शिक्षा का बदलता स्वरुप और नई शिक्षा नीति
2019
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नई शिक्षा नीति 2019 के प्रारूप में वैसे तो कई
बातें हैं जिन पर चर्चा करना जरूरी ही नहीं उसे लागू करना भी काफी महत्वपूर्ण है .
अगर हम पूरे प्रारूप के मर्म को समझें तो मोटे
तौर पर कुछ बातें हैं जिसे दरकिनार नहीं किया जा सकता है . मसलन कुछ ख़ास बिंदु ये हैं जो निम्न हैं ...
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शिक्षा का अधिकार क़ानून के
दायरे को व्यापक बनाना जिसके अंतर्गत पूर्व प्राथमिक शिक्षा को आँगनवाडी के भरोसे
न छोड़ कर उन्हें भी विद्यालीय शिक्षण व्यवस्था के साथ जोड़ना यथा नर्सरी से बारहवीं
तक की कक्षा का एक स्कूल में समावेश हो ...
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राष्ट्रीय शिक्षा आयोग का गठन
किया जाना ताकि निजी स्कूल सरकारी
विद्यालयों में होने वाले नवाचारी प्रयोगों से कुछ सीख सकें ...
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नई शिक्षा नीति में मिड डे मिल
का विस्तार करते हुए बच्चों को न केवल मध्यान्ह भोजन वरन सुबह का नास्ता भी मुहैया
कराया जाये ताकि बच्चों में कुपोषित होने की दर घटे और उनके पढने लिखने की क्षमता
में वृद्धि हो सके .
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पहली व् दूसरी कक्षा में भाषा
व् गणित पर काम करने पर जोर देने की बात इसके अंतर्गत पहली व दूसरी कक्षा में भाषा
व गणित को रोचक बनाने के लिए भाषा व गणित सप्ताह या मेला आदि आयोजन किया जाना साथ
ही चौथी व पांचवी के बच्चों के बीच लेखन कौशल विकसित करने हेतु उनके लिए कार्यशाला
आयोजित करना .
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नयी शिक्षा नीति में रेमेडियल
शिक्षण पर जोर दिया जा रहा है जिसमें स्थानीय महिलाओं व स्वयंसेवकों का सहयोग लेना
इससे स्थानीय लोगों के द्वारा स्कूल को विधिवत व सुचारू रूप से चलाने में मदद
मिलेगी और कई समस्याओं का निपटारा स्थानीय स्तर पर संभव हो सकेगा .
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तकनिकी पर जोर देना यानी की
सभी आधुनिक गैजेट्स का इस्तेमाल शिक्षण कार्यों में किया जाना मसलन इन्टरनेट , वाई
फाई आदि के द्वारा स्मार्ट क्लास व मल्टीमीडिया क्लास का प्रावधान .
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लर्निंग विदाउट बर्डन बच्चों
को फ्रेंडली वे में शिक्षा देना और पाठ्यक्रम को काफी रोचक और वेहतर बनाना ताकि
बच्चे खुशनुमा माहौल में पठन-पाठन की प्रक्रिया से गुजरे .
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कक्षा में अधिक से अधिक
मातृभाषा के इस्तेमाल पर जोर ताकि बच्चे को पाठ सुगमतापूर्वक समझ में आये .
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अंतिम और महत्वपूर्ण बात जिसपर
मैं विस्तार से चर्चा करुँगी की इस नीति में पुस्तकालयों को जीवंत करने की बात कही
गयी है अब सवाल यह है की क्या पुस्तकालय का खुल जाना ही उसकी उपादेयता को सिद्ध
करती है ?
बिहार में नीति आयोग के अंतर्गत पिरामल फाउंडेशन
के माध्यम से सरकारी विद्यालयों में पुस्तकालयों के खोले जाने की प्रक्रिया को
युद्ध स्तर पर लागू किया इसके कुछ सकारात्मक परिणाम भी हैं लेकिन पूरी तरह से वह
कारगर तभी होगा जब बच्चे शत प्रतिशत साक्षर होंगे . अमूमन हमारे विद्यालयों की
सबसे बड़ी समस्या यही है की अधिकाँश बच्चे सही से पढ़ लिख ही नहीं पाते जिससे
पुस्तकालयों में रखी पुस्तकें शीशे की आलमारियों में बंद होकर नुमाइश की चीज बन
जाती है .फिर बात होती है पुस्तकों की उपलब्धता की कि बच्चों को उनके सामाजिक व
मानसिक स्तर के अनुसार पुस्तकें उपलब्ध है या नहीं जो उनके ज्ञान में वृद्धि करते
हुए उनका मनोरंजन भी करे ...
आखिर बच्चे पुस्तकालय जाए ही क्यों ?
