भारतीय नववर्ष एक अवलोकन - सुरेश कुमार गौरव - Teachers of Bihar

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Thursday 11 April 2024

भारतीय नववर्ष एक अवलोकन - सुरेश कुमार गौरव



🌟 हम भारतीयों का काल गणना विक्रम संवत से निर्धारित होती है। इसका प्रारंभ चैत्र शुक्ल प्रतिपदा से होता है। इसी दिन भारत वर्ष में काल गणना की शुरुआत मानी जाती है।


 🌟 हिन्दी नव वर्ष की शुरुआत का प्रथम माह चैत्र वसंत ऋतु से मानी गई है।। इस ऋतु में नव-पौध का आगमन होता है। वृक्ष, लता फूलों से लदकते नजर आते हैं। इस ऋतु को मधुमास भी कहते हैं। लेखकों कवियों और विवेचकों ने चैत्र मास की खूब प्रशंसा की है और इसके बारे में विस्तृत ढ़ंग से खूब लिखा भी गया है। यह ऋतु व नव मास या कहें की नव जीवन लेकर आने वाला नव नव वर्ष ही है जो चराचर को प्रेमाविष्ट कर पूरी धरती को नाना प्रकार के फूलों से अलंकृत कर लोगों में नववर्ष की उल्लास, उमंग तथा मादकाता का संचार कर नव वर्ष के आगमन का बोध कराती है।


🌟 मान्यताओं में और पढ़ने से पता चलता है कि इस नव संवत्सर के आरंभकर्ता विराट सम्राट राजा विक्रमादित्य थे। जब देश की अक्षुण्ण भारतीय संस्कृति और शांति को भंग करने के उद्देश्य से उत्तर पश्चिम और उत्तर से विदेशी शासकों सहित क्रूर था के लिए विख्यात जातियों ने इस देश पर अमानवीय अत्याचार किए और कई आक्रमण भी किए। हिंसक प्रवृत्ति के चलते इन्होंने अनेक भूखंडों पर अपना अधिकार कर लिया और बहुत सारे अत्याचार किए जिनमें एक क्रूर जाति के शक तथा हूण दोनों शामिल थे।

 

🌟 ये सभी आक्रांता पारस कुश से पार करते हुए सिंध आए थे।

🌟 सिंध से सौराष्ट्र, गुजरात एवं महाराष्ट्र में धीरे-धीरे फैलते चले गए और दक्षिण गुजरात से इन लोगों ने उज्जयिनी पर आक्रमण किया। शकों ने समूची उज्जयिनी को पूरी तरह विध्वंस कर दिया और इस तरह इनका साम्राज्य शक विदिशा और मथुरा तक फैल गया। इनके कू्र अत्याचारों से जनता में त्राहि-त्राहि मच गई तो मालवा के प्रमुख नायक विक्रमादित्य के नेतृत्व में देश की जनता और राजशक्तियां उठ खड़ी हुईं और इन विदेशियों को खदेड़ कर बाहर कर दिया गया। 

 

🌟 इस पराक्रमी वीर महावीर का जन्म अवन्ति देश की प्राचीन नगर उज्जयिनी में हुआ था जिनके पिता महेन्द्रादित्य गणनायक थे और माता मलयवती थीं। इस दंपत्ति ने पुत्र प्राप्ति के लिए भगवान भूतेश्वर से अनेक प्रार्थनाएं एवं व्रत उपवास किए। सारे देश शक के उन्मूलन और आतंक मुक्ति के लिए विक्रमादित्य को अनेक बार उलझना पड़ा जिसकी भयंकर लड़ाई सिंध नदी के आस-पास करूर नामक स्थान पर हुई जिसमें शकों ने अपनी पराजय स्वीकार को स्वीकार किया।

 

🌟 इस तरह महाराज विक्रमादित्य ने शकों को पराजित कर एक नए युग का सूत्रपात किया जिसे विक्रमी शक संवत्सर कहा जाता है।

 

🌟 राजा विक्रमादित्य की वीरता तथा युद्ध कौशल पर अनेक प्रशस्ति पत्र तथा शिलालेख लिखे गए जिसमें यह लिखा गया कि ईसा पूर्व 57 में शकों पर भीषण आक्रमण कर विजय प्राप्त की गई थी।

 

🌟इतना ही नहीं शकों को उनके गढ़ अरब में भी करारी मात दी और अरब विजय के उपलक्ष्य में मक्का में महाकाल भगवान शिव का मंदिर बनवाया।


🌟 वे लोग धन्य हैं जिन्होंने सम्राट विक्रमादित्य के समय जन्म लिया। सम्राट पृथ्वीराज के शासन काल तक विक्रमादित्य के अनुसार शासन व्यवस्था संचालित रही जो बाद में मुगल काल के दौरान हिजरी सन् का प्रारंभ हुआ। किंतु यह सर्वमान्य नहीं हो सका, क्योंकि ज्योतिषियों के अनुसार सूर्य सिद्धांत का मान गणित और त्योहारों की परिकल्पना सूर्य ग्रहण, चंद्र ग्रहण का गणित इसी शक संवत्सर से ही होता है। जिसमें एक दिन का भी अंतर नहीं होता।

 

 🌟 इस मास व नव वर्ष के शुरुआत से ही भारतीय संस्कृति के अनुसार सभी लोग सात्विक भोजन व्रत उपवास, फलाहार कर नए भगवा झंडे तोरण द्वार पर बांधकर हर्षोल्लास से मनाते हैं।

 

🌟 इस तरह भारतीय संस्कृति और जीवन का विक्रमी संवत्सर से गहरा संबंध है लोग इन्हीं दिनों तामसी भोजन, मांस मदिरा का त्याग भी कर देते हैं।


🌟 अंग्रेजों ने अपने देश भारतवर्ष पर चार सौ साल शासन किया। इस कारण अंग्रेजी कैलैण्डर की एक समय यहां मान्यता मिल चुकी थी। लेकिन अंग्रेजी सत्ता के द्वारा सत्ता स्थानांरण के बाद अब धीरे-धीरे पुन: भारतीय करण की ओर बढ़ रही है। हमें अपनी संस्कृति को हर हाल में बचाकर रखने की आवश्यकता है। आप सबों को भारतीय नव वर्ष की असीम शुभकामनाएं।


@सुरेश कुमार गौरव,शिक्षक,पटना (बिहार)की कलम से🙏

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