जयंतियों के बहाने- मो. ज़ाहिद हुसैन - Teachers of Bihar

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Tuesday 23 April 2024

जयंतियों के बहाने- मो. ज़ाहिद हुसैन

             

   

   इतिहास क्या है? विरासत है। यह घटनाओं का तिथि गत विवरण मात्र नहीं है,इसमें संवेदना भी है और यही संवेदना इंसान या समाज का वर्तमान को जन्म देती है;  और भविष्य को तय करती है। विरासत को हम संजोकर  अपनी सभ्यता एवं संस्कृति को संरक्षित कर सकते हैं, क्योंकि संस्कृति हमें पहचान दिलाती है। आगे बढ़ने का मार्ग बतलाती है। यदि किसी व्यक्ति या समूह की संस्कृति उससे छीन ली जाए तो उनका सब कुछ छिन जाएगा, वह लगभग मृतप्राय हो जाएगा। वह किस मुँह से कहेगा कि हमारे पूर्वजों का इतिहास शानदार रहा है। कोई यदि कहता है कि मेरे परदादा एक स्वतंत्रता सेनानी थे तो उनकी इज्ज़त समाज में बढ़ जाती है। उनका नैतिक पक्ष प्रबल हो जाता है। उनके बुजुर्गों की क़ुर्बानी की अहमियत लोगों को समझ में आती है और हां, संस्कृति ठोस रूप में तो स्थानांतरित होती ही है, लेकिन उससे ज्यादा विचार रूप में यह अगली पीढ़ी को स्थानांतरित होती है। यदि हम अशोक स्तंभों को देखते हैं तो अनायास याद आ जाती है कि सम्राट अशोक का कलिंग युद्ध उसके जीवन का एक ऐसा मोड़ था जो उसके जीवन को बदलकर रख दिया; तब हम समझ पाते हैं कि उनके हृदय परिवर्तन के उपरांत पत्थर के लकीरों के रूप में उकेरे गए हरफ़ों में धम्म का दर्शन है, बुद्ध का शील है। लोककल्यान का मंत्र है। इसे समझने की  आवश्यकता है। यदि हम बाबू वीर कुमार सिंह की जयंती मनाते हैं तो हमें उनके बलिदानों से प्रेरणा मिलती है। यदि हम महाराणा प्रताप को याद करते हैं तो इस मर्म को समझने का प्रयास करते हैं कि एक महाराणा आखिर महलों के ऐश्वर्य को छोड़कर जंगलों में क्यों चला जाता है? झाला मानसिंह, हाकीम अली सुरी और भामाशाह जैसे उनके सेनापतियों के बारे में जानकर उस समय के समाज की समरसता, प्रेम तथा सौहार्द को समझने का अवसर हमें मिलता है। उदयपुर के मोती मगरी के किले में महाराणा चेतक पर सवार हैं। हाकीम अली सुरी तोप चला रहे हैं। ये सब देख किसी के भी दिल में अनायास देशभक्ति का उबाल पैदा होता है।

       हम जानते हैं कि पाठ्यचर्या सैद्धांतिक होती है, जिसका ठोस आकार पाठ्यक्रम के द्वारा देने का काम किया जाता है,उदाहरण के तौर पर; यदि हम अगली पीढ़ी को देशभक्त बनाना चाहते हैं तो पाठ्य- पुस्तकों में देशभक्तों के साहसपूर्ण एवं गरिमामयी बलिदान को स्थान देना होगा। नवयुवकों के रगों में देशभक्ति का जुनून जब भरेगा तब वे अपने वतन के लिए सब कुछ करने के लिए तैयार हो जाएगा। हमें उन्हें भगत सिंह, खुदीराम बोस, अशफ़ाक उल्लाह, पीर अली और वीर कुंवर सिंह के व्यक्तित्व, कारनामे और विचारधारा को बतलाना होगा। यदि हम महात्मा बुद्ध का दर्शन या वर्धमान महावीर की शिक्षाओं का अध्ययन करते हैं तो हमारा नैतिक पक्ष प्रबल होता है। यही सब बातें बच्चों के अंदर महापुरुष के जीवन एवं कर्म से समझाने की जरूरत है। 

      इतिहासकार डॉ॰ लक्ष्मीकांत सिंह अपनी पुस्तक ‘हिस्टोरिकल रिकार्ड्स ऑफ़ अशोका द ग्रेट’ में लिखते हैं कि अशोक पर लगाए गए इल्ज़ाम बेबुनियाद हैं। उन्होंने अपने 99 भाइयों को नहीं मारा। यह अनैतिहासिक एवं अवैज्ञानिक दुष्प्रचार है। इसके पीछे बौद्ध धम्म और ब्राह्मण धर्म के बीच का संघर्ष है। नालंदा म्यूजियम में गेट के अंदर दाहिनी तरफ प्रवेश करते ही एक बड़ी मूर्ति है, जिसमें शिव और पार्वती ज़मीन पर लेटे हुए हैं और बौद्ध देवी-देवता उनपर चढ़कर उन्हें पद् दलित कर रहे हैं। मूर्तिकार

