शिक्षा और बाल मनोभाव
विद्यालय शिक्षा की वह धुरी है जिसके चारो ओर समाज की सम्पूर्णता चक्कर काटती है। विधालय को सफल बनाने में सबसे बड़ी भूमिका शिक्षकों की होती है। शिक्षक वैसा होना चाहिए जो सिर्फ सैधांतिक ही नही बल्कि व्यवहारिक भी हो, ताकि वो बाल मनोभाव को समझ सके।बच्चों के मनोभाव को समझने के लिए शिक्षकों में सर्वप्रथम उनकी सामाजिक ,आर्थिक , सांस्कृतिक और सामुदायिक पृष्ठभूमि को समझना अति आवश्यक है। जिससे बच्चों को समझकर शिक्षक उनके व्यक्तित्व का सही निर्माण कर सके।
किसी भवन की नींव मजबूत हो तो फिर आप उसके ऊपर बनाये जाने वाले भवन को जितना चाहे उतना ऊँचा बना सकते है। इसी प्रकार हमे बच्चों के बारे में भी सोचना चाहिए क्योंकि आज के बच्चे ही अपने परिवार ,समाज,देश तथा विश्व के भविष्य बनेंगे। इसलिए हमें प्रत्येक बच्चे की नींव को मजबूत करने के लिए बचपन से ही उसकी वास्तविकता के आधार पर उसे भौतिक, सामाजिक तथा आध्यात्मिक तीनों प्रकार की उद्देश्यपूर्ण एवं संतुलित शिक्षा देनी चाहिए।
हमें प्रत्येक बच्चों को प्रत्येक बिषय की सर्वोत्तम शिक्षा देकर उन्हें एक अच्छे पेशेवर के साथ साथ उसे एक अच्छा इन्सान भी बनाना है। प्रत्येक बच्चों को भौतिक शिक्षा के साथ साथ एक सभ्य समाज में रहने के लिए सर्वोत्तम शिक्षा देना अनिवार्य है
इसके बिपरीत बिषम परिस्थति में कई शिक्षकों ने अपने पेशे ईमानदारी दिखाई है। इस प्रकार के लोग आज भी बच्चों के साथ साथ समाज को भी रह दिखने का काम कर रहे है। बच्चों के मनोभावों को समझते हुए , वे इनके विकास में अपना सर्वस्व न्योछावर क्र रहे है। संसाधनों की प्रवाह न करते हुए वे प्रयासरत है कि बच्चों में छिपी प्रतिभाओं को विकसित करें। बच्चों के संसार को स्वच्छन्द बनाते हुए उन्हें अनुकूल वातावरण देने का प्रयास कर रहे है, जिसके वे हकदार है।
परन्तु यह भी हकीकत है की आज के अधिकांश बच्चे शिक्षा को बोझ के रूप में ढो रहे है। लगातार इस बोझ के कारण उनमें उसके प्रति अनिच्छा घर कर रही है।आज अधिकांश बच्चे यह नहीं समझ पा रहे है कि वे जिस शिक्षा को ग्रहण कर रहे है वो उनके सुखद भविष्य के लिए ही है।
इस प्रकार के माहौल में वे शिक्षक निश्चित रूप से धन्यवाद के पात्र है। जिन्होंने बच्चों के मन से शिक्षा का भय मिटाया है और वो इस रूप में भी कामयाब हैं कि उनके विद्यालय के बच्चे शिक्षा का वास्तविक आनन्द ले रहे है। उनके बच्चों में रचनात्मकता का विकास हो रहा है वे बच्चे स्वयं अपने पाठ्यक्रम में रूचि ले रहे है। ऎसे कई उदाहरण हमारे सामने है, जहाँ बच्चे प्रसन्नचित होकर स्वेच्छा से आते है तथा अधिकांश समय विद्यालय के सुखद वातावरण में रहकर बहुत कुछ कर रहे हैं।
रंजीत रविदास(शिक्षक)
प्राथमिक विद्यालय दासटोला,रामचंद्रपुर
प्रखंड-पिपरिया
जिला-लखीसराय
बहुत ही अच्छे विचार है ।आपके।
ReplyDeleteNice
ReplyDeleteBahut hi preranadayak.
ReplyDelete