अभी नहीं- श्रीकांत, (शिक्षक) - Teachers of Bihar

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Saturday 15 June 2019

अभी नहीं- श्रीकांत, (शिक्षक)

अभी नहीं

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नहीं कर सकता समर्पण अभी कि
हो जाऊँ कैसे मैं सागर एकबारगी
निकला हूँ अभी तो हिमालय से
करना है तय लम्बा सफ़र
चलना है मुझे अभी लम्बी डगर
लाँघना है कई पहाङों को
सँकरी पथरीली राहों से
करते कल...कल...छल...छल
ढूँढ़ने हैं रास्ते
आगे बढ़ने के
नापनी है पूरी दुनिया
गुजरना है बीच घने जंगलों के
बाँचते हुए
हरियाली और जीवन
बहते हुए झर..झर
बुझानी है प्यास संसार की
सींचनी है खेतों को अभी वर्षों
करना है गुलजार अपनी फुहारों से
कई बागों को अभी
नहीं चाहता हो जाना सागर
नहीं है चाह
होने की अमिट-अमर
हो जाना चाहता हूँ
लूनी और सरस्वती मैं भी कि
बावजूद होने के लुप्त
कर सकूं तर जमीं को
नहीं है मंज़िल मेरी सागर
पर/है नियति यही/कि
मिट जाऊँगा वाष्प बनकर एक दिन
हो जाएगा समाप्त आस्तित्व मेरा भी
पर शायद नहीं
रह जाऊँगा बचा मैं
गेहूँ की बालियों में
फूलों की क्यारियों में
इसीलिए
नहीं कर सकता समर्पण अभी कि
नहीं चाहता हो जाना सागर कभी

श्रीकांत, 
शिक्षक 
उत्क्रमित मध्य विद्यालय बहरोरीचक, 
वारसलीगंज नवादा 


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