नई शिक्षा नीति में इसी को जीवंत करने की बात
कही गयी है . मेरे ख्याल से कुछ उपाय हैं जिसे लागू करके हम पुस्तकालय को जीवंत
बना सकते हैं जो विंदुवार से निम्न हैं ....
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पुस्तकालय के लिए सभी कक्षा के
लिए एक घंटी अनिवार्य हो उस घंटी में जो भी टीचर हों वो बच्चों के साथ साथ बने
रहेंगे साथ ही जो बच्चे पढना नहीं जानते उनकी अलग टोली बनाकर उन्हें पढने में मदद
करेंगे .पुस्तकालय में ही एक कोने में चार्ट पेपर और अन्य साधनों के साथ बच्चों को
अक्षर ज्ञान और सही हिज्जे के साथ पढ़ाने की व्यवस्था हो .
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बच्चों के बीच समय – समय पर
क्वीज , निबंध व वाद –विवाद आदि प्रतियोगिता का आयोजन हो ताकि बच्चे पुस्तकालय में
रखी पुस्तकों की मदद ले सकें .
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महापुरुषों की जयंती मनाने के
लिए उस दिन उनकी जीवनी पर आधारित वर्कशॉप आयोजित करना ताकि बच्चे उस दिन पुस्तकालय
के पुस्तकों की मदद से महापुरुषों के चित्र बनाने के साथ –साथ उन के जीवन से
संवंधित सभी महत्वपूर्ण बातों से परिचित हो सके .
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अंत में मेरा आजमाया हुआ
नुस्खा है जो पूरी तरह से कारगर है विद्यालय में मासिक पत्रिका का प्रकाशित करना
चाहे वह दीवार पत्रिका के रूप में ही क्यों न हो .दीवार पत्रिका अभियान के जरिये
कई विद्यालयों में मेरे नेतृत्वा में इसका
संचालन किया गया है जिसके परिणाम काफी सुखद रहे हैं बच्चे इसके जरिये अपनी
स्वलिखित रचनाओं को चार्ट पेपर पर सजाकर दीवारों पर टांगते हैं उनकी रचनाओं में
उनकी बाल सुलभ कवितायें , कहानियों के साथ – साथ पहेली , चुटकुला , क्वीज ,
पेंटिंग्स , आलेख आदि के साथ – साथ महत्वपूर्ण व्यक्तियों के साक्षात्कार भी शामिल
होते हैं , चूँकि पत्रिका हर महीने ससमय प्रकाशित करनी होती है और इसकी पूरी
जिम्मेदारी बच्चों की ही होती है बाकायदा उनकी एक पूरी सम्पादक मंडली होती है
जिसमें प्रधान सम्पादक के साथ – साथ संवाददाता टीम , कला निर्देशक आदि की अलग अलग
टीम होती हैं जिनके ऊपर उस महीने की सामग्री जुटाने की जिम्मेदारी होती है अतः वे
लगातार पुस्तकालय से जुड़े रहते हैं ताकि वे अपनी जानकारी को अपडेट कर सके ....
इस तरह से एक दीवार पत्रिका के
निर्माण से भी पुस्तकालय को जीवंत बनाया जा सकता है ...
मेरी यह गुजारिश है की इसे सभी स्कूलों में लागू किया जाये ताकि बच्चों की रचनात्मक प्रतिभा को उभारने में हम
मददगार हो सकें ...
नयी शिक्षा नीति काफी मायने
में गुणवत्तापूर्ण शिक्षण में मददगार सावित होगी और इसे लागू किया जाना चाहिए ...
सीमा कुमारी
नगर शिक्षिका (स्नातक ग्रेड)
मध्य विद्यालय बीहट , बरौनी जिला – बेगुसराय , बिहार
e mail – sangsaar .seema777@gmail.com
वाह,काबिल-ए-तारीफ।
ReplyDeletePrernadayi, Anukarniye.
Deleteअनुकरणीय!
ReplyDeleteजी बिल्कुल सराहनीय एवं अनुकरणीय
ReplyDeleteNice appreciable work
ReplyDeleteBahut hi achhe bat aap ne btae hai
ReplyDeleteबेहतरीन
ReplyDeleteHam garv hai aise techers pe jisme itni vidhwta hai. Thanks dill se
ReplyDeleteथैंक्स 😊
Deleteसराहनीय कदम.....
ReplyDeleteMai Nandkishor kumar,brp Block.deo,dist Aurangabad
DeleteBahut hi achha paryas. Thankyou
आभार सर
Deleteआप सभी लोगों का तहे दिल से आभार 🙏🙏
ReplyDeleteवास्तव में सराहनीय।
ReplyDeleteअच्छी और प्रभावी प्रस्तुति
ReplyDeleteNice
ReplyDeleteIt is very nice idea.we try in our school
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