जीवन की वास्तविकता पर आधारित आलेख।
साधारण अर्थ में 'मालिक' का अर्थ है मास्टर, प्रभु, पति या देश का प्रधानमंत्री। इस संसार में हर व्यक्ति का कोई-न- कोई मालिक होता ही है जो कि उनकी रक्षा तथा देखभाल की जिम्मेदारी अपने ऊपर लेता है।
'मालिक' शब्द कई अर्थों में प्रयोग किया जाता है, जिसे साधारण अर्थ में मास्टर कहा जाता है। दूसरे में ईश्वर जिसने सबों को बनाया है, जिसके भरोसे लोगों की जिन्दगी टिकी हुई है। जैसे "ऐ मालिक तेरे बंदे हम, ऐसे हो हमारे करम।" यानि एक ऐसी अदृश्य शक्ति जो कि संपूर्ण संसार का निर्माण और संचालन करती है जिसके भरोसे सारी सृष्टि चल रही है। मालिक की सुदृष्टि के कारण ही हम सभी अपने गंतव्य स्थान की ओर बढ़ रहे हैं। जिस मालिक के सहारे हम जीवन में लगातार आगे बढ़ने के लिये प्रेरित है, हमलोगों को उस मालिक के बताये गये मार्ग पर निरंतर आगे बढ़ने की बात सोचनी चाहिये।
'मालिक' शब्द को समझाने के लिये सबसे पहले मैं राज्य के चार प्रमुख तत्वों में 'सरकार' की बात करता हूँ। सरकार से उपर संप्रभुता की बात है,जो कि राज्य की सर्वोच्च शक्ति है। इसी प्रकार देश को चलाने के लिये प्रधानमंत्री, प्रांत को चलाने के लिये मुख्यमंत्री, जिला को चलाने के लिये जिलाधिकारी, विद्यालय को चलाने के लिये विद्यालय प्रधान तथा घर को चलाने के लिये उस घर का सबसे उम्रदराज सदस्य ही मालिक होता है।
दुनिया में कोई भी व्यक्ति शत- प्रतिशत सही या गलत नहीं हो सकता है तथा प्रत्येक व्यक्ति में गुण के साथ-साथ अवगुणों का भी वास होता ही है। गुलाब देखने में बहुत खुबसूरत तथा सुगंधित होता है लेकिन उसमें काँटे भी हैं। उसी तरह किसी भी संस्था या संगठन का प्रधान (मालिक) जो हमेशा चाहता है कि वह सुन्दर प्रबंधन दे, लेकिन वह चाहे जितना भी अच्छा करे कुछ न कुछ कमी रह ही जाती है जिसके कारण उसकी आलोचना भी अवश्यमभावी है। इसके बाबजूद भी मालिक अपने कर्तव्य का सही निर्वहन करते हुए सुन्दर तरीके से उस संस्था को चलाने का प्रयास करता है। सुबह नींद से जगने के बाद से रात में सोने के पहले तक मालिक का यह परम कर्तव्य है कि वह उस संस्था के सभी अच्छाइयों तथा बुराइयों का आकलन करते हुए एक सुन्दर प्रशासनिक व्यवस्था स्थापित करने का प्रयास करे। साथ ही मालिक के परिवार के सदस्यों को भी चाहिये कि वह मालिक के द्वारा दिए गये दिशा-निर्देशों का पालन करे। इसके साथ-साथ मालिक को एक अच्छा प्रशासक भी होना चाहिये तथा आवश्यकता पड़ने पर उसे तानाशाह भी बनने की जरूरत है। उसे अपने सदस्यों के सुख-दुःख को भी समझने की शक्ति होनी चाहिए।
एक अच्छा 'मालिक' जीवन में वही हो सकता है,जो परिवार के सभी सदस्यों के लिए सोचता है। मालिक कभी भी जीवन में अपने लिये नहीं सोचता। जब मालिक अपने लिये सोचने लगेगा तो वह अच्छा मालिक नहीं बन सकता है। इसलिए परिवार के अन्य सदस्यों को भी मालिक के लिए सोचना चाहिए, तभी परिवार ठीक से चल सकता है।
अंत में मेरा यह मानना है कि यदि जीवन में अच्छा करना है तो मालिक के द्वारा दिये गये दिशा- निर्देशों का पालन अवश्य करना चाहिये। साथ ही मालिक को भी चाहिए कि किसी भी प्रकार का कार्य करते समय परिवार के सदस्यों से विचार-विमर्श करे। यदि संस्था का मालिक इस प्रकार का कार्य नहीं करता है तो वह स्वेच्छाचारी हो जायेगा तथा उसकी मालिक गिरी एवं व्यवस्था अस्त-व्यस्त हो जायेगी।
श्री विमल कुमार"विनोद"की लेखनी से।
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