत आई॥

काँप उठे अंग्रेज कहीं भी उनका नहीं ठिकाना था।

सब कहते हैं कुंवर सिंह भी बड़ा वीर मर्दाना था ॥

आग क्रांति की धधक उठी, पहुँची पटने में चिनगारी।

रणोन्मत्त योद्धा भी करने लगे युद्ध की तैयारी॥

चंद्रगुप्त के वंशज जागे करने माँ की रखवारी।

शेरशाह का खून लगा करने तेजी से रफ्तारी॥

पीर अली फाँसी पर लटका, वीर बहादुर दाना था।

सब कहते हैं कुंवर सिंह भी बड़ा वीर मर्दाना था ॥

पटने का अंग्रेज कमिश्नर टेलर जी में घबराया।

चिट्ठी भेज जमींदारों को उसने घर पर बुलवाया ।

बुद्धि भ्रष्ट थी हुई और आँखों पर था परदा छाया।

कितनों ही को जेल दिया और फाँसी पर भी लटकाया॥

कुंवर सिंह के नाम किया उसने जारी परवाना था।

सब कहते हैं कुंवर सिंह भी बड़ा वीर मर्दाना था।

कुंवर सिंह ने सोचा जब उनके मुंशी की हुई तलाश।

दगाबाज अब हुए फिरंगी इनका जरा नहीं विश्वास ॥

उसी समय पहुँचे विद्रोही दानापुर से उनके पास।

हाथ जोड़कर बोले वे सरकार आपकी ही है आस

सिंहनाद कर उठा केसरी उसे समर में जाना था।

सब कहते हैं कुंवर सिंह भी बड़ा वीर मर्दाना था ।

गंगा तट पर अर्धरात्रि को हुई लड़ाई जोरों से।

रणोन्मत्त हो देसी सैनिक उलझ पड़े जब गोरों से॥

शून्य दिशाएँ काँप उठी तब बंदूकों के शोरों से।

लेकिन टिके न गोरे भागे प्राण बचाकर चोरों से॥

कुछ क्षण में अंग्रेज फौज का वहाँ न शेष निशाना था।

सब कहते हैं कुंवर सिंह भी बड़ा वीर मर्दाना था ॥

आरा पर तब हुई चढ़ाई, हुआ कचहरी पर अधिकार।

फैल गया तब देश-देश में कुंवर सिंह का जय-जयकार॥

लोप हो गई तब आरा से बिलकुल अंग्रेजी सरकार।

नहीं जरा भी होने पाया मगर किसी पर अत्याचार ।।

भाग छिपे अंग्रेज किले में, सब लुट चुका खजाना था।

सब कहते हैं कुंवर सिंह भी बड़ा वीर मर्दाना था ॥

खबर मिली आरा की तो, आयर बक्सर से चढ़ धाया।

विकट तोपखाना था, सँग में फौजें था काफी लाया ॥

देशद्रोहियों का भी भारी दल था उसके संग आया।

कब तक टिकते कुंवर सिंह आरे से उखड़ गया पाया।

अपने ही जब बेगाने थे, उलटा हुआ जमाना था।

सब कहते हैं कुंवर सिंह भी बड़ा वीर मर्दाना था॥

हुआ युद्ध जगदीशपुर में मचा वहाँ पूरा घमासान।

अमर सिंह का तेज देखकर दुश्मन दल भी था हैरान ॥

महाराज डुमराव वहीं थे, ज्यों मुगलों में राजा मान।

अमर सिंह झपटा तेजी से लेकर उन पर नग्न कृपाण॥

झपटा जैसे मानसिंह पर वह प्रताप सिंह राणा था।

सब कहते हैं कुंवर सिंह भी बड़ा वीर मर्दाना था ।

हौदे में थे महाराज, पड़ गई तेग की खाली वार।

नाक कट गई पीलवान की हाथी भाग चला बाजार ॥

अमर सिंह भी बीच सैन्य से निकल गया सबको ललकार।

दादाजी थे चले गए, फिर लड़ने की थी क्या दरकार।

पड़ा हुआ था शून्य महल, जगदीशपुर अब वीराना था।

सब कहते हैं कुंवर सिंह भी बड़ा वीर मर्दाना था ॥

राजा कुंवर सिंह जा पहुंचे, अतरौलिया के मैदान

आ पहुँचे अंग्रेज उधर से, हुआ परस्पर युद्ध महान॥

हटा वीर कुछ कौशलपूर्वक, झपट पड़ा फिर बाज समान।

भाग चले मिलमैन बहादुर बैल-शकट पर लेकर प्राण ॥

