अर्थ का एक अर्थ धन भी है। संतोष को परम सुख, सबसे बड़ा धन माना गया है। जिस कार्य को और जितने कार्य को करने से हमें भीतर संतोष प्राप्त होता है, वह कार्य अर्थपूर्ण (meaningful) है । जीविका, प्रगति का साधन भी अर्थपूर्ण है, क्योंकि उससे हमें संतोष के साथ साथ धन की प्राप्ति भी होती है। अर्थ का एक अर्थ अर्थ भी है। 'दिन को अर्थपूर्ण बनाओ' 'जीवन को अर्थपूर्ण बनाओ' । अर्थपूर्ण, संतोषप्रद कार्यों से ही दिन और जीवन अर्थपूर्ण बनता है। जिस कार्य को तथा जितने कार्यों को करने से हमें आत्मसंतुष्टि मिलती है, वह हमारे लिए एक उपलब्धि है। आत्मसंतुष्टि से बड़ी कोई उपलब्धि नहीं। स्वान्त:सुखाय तुलसीदासरघुनाथगाथा- तुलसीदास जी ने अपने भीतर के सुख और संतोष के लिए रघुनाथ जी की गाथा श्रीरामचरितमानस नामक महाकाव्य के रूप में लिखा। कालांतर में यह ग्रंथ भारत में प्रत्येक हिन्दू घरों का ग्रंथ बन गया, विश्व के सर्वश्रेष्ठ महाकाव्यों में से एक हो गया । कुछ महापरुषगण परमार्थ को ही स्वार्थ मान लेते हैं।
.....अर्थ का एक अर्थ 'के लिए', 'हेतु' भी होता है। कार्यार्थ- कार्य के लिए। देशार्थ- देश के लिए। धर्मार्थ- धर्म के लिए।
....अर्थ लगाकर कई शब्द बनते हैं।- पुरुषार्थ, स्वार्थ, परमार्थ...आदि ।
अपना पुरुषार्थ प्रकट करो । परमार्थ में परोपकार संबंधी, सेवा-त्याग संबंधी कार्य । महापुरुषगण परमार्थ कार्य जब करते हैं, तो इससे परम अर्थ, परम संतोष की प्राप्ति होती है। अपने साथ-साथ कईयों की भलाई होती है, कईयों को जीविका मिलती है। स्वामी दयानंद ने DAV चलाया, इससे कईयों की आजीविका चलती है, भरण-पोषण हो रहा है। यह परमार्थ होता है। स्वार्थ का अर्थ अपने लिए हित-साधन, प्रगति-साधन । इसमें भी सीमा है, इससे किसी प्रकार का भ्रष्टाचार, दुराचार न हो, किसी और की हानि न हो ।
.....चार पुरुषार्थ कहे गये हैं।- धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष । "विदुरनीति(महाभारत-उद्योगपर्व) में कहा गया है, जिनकी बुद्धि धर्म और अर्थ का अनुसरण करती है, वही पंडित है।" अर्थपूर्ण कार्य, उद्योग ही जीवन को अर्थ देता है।
गिरीन्द्र मोहन झा

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