की अभिव्यक्ति बौद्ध धर्म के देवी- देवताओं को शिव-पार्वती से श्रेष्ठ होने को दर्शाता है। यह मूर्ति दो विपरीत विचारों के बीच संघर्ष का बड़ा साक्ष्य है। बौद्ध धम्म में अवतारवाद नहीं है। देवी-देवता नहीं हैं, लेकिन आगे सभी विकृतियां बौद्ध धम्म में साजिशन समाहित कर दी गईं। बौद्ध धम्म में कर्मकांड का प्रवेश आत्मघाती साबित हुआ। हीनयान से महायान, महायान से वज्रयान, वज्रयान से तंत्रयान आदि; सभी धारणाएं महात्मा बुद्ध के दर्शन के विपरीत हैं। किसी विद्वान ने कहा है कि यदि आज महात्मा बुद्ध धरती पर अपने अनुयायियों के बीच आ जाएं तो उनके अनुयायी महात्मा बुद्ध को नहीं पहुंचान पाएंगें और नहीं महात्मा बुद्ध ही अपने अनुयायियों को पहुंचनेगें; क्योंकि महात्मा बुद्ध ने जो मार्ग बतलाया था। उनके अनुयायी उनके बताए गए मार्ग पर चल ही नहीं रहे होते हैं। वह तो कुछ और ही होता है और अलग ही दिखता है। लोगों की कथनी और करनी अंतर होता है। महात्मा बुद्ध का शील अंशमात्र भी किसी में नजर नहीं आता। इस कालखंड के इतिहास के पन्ने पर कुछ ख़ून के छींटें भी हैं,जो रही सही थी, उसका कसर भी निकल गया।

     दुनिया को डेमोक्रेटिक किंगडम की अवधारणा देने वाला अशोक, जिस पर जापान और इंग्लैंड आदि देश चल रहे हैं,वह इतना क्रूर कैसे हो गया? अशोक धम्म का सबसे बड़ा प्रचारक था। उन्होंने भारत ही नहीं बल्कि भारत के बाहर भी शिलालेख,स्तंभ एवं स्तूप बनवाएं, जिससे विरोधी पक्ष में चीढ़ तो थी। सो, उन्होंने साहित्य के हथियार से अशोक के चरित्र को धूमिल करने का प्रयास किया गया। 

   कलम की वार लाखों तलवारों के वार से ज्यादा घातक होती है। एक बार यदि हम क़लम ग़लत नियत से चलाते हैं,तो उससे पीढ़ियों दर पीढ़ियों का कत्लेआम होता रहता है और इतिहास में ऐसा बहुत हुआ है। उसका प्रभाव आज भी दिखता है। इसलिए कलम जब भी चलाएं तो सोच-समझ कर चलाएं। यह किसी की जिंदगी और मौत का सवाल हो सकता है।

      महान व्यक्तियों की जयंतियां हम क्यों मनाते हैं: उनके जीवन, कर्म और व्यवहार से कुछ सीखने के लिए। इसका मुख्य उद्देश्य यही होता है कि हम उनके आदर्शों पर चलें और अच्छे कार्यों को करने के लिए प्रेरणा लें। सीखने के लिए अभिप्रेरणा का काफी महत्व है। महात्मा ज्योतिबा फुले जब एक दोस्त के बारात में गए तो उन्हें लोगों ने बारात से नीच कुल कह कर निकाल दिया,तब उन्हें प्रेरणा मिली कि हमारे समाज में काफी भेदभाव है; जिसे शिक्षा से ही दूर किया जा सकता है। उन्होंने सबसे पहले बालिकाओं के लिए विद्यालय खोला। उन्हें पत्नी सावित्रीबाई फुले और एक शिक्षिका शेख फ़तिमा का काफी सहयोग मिला। माउंटेन मैन दशरथ मांझी को आखिर कैसे प्रेरणा मिली कि उन्होंने शिरीं-फरहाद की तरह पहाड़ों को तोड़ डाला। उनकी पत्नी बीमार रहती थी, जिस हॉस्पिटल दिखाने जाने के लिए मिलों दूर पैदल जाना पड़ता था। यह पूरे गांव की समस्या थी। उन्होंने ठान लिया और पहाड़ को भी राई बनाकर रख दिया। पत्थर के सीने को चीरकर आखिर उन्होंने रास्ता बना ही लिया। अतः अभिप्रेरणा विद्यार्थियों के जीवन में ज्योति जगाने का कार्य करती है। महापुरुषों की जयंतियां मनानी चाहिए। उनके बारे में हर पहलू को बताया जाना चाहिए। बच्चों के वर्ग एवं स्तर के अनुसार,महापुरूषों के उसूलों को सरल भाषा में व्यावहारिक रूप से समझाना चाहिए। आज के संदर्भ में हम उनके आदर्शों पर कैसे चल सकते हैं? स्वतंत्रता सेनानियों ने गुलाम भारत में संघर्ष कर अपनी प्राणों की आहुति देकर हमें आजादी दिलाई, लेकिन इसका फ़िक्र तो हमें होना चाहिए कि आज़ादी को हम कैसे अक्षुण्ण बनाए रखें और अपने अधिकारों की रक्षा कैसे करें?

                 


 मो. ज़ाहिद हुसैन 

प्रधानाध्यापक     

उत्क्रमित मध्य विद्यालय मलहबिगहा, चंडी, नालंदा

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