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Friday, 14 November 2025

साहित्य और विज्ञान



हितेन सह सहितं तस्य भाव: साहित्यम् । जिसमें सबों के हित का भाव हो, वही साहित्य है। साहित्य की कई विधाएं हैं।

..... समालोचना(अच्छा और बुरा दोनों पक्ष) और आलोचना(केवल बुरा पक्ष देखना) साहित्य की विधाएं हैं।

...... साहित्य ही सर्वदा और अंत तक हमारे साथ होता है, चाहे वह सद्ग्रंथों के रूप में हों, सुभाषित के रूप में, नीतिश्लोक के रूप में, कविता, कहानी, दर्शन, अध्यात्म आदि के रूप में हों ।

.....कहा भी जाता है, साहित्यसङ्गीतकलाविहीन: साक्षात्पशुपुच्छविषाणहीन: ।।

.....सभी विषयों को हम साहित्यिक रूप दे सकते हैं। धर्म और अध्यात्म की जितनी उच्च से उच्च बातें लिखी गयी हैं, सद्ग्रंथों में वे सभी संस्कृत भाषा में संकलित हैं जिसका हिन्दी आदि कई भाषाओं में टीका किया गया है।

..... साहित्य की भावना कभी-कभी इतना उच्च हो जाता है, उसे भाषा का रूप देना अत्यंत कठिन होता जाता है, जैसे नर-मादा क्रौंच के प्रणयातिरेक को भाषा रूप अत्यंत कठिन हो जाता है। भगवान-भक्त का अति प्रेम आदि..

..... साहित्य को इतिहास, वेद-पुराण, अध्यात्म, दर्शन सबने विशेष स्थान दिया है।

..... साहित्य को लोग जिस दृष्टि और जिस भाव से देखते हैं, वैसा ही फल वे प्राप्त करते हैं, किन्तु साहित्य में जीवन और समाज के हितकारी सत्य को ही रखा जाता है। सत्य हर दृष्टि से ऊपर होता है।

....आज हम चर्चा करते हैं साहित्य और विज्ञान की । दोनों का ही आदर्श सत्यं(सत्य), शिवं(कल्याणकारी) और सुन्दरम्(सुन्दर) होना चाहिए। साहित्य और विज्ञान दोनों में ही आविष्कार, नवाचार, शोध, अनुसंधान अपने-अपने ढंग से होता है। साहित्य में नये-नये शब्दों की खोज, नये-नये व्याकरण नियम का नवाचार।

.... कुछ बातें साहित्य में ऐसी लिख दी गयी हैं, जिस पर विज्ञान का शोध और अन्वेषण होना जारी है और होना बांकी है। बहुत बातें सिद्ध हैं ।

....वेद के कई सूक्तों में और गीता-उपनिषदों में जिस प्रकार की बातें लिख दी गयी हैं, उनमें से बहुत सी बातें वैज्ञानिक रूप से सिद्ध हैं और बहुत सी बातों पर शोध जारी है। इन सद्ग्रंथों में विज्ञान की बहुत सारी बातें हैं।

.... अध्यात्म की सत्यता तक पहुंचना भी विज्ञान का ही कार्य है और विज्ञान इस कोशिश में लगा है। 

कई सद्ग्रंथों में विज्ञान शब्द का व्यवहार किया गया है। विज्ञान शब्द का प्राय: ब्रह्मज्ञान और अध्यात्म ज्ञान के लिए किया गया है। विज्ञान में शोध हुए हैं, जो सत्य उद्घाटित हुआ है, उसे भी साहित्यिक रूप दे सकते हैं। कई वैज्ञानिकों के प्रेरक प्रसंग साहित्य के अन्तर्गत लिखे जाते हैं।

.... महाभारत में अभिमन्यु को गर्भ में सबकुछ सिखाया जाता है, देवी कयाधू के गर्भ में प्रह्लाद को शिक्षा दी जाती है। विज्ञान भी इस बात को सिद्ध कर चुका है कि गर्भावस्था से ही अधिगम (learning) की क्रिया प्रारंभ हो जाती है। श्रीरामचरितमानस में भी बहुत सारी विज्ञान की बातें भरी हुई हैं।

....महर्षि वागभट्ट के अष्टांगहृदयम् में, महर्षि कणाद के वैशेषिक दर्शन में, भास्कराचार्य के लीलावती में विज्ञान और गणित की बहुत सारी बातें हैं।

....तात्पर्य यह है कि साहित्य और विज्ञान दोनों का ही उद्देश्य हितकारी और सुंदर सत्य को उद्घाटित करना है। दोनों के आविष्कार और नवाचार हितकारी, ज्ञानवर्धक और उत्साहवर्धक होते हैं। ज्ञान की ऊर्जा फैलाते हैं। विज्ञान की बातों को साहित्यिक रूप दिया जा सकता है और साहित्य की बातों को विज्ञान में भी स्थान दिया जा सकता है।

......गिरीन्द्र मोहन झा

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