2015 में 10 फरवरी को राष्ट्रीय कृमि निवारण दिवस की शुरुआत की गई थी, जिसे भारत के 11 राज्यों/ संघ शासित क्षेत्रों के सरकारी और सरकारी सहायता प्राप्त स्कूलों और आंगनवाड़ी केंद्रों के ज़रिये 1 से लेकर 14 वर्ष की उम्र के बच्चों को ध्यान में रखकर क्रियान्वित किया गया।
उसके बाद से पूरे देश में इस कार्यक्रम को लागू किया गया. राष्ट्रीय कृमि निवारण दिवस के इस चरण में 32 करोड़ बच्चों तक पहुंचने का लक्ष्य है।
राष्ट्रीय कृमि निवारण दिवस एक दिन का कार्यक्रम है लेकिन पहले दिन छुटे बच्चों को 15 फरवरी को माप अप सेशंस के तहत अभियान को पूर्ण सफल बनाया जाता है। इसका उद्देश्य शिक्षा और जीवन की गुणवत्ता तक पहुँच , पोषण संबंधी स्थिति एवं बच्चों के समग्र स्वास्थ्य में सुधार के लिये बच्चों को परजीवी आंत्र कृमि संक्रमण से मुक्त करने के लिये दवा उपलब्ध कराना और जागरूक भी करना है।
इस कार्यक्रम में स्कूलों और आंगनवाड़ी केंद्रों के मंच के माध्यम से 1-14 वर्ष की आयु समूह के स्कूल और आंगनवाड़ी से जुड़े सभी बच्चों को शामिल किया जाता है।
बच्चों को कृमि मुक्त करने के लिये एलबेंडाजोल नामक टैबलेट दी जाती है ताकि बच्चे पेटजनित बीमारियों से अपना बचाव कर सके।
यह कार्यक्रम हर वर्ष 10 फरवरी और 10 अगस्त को आयोजित किया जाता है। अगर कोई भी बच्चा किसी वजह से, खासतौर से गैरहाजिर होने या बीमार होने से राष्ट्रीय कृमि निवारण दिवस में नहीं शामिल हो पाया तो उसे 15 फरवरी को दवा दी जाती है।
मल द्वारा दूषित मिट्टी के माध्यम से फैलने वाले कृमियों (कीड़ों) को मिट्टी-संचारित कृमि (STH) या आंत्र परजीवी कीड़े कहा जाता है।
गोल कृमि, वीप वार्म, अंकुश कृमि वे कीड़े हैं जो कि मनुष्य सहित इन बच्चों को संक्रमित करते हैं।
विश्वभर में 836 मिलियन से अधिक बच्चों को परजीवी कृमि संक्रमण का ज़ोखिम होता है। विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार भारत में 1-14 वर्ष की आयु वर्ग के 241 मिलियन बच्चों को मिट्टी-संचारित कृमि संक्रमण का ज़ोखिम है।
यह कार्यक्रम मानव संसाधन और विकास मंत्रालय, महिला एवं बाल विकास मंत्रालय और पेयजल तथा स्वच्छता मंत्रालय के तहत स्कूल शिक्षा और साक्षरता विभाग के संयुक्त प्रयासों के माध्यम से कार्यान्वित किया जा रहा है।
पंचायती राज मंत्रालय, जनजातीय कार्य मंत्रालय, ग्रामीण विकास मंत्रालय, शहरी विकास मंत्रालय और शहरी स्थानीय निकाय (यूएलबी) भी राष्ट्रीय कृमि मुक्ति दिवस में सहायता प्रदान करते है।
राष्ट्रीय कृमि निवारण दिवस जैसे कार्यक्रमों के कारण न केवल स्कूल छोड़ने वाले बच्चों की संख्या में कमी आ रही है बल्कि उनके संपूर्ण विकास में भी मदद मिल रही है।
एल्बेंडजोल टैबलेट के साथ-साथ साफ-सफाई, शौचालयों के प्रयोग, जूता या चप्पल पहनने और हाथ धोने के बारे में भी जानकारी दी जाती है ताकि दोबारा संक्रमण न हो।
आंगनवाड़ी और स्कूल आधारित एक बड़े समूह के लिये कृमि निवारण कार्यक्रम सुरक्षित और लागत प्रभावी है, साथ ही इसके द्वारा आसानी से करोड़ों बच्चों तक पहुँचा जा सकता है।
कृमि निवारण के लिये एल्बेंडजोल की स्वीकार्यता पूरे विश्व में है और इस टैबलेट का कोई दुष्प्रभाव नहीं है।
कृमि निवारण के साथ-साथ बच्चों में साफ-सफाई के अभ्यास पर विशेष जोर दिया जाता है ताकि उन्हें कृमि समस्या का सामना न करना पड़े। ग्रामीन सुदूर देहाती जीवन में गरीबी और आर्थिक समस्याओं से घिरे परिवारों के बच्चों सहित सभी बच्चों के लिए यह दिवस खास महत्व रखता है।
पिछले कृमि दिवस कोरोना से प्रभावित रहने की वजह से मनाई न जा सकी। सरकार और प्रशासन जरुर इस दिवस के पूर्व ही स्कूलों व आंगनबाड़ी केन्द्रों में वैकल्पिक व्यवस्था कर सकेगी ताकि इस दिवस की सार्थकता बनी रह पाए।
सुरेश कुमार गौरव, प्रधानाध्यापक
उ.म.वि रसलपुर,फतुहा, पटना (बिहार)
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