प्रिय देशवासियों,
आज मुझे चिंता सिर्फ इस बात की नहीं है कि हिंदी पीछे छूट रही है, बल्कि इस बात की है कि हिंदीभाषी भारतीय ही हिंदी से दूर भाग रहे हैं।
हम गर्व से कहते हैं कि हिंदी विश्व की तीसरी सबसे अधिक बोली जाने वाली भाषा है। परंतु क्या विडंबना नहीं है कि भारत के ही विद्यालयों और विश्वविद्यालयों में हिंदी का महत्व घटता जा रहा है? हम अपनी ही भाषा को बोझ समझने लगे हैं, और अंग्रेज़ी को रोजगार, प्रतिष्ठा और सफलता की चाबी मान बैठे हैं।
क्षेत्रीय भाषाओं का सम्मान होना चाहिए, इसमें कोई संदेह नहीं। बच्चे को मातृभाषा में पढ़ाई मिले, यह उसकी सहज शिक्षा का अधिकार है। किंतु जब वही विद्यालय हिंदी को केवल औपचारिक विषय बनाकर छोड़ देते हैं, तब आने वाली पीढ़ी के सामने भाषा की दोहरी समस्या खड़ी होती है—एक ओर मातृभाषा तक सीमित रहना और दूसरी ओर अंग्रेज़ी की ओर झुकना। नतीजा यह होता है कि हिंदी, जो राष्ट्रीय एकता और संवाद की भाषा है, हाशिए पर चली जाती है।
क्या हम यह भूल गए हैं कि हिंदी ही वह भाषा है जिसने स्वतंत्रता आंदोलन में जनता को एकजुट किया था? क्या यह विस्मरण योग्य है कि हिंदी के माध्यम से ही भारत की विविधता एक सूत्र में बंधी थी? आज जब तकनीकी क्रांति ने संचार को आसान बना दिया है, तब भी हिंदी को तकनीकी भाषा बनाने में हम पीछे क्यों हैं?
कर्तव्य स्पष्ट है—हमें हिंदी को आधुनिकता के साथ जोड़ना होगा। हिंदी को केवल कविता, कहावत या इतिहास तक सीमित न रखकर, विज्ञान, तकनीक और प्रबंधन की भाषा बनाना होगा। विद्यालयों में क्षेत्रीय भाषाओं के साथ-साथ हिंदी को समान महत्व मिलना चाहिए। यदि हम हिंदी को शिक्षा और रोजगार की भाषा नहीं बनाएँगे, तो उदासीनता का यह भाव और गहरा होगा।
हमें अपने बच्चों से हिंदी में गर्व के साथ संवाद करना चाहिए। हमें सोशल मीडिया और तकनीकी मंचों पर हिंदी को सक्रिय बनाना होगा। हमें यह सिद्ध करना होगा कि हिंदी पिछड़ेपन की नहीं, बल्कि प्रगतिशील सोच की भाषा है।
अगर हम आज भी हिंदी के प्रति उदासीन रहे, तो आने वाली पीढ़ी हमें कभी माफ़ नहीं करेगी। हमें क्षेत्रीय भाषाओं का सम्मान करते हुए हिंदी को उसका राष्ट्रीय और वैश्विक स्थान दिलाना ही होगा। यह केवल सरकार या संस्थाओं का काम नहीं, बल्कि हर भारतीय का कर्तव्य है।
"निज भाषा उन्नति अहै, सब उन्नति को मूल।
बिन निज भाषा-ज्ञान के, मिटत ना हिय को सूल।।"
आधुनिक हिंदी साहित्य के जनक भारतेन्दु जी की पंक्तियों को ध्यान में रखते हुए हिंदीप्रेमी शिक्षक
ओम प्रकाश
मध्य विद्यालय दोगच्छी, भागलपुर

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