प्रशिक्षु -शिक्षकों की मेंटरिंग में ICT की महत्वपूर्ण भूमिका - डॉ राजीव कुमार (व्याख्याता) - Teachers of Bihar

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Thursday 20 June 2019

प्रशिक्षु -शिक्षकों की मेंटरिंग में ICT की महत्वपूर्ण भूमिका - डॉ राजीव कुमार (व्याख्याता)

प्रशिक्षु-शिक्षकों की मेन्टरिंग में ICT की महत्त्वपूर्ण भूमिका 

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                                                                                डा0 राजीव कुमार, व्याख्याता, सीटीई सहरसा, बिहार


डा0 राजीव अध्यापक शिक्षा महाविद्यालय, सहरसा में व्याख्याता हैं। वे अपने प्रशिक्षु-शिक्षकों को उनके स्थानीय क्षेत्र में उपलब्ध ICT के उपयोग की जागरूकता को बढ़ाने के लिये व्यवहारिक माध्यमों से गतिविधि आज़माते हैं।
‘महाविद्यालय में बी.एड. के पुराने पाठ्यक्रम एवं वर्तमान पाठ्यक्रम में प्रशिक्षुओं को Critical Understanding of  ICT पढ़ना है जिसमें Structure of  Computer और इसके कार्य को मुख्य रूप से सीखना था। इसलिये प्रशिक्षु-शिक्षक भी ICT का अर्थ Computer ही समझते थे जो सभी के लिए सुलभ नहीं था। इस कारण से प्रशिक्षु-शिक्षक सीखने-सीखाने में ICT का उपयोग करने में असमर्थता व्यक्त करते थे।

एक दिन मैंने ICT के कुछ माध्यमों और उपकरणों के बारे में प्रशिक्षु-शिक्षकों के बीच चर्चा शुरू की। वर्गकक्ष में एक लम्बी चर्चा चली और सभी ने यह निष्कर्ष निकाला कि स्मार्टफोन एक सर्वव्यापी संचार उपकरण है। इससे कम्प्यूटर के कारण होने वाली बिजली की खपत में कटौती, संचार का माध्यम साथ में रखने का अवसर, इंटरनेट तक बेतार पहुँच बनने से लोगों को मनोरंजन, समाचार और जानकारी प्राप्त करने की सुविधा, किसी-भी समय और कहीं-से भी एक-दूसरे से संपर्क करना संभव हो गया है। मैं खुश हुआ कि मैं यह समझाने में सफल रहा कि  Smart Phone    भी ICT है और इसका उपयोग हम सीखने-सिखाने में कर सकते हैं। मेरे वर्गकक्ष में लगभग 85 प्रतिशत से भी अधिक प्रशिक्षु-शिक्षकों के पास  Smart Phone   उपलब्ध है और लगभग सभी इंटरनेट की सुविधा रखते हैं और इसे उपयोग करना व्यवहारिक भी है।

प्रारंभिक अवस्था में मैं  ICT से सहज नहीं था, जिसके कारण मुझे घबराहट एवं परेशानियाँ होती थी। जब मुझे किसी प्रकार की परेशानी होती थी तो Mobile/ ICT/ Computer  के जानकार मित्रों से सहायता लेता था। अपने इस अनुभव से मैं इस बात पर सोचने के लिये मजबूर हो गया कि मेरे भी ऐसे प्रशिक्षु-शिक्षक होंगे जिन्हें वर्गकक्ष के बाद भी परामर्श की ज़रूरत पड़ती होगी। सीखने-सिखाने की प्रक्रिया में मैं  ICT के माध्यम से अनेकों गतिविधियाँ करता हूँ और साथ ही अपने प्रशिक्षु-शिक्षकों को भी इन माध्यमों का उपयोग करने के लिये प्रोत्साहित करता हूँ।
SCERT बिहार की मदद से मैंने 347 प्रतिभागी को एक आनलाइन कोर्स को पूरा करने में अपने संस्थान के प्राचार्य के अलावा विभिन्न संस्थान के संकाय सदस्य, प्रखंड शिक्षा पदाधिकारी, प्रखंड संसाधन सेवी, संकुल संसाधन समन्वयक, उच्च माध्यमिक/माध्यमिक/मध्य विद्यालय के शिक्षक एवं प्रशिक्षु-शिक्षक पंजीकृत होने में मदद की।

कोर्स के दौरान मैने अनुभव किया कि ऐसे प्रतिभागी भी थे जो इस कोर्स को पूरा करने के लिये इच्छुक तो थे लेकिन उनपर विशेष ध्यान देने की ज़रूरत महसूस हो रही थी। या तो उनके पास स्मार्टफोन नहीं था या कम्प्यूटर चलाने की जानकारी नहीं थी या कोई अन्य बाध्यता थी। तो मैंने शुरूआत में उनके साथ अधिक समय दिया, उनका email account  बनाने में उनकी मदद की और उनकी लगातार मेन्टरिंग करता रहा ताकि उनके मन से यह हीन भावना खत्म हो। जब धीरे-धीरे उन्होंने कुछ सप्ताह कोर्स को किया और उनमें आत्मविश्वास आया फिर मैंने सभी प्रतिभागियों को दस-दस के छोटे समूहों में बाँटा और उनमें जो ICT के बारे में अधिक व्यवहारिक जानकारी रखता था, उसे उस समूह को मेन्टर करने के लिये ज़िम्मेदारी दी। इस प्रकार लगभग सभी प्रतिभागियों ने कोर्स को सफलता से पूरा किया।

जैसे ही कोर्स पूरा हुआ और ऑनलाइन  सर्टिफिकेट प्राप्त हुये, मैंने देखा कि प्रतिभागियों के बीच बहुत उत्साह और आत्मविश्वास था और अधिकतर ने और ऑनलाइन कोर्स में नामांकन के लिये अनुरोध करना शुरू कर दिया। मुझे बहुत संतुष्टि मिली। इस पहल का सबसे बड़ा लाभ यह मिला कि प्रशिक्षु-शिक्षक अपने वर्गकक्ष में सहभागी शिक्षा को बढ़ावा देने लगे और उनके कक्षा की गुणवत्ता में सुधार आता गया। उन्हें न केवल स्वयं बेहतर सीखने का मौका मिलता है बल्कि विश्व स्तर पर शिक्षा के क्षेत्र में हो रहे बदलाव की जानकारी भी मिलती रहती है।’
डा0 राजीव कुमार, व्याख्याता,

सीटीई सहरसा, बिहार






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