राष्ट्रीय आंदोलन एक सार्वभौमिक और जन-आंदोलन था। इसी वजह से इस आंदोलन में किसी एक स्थान या किसी एक व्यक्ति की विशेष महत्ता शामिल नही थी, वरन हर क्षेत्र, हर जन ने इस हवन में कुछ-न-कुछ योगदान की आहूति अर्पित की थी। इसी कड़ी में खगड़िया का नाम भी अग्रगण्य रहा है। भागलपुर, बेगूसराय, मुंगेर आदि से सटे होने के कारण क्रांति युद्ध में यहाँ के लोगों ने अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। यह बूढ़ी गंडक नदी के किनारे स्थित तो है ही साथ ही साथ सात नदियों यथा:- गंगा, कमला, बालन, कोसी, बूढ़ी- गंडक, करहा, काली-कोसी और बागमती से घिरा हुआ है। इस क्षेत्र के लोगों का स्वतंत्रता संग्राम में विशेष योगदान रहा है।
इस कड़ी में रामनगर का नाम अग्रणी है या यहाँ के प्रमुख व्यक्ति स्वर्गीय रामसेवक सिंह स्वतंत्रता सेनानी थे। वे स्वतंत्रता संग्राम की लड़ाई में कई बार जेल भी जा चुके थे ।
श्यामलाल नेशनल हाई स्कूल- इसकी स्थापना 1910 में श्री श्याम लाल जी ने भूमि प्रदान कर की थी। इस विद्यालय को क्रांतिकारियों का अड्डा माना जाता है। यहाँ के शिक्षकों और छात्रों ने स्वतंत्रता संग्राम में अति महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी, परंतु आज विभागीय उदासीनता की वजह से यह जीर्ण-शीर्ण अवस्था में है।
इसके साथ ही खगड़िया जिला अंतर्गत परबत्ता प्रखंड के दर्जनों क्रांतिकारियों ने अपना सर्वस्व न्योछावर किया था। कबेला पंचायत के "स्वर्गीय शालिग्राम मिश्र जी" का नाम हर किसी की जुबान पर है। वे आजाद जी के विचारों से प्रेरित होकर स्वतंत्रता संग्राम में कूद पड़े थे। सन 1930 ईस्वी में पिकेटिंग में भाग लेने के क्रम में अंग्रेजों के जबरदस्त कोड़े खाए, मगर क्या मजाल कि मुँह से "भारत माता की जय" के अलावा कोई और शब्द निकल पाया हो। मात्र 13 साल की उम्र में ही उन्हें छः माह का सश्रम कारावास झेलना पड़ा था। इसके अलावे 1942 के संग्राम में भी यह पीछे नहीं हटे और अपना सर्वस्व भारत में के चरणों मे अर्पित कर दिया।
इनके साथ ही भरतखंड निवासी स्वर्गीय दीनानाथ मिश्र के योगदान को भी नहीं भूलाया जा सकता है। कहते हैं कि जब जयप्रकाश नारायण, डॉ अरुणा अशरफ अली एवं लोहिया जी नेपाल के जेल में बंद थे तो उन्हें छुड़ाने में स्वर्गीय दीनानाथ मिश्र जी ने अथक परिश्रम किया था। इतना ही नहीं 1942 के आंदोलन में तो इन्होंने नारायणपुर और पसराहा स्टेशन के बीच रेलवे लाइन को ही उखाड़ फेंका था। इस वजह से अंग्रेजी सरकार ने इन्हें जिंदा या मुर्दा पकड़ने हेतु इनाम भी रखा था। बाद में गिरफ्तारी कर इन्हें फाँसी की सजा सुना दी गई थी ।
स्वतंत्रता संग्राम की लड़ाई में यदि चौथम प्रखंड के निवासी स्वर्गीय महेंद्र चौधरी जी का नाम नहीं लिया तो क्या लिया ? हँसते-हंँसते आजादी हेतु फाँसी पर झूलने वाले महेंद्र चौधरी जी का जन्म एक साधारण से परिवार में हुआ था लेकिन असाधारण देशभक्ति की वजह से वह अंग्रेजी सरकार की आँखों का काँटा बन चुके थे। कहते हैं कि इनकी फाँसी की सजा से स्वयं महात्मा गाँधी तक आहत हुए थे। उन्होंने उनकी सजा को कम करने हेतु ब्रिटिश हुकूमत को पत्र भी लिखा था, परंतु कोई परिणाम नहीं निकला ; क्योंकि उनके जोश और जुनून से अंग्रेजी सरकार भयभीत थी और अंततः 6 अगस्त को इन्हें फाँसी पर लटका दिया गया।
मगर अफसोस कि न तो इन सभी क्रांतिकारियों के योगदानों का और न ही हमने अपने सांस्कृतिक विरासत का ही कोई मूल्य समझा । आज तक न तो इन बलिदानियों की एक प्रतिमा ही बन पाई और न ही इस ऐतिहासिक स्थल को बिखरने से बचा पाए रहे हैं। बिहार राज्य अंतर्गत प्रत्येक प्रखंडों से हमें बलिदानों की गूँज सुनाई पड़ जाती है। इन क्रांतिकारियों ने देशहित में अपना सर्वस्व न्योछावर कर दिया। स्वर्गीय रामसेवक सिंह, मुरली मनोहर प्रसाद , धनिक लाल मंडल, स्वर्गीय शालिग्राम मिश्र, स्वर्गीय जमुना चौधरी, स्वर्गीय सुरेश चंद्र मिश्र, स्वर्गीय सूर्यनारायण शर्मा आदि दर्जनों स्वतंत्रता सेनानी के बलिदानों की गाथा हमें सुनने को मिलती है ।
भले ही इन वीर सेनानियों के नाम इतिहास के पन्नों में अंकित नहीं है ,किंतु आज भी वो अमर हैं। यहाँ के बुजुर्गों से उनकी गाथाएँ सुनने को मिलती है। मगर सोच यह भी है कि जब यह बुजुर्ग न रहेंगे तब क्या होगा ? भारत माँ की सेवा में प्राण न्योछावर करने वाले इन सेनानियों की जीवनी को पाठ्य पुस्तकों में शामिल करवाने का मैं सरकार से अनुग्रह करती हूँ। अंत में उन सेनानियों को नमन करती हूँ। अपनी ही इन पंक्तियों के माध्यम से
उन शहीदों को नमन है।
हँस रहा जिनसे चमन है।।
आज वह नक्षत्र बनकर,
देखते होंगे वतन को।
आत्मा उल्लसित होकर,
तड़पाती होगी न मन को।
गूँजता जिनसे गगन है।
उन शहीदों को नमन है।।
डॉ स्वराक्षी स्वरा
खगड़िया, बिहार
No comments:
Post a Comment