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Friday, 26 September 2025

कर्म और उसका फल


आलेख: गिरीन्द्र मोहन झा


संस्कृत भाषा के कृ धातु में अच् प्रत्यय के योग से कर्म शब्द बना है। यत् क्रियते तत् कर्म अर्थात् जो किया जाता है, वही कर्म है।

......कर्म तीन प्रकार के होते हैं।- प्रारब्ध, संचित और क्रियमाण कर्म । जो आप भोग रहे हैं, वह प्रारब्ध है। जो आपमें संस्कार बनकर है, वह संचित है और जो आप वर्तमान में कर रहे हैं, क्रियमाण कर्म कहा जाता है। क्रियमाण कर्म सभी कर्मों पर भारी पड़ता है।

..... हमारे कर्म पर प्रभु का भी अधिकार नहीं, किन्तु फल की प्राप्ति में ऐसी स्वतंत्रता नहीं।

...... चाणक्य नीति के अनुसार, 

यथा धेनु सहस्रेषु वत्सो गच्छति मातरम् ।

तथा तच्च कृतं कर्म कर्तारमनुगच्छति।।(जैसे बछड़ा हजार गायों में अपनी माता के पास ही जाता है, वैसे ही किया गया कर्म समय आने पर फल बनकर अपने कर्ता के ही पास जाता है।)

महर्षि वेदव्यास के अनुसार, "बिना कर्म किये फल की प्राप्ति नहीं हो सकती ।"

गोस्वामी तुलसीदास जी के अनुसार, सकल पदारथ एही जग माही। करमहीन नर पावत नाही।(सभी पदार्थ इसी संसार में हैं। जो कर्म नहीं करते, वे उसे प्राप्त नहीं कर सकते।)


काहु न कोऊ सुख दुख कर दाता । निज कृत करम भोग सबु भ्राता ।।(कोई किसी को सुख-दुख नहीं देता । सभी अपने-अपने कर्मों का ही भोग भोगते हैं।


कर्म प्रधान विश्व करि राखा । जो जस करहिं सो तस फल चाखा ।।

श्रीमद्भगवद्गीता  में भगवान श्रीकृष्ण कहते हैं, कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन। मा कर्मफलहेतुर्भूमा मा ते सड़्गस्त्वSकर्मणि ।।

फिर कहते हैं, गहना कर्मणो गति: ।(कर्म की गति गहन है।)

..... श्रीमद्भगवद्गीता के अनुसार, "ईश्वर में आस्था रखते हुए आत्मभाव में स्थित होकर स्थितप्रज्ञ होकर निरंतर कर्म करते जाना ।"

..... कोई भी कार्य शुभ-अशुभ परिणाम पर विचार करके ही करना चाहिए। 

..... व्यक्ति के धर्म को भी नष्ट करने की शक्ति कुकर्म में होती है। कुकर्म से बचना चाहिए, सत्कर्म करते जाना चाहिए।

....कहते हैं, शुभस्य शीघ्रम् अशुभस्य कालहरणम् । अर्थात् मन में शुभ कार्य का विचार आने पर उसे शीघ्रता से कर लेना चाहिए और अशुभ का विचार आने पर उसे टालते चले जाना चाहिए।

.....महाभारत में कहा गया है।-

दैवे पुरुषकारे च लोकोSयं सम्प्रतिष्ठित:।

तत्र दैवं तु विधिना कालयुक्तेन लभ्यते ।।

अर्थात् यह संसार दैव(भाग्य) तथा पुरुषार्थ पर अवलम्बित है। इनमें दैव तभी सुलभ(सफल) होता है, जब समय पर उद्योग किया जाय ।

..….. व्यक्ति को उसके शुभ-अशुभ कर्मों का फल समय आने पर मिलना धार्मिक, आध्यात्मिक, दार्शनिक के साथ-साथ वैज्ञानिक रूप से भी सत्य है।

बाबाजी लक्ष्मीनाथ गोसाईं जी ने लिखा है,

पुण्य संत को होत है, पाप दुष्टजन लेत ।

दैवत वचन प्रमाण है, पाप विलेय करि देत ।।

......गिरीन्द्र मोहन झा

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