आकर छिपे किले के अंदर, उनको प्राण बचाना था।

सब कहते हैं कुंवर सिंह भी बड़ा वीर मर्दाना था ॥

विजय राज कुंवर सिंह जो आजमगढ़ पर चढ़ गया।

कर्नल डेम्स फौज ले सँग में, उससे लड़ने को आया।

किंतु कुंवर सिंह के साथ तनिक भी नहीं समझ में टिक पाया।

भागा वह भी गढ़ के अंदर, करके प्राणों की माया॥

आजमगढ़ में कुंवर सिंह का फहरा उठा निशाना था।

सब कहते हैं कुंवर सिंह भी बड़ा वीर मर्दाना था ॥

चले बनारस, तब कैनिंग के जी में घबराहट छाई।

अस्सी वर्षों के इस बूढ़े ने अजीब आफत ढाई॥

लॉर्ड मार्क के संग फौजें सन्मुख समझ में आई।

किंतु नहीं टिक सकीं देर तक उनने भी मुँह की खाई॥

छिपा दुर्ग में सेनापति, उसका भी वहीं ठिकाना था।

सब कहते हैं कुंवर सिंह भी बड़ा वीर मर्दाना था ॥

आगे बढ़ते चले कुँअर, था ध्यान लगा झाँसी की ओर।

सुनी मृत्यु लक्ष्मीबाई की लौट पड़े तब बढ़ना छोड़॥

पीछे से पहुँचा लगर्ड, थी लगी प्राण की मानो होड़।

गाजीपुर के पास पहुँचकर, हुआ युद्ध पूरा घनघोर॥

विजय हाथ था कुंवर सिंह के किसको प्राण गँवाना था।

सब कहते हैं कुंवर सिंह भी बड़ा वीर मर्दाना था।

डगलस आकर जुटा उधर से, लेकर के सेना भरपूर।

शत्रु सैन्य था प्रबल और सब ओर घिर गया था वह शर॥

लगातार थी लड़ी लड़ाई थे थककर सब सैनिक चूर।

चकमा देकर चला बहादुर, दुश्मन दल था पीछे दूर ।।

पहुँची सेना गंगा तट उस पार नाव से जाना था।

सब कहते हैं कुंवर सिंह भी बडा वीर मर्दाना था ॥

दुश्मन तट पर पहुँच गए जब कुंवर सिंह करते थे पार।

गोली आकर लगी बाँह में दायाँ हाथ हुआ बेकार।

हुई अपावन बाहु जान बस, काट दिया लेकर तलवार।

ले गंगे, यह हाथ आज तुझको ही देता हूँ उपहार॥

वीर मात का वही जाह्नवी को मानो नजराना था।

सब कहते हैं कुंवर सिंह भी बड़ा वीर मर्दाना था ॥

इस प्रकार कर चकित शत्रु दल, कुंवर सिंह फिर घर आए।

फहरा उठी पताका गढ़ पर दुश्मन बेहद घबराए॥

फौज लिये लीग्रैंड चले, पर वे भी जीत नहीं पाए।

विजयी थे फिर कुंवर सिंह अंग्रेज काम रण में आए ।

घायल था वह वीर किंतु आसान न उसे हराना था।

सब कहते हैं कुंवर सिंह भी बड़ा वीर मर्दाना था ॥

यही कुंवर सिंह की अंतिम विजय थी और यही अंतिम संग्राम।

आठ महीने लड़ा शत्रु से बिना किए कुछ भी विश्राम॥

घायल था वह वृद्ध केसरी, थी सब शक्ति हुई बेकाम।

अधिक नहीं टिक सका और वह वीर चला थककर सुरधाम।॥

तब भी फहरा दुर्ग पर उसका विजय निशाना था।

सब कहते हैं कुंवर सिंह भी बड़ा वीर मर्दाना था ॥

बाद मृत्यु के अंग्रेजों की फौज वहाँ गढ़ पर आई।

कोई नहीं वहाँ था, थी महलों में निर्जनता छाई॥

किंतु शत्रु ने शून्य भवन पर भी प्रतिहिंसा दिखलाई।

देवालय विध्वंस किया और देव-मूर्तियाँ गिरवाई॥

दुश्मन दल की दानवता का कुछ भी नहीं ठिकाना था।

सब कहते हैं कुंवर सिंह भी बड़ा वीर मर्दाना था ॥



प्रेषक

हर्ष नारायण दास

प्रधानाध्यापक

मध्य विद्यालय घीवहा

फारबिसगंज, अररिया

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