प्रशिक्षण महाविद्यालय से बिछड़े हुए आज दो साल हो गये।
हम गुरुछात्र-छात्राएँ अब अपनी-अपनी दुनिया में खो गये।।
दोस्तों के व्यवहार में पहले वाली गर्मजोशी दिखती नहीं।
दरारें नज़र आने लगी हैं;यादें उन दिनों की मिटती नहीं।।
मतलब की फ़सल काटकर;विस्मरण का बीज बो गये।
प्रशिक्षण महाविद्यालय से बिछड़े हुए आज दो साल हो गये।।
अंतिम साँस तक मिलजुलकर रहने का सपना टूट चुका है।
उनचास साथियों में अधिकांश का साथ पूर्णतः छूट चुका है।।
अभी तो हमलोगों ने हँसना ही शुरु किया था कि रो गये।
प्रशिक्षण महाविद्यालय से बिछड़े हुए आज दो साल हो गये।।
सलाह,बधाई हो या प्रशंसा;इन शिष्टाचारों से जी चुराने लगे हैं।
दिनभर साथ पढ़नेवाले सहपाठीगण पीछा छुड़ाने लगे हैं।।
विद्यार्थी जीवन के आख़िरी दौर में अर्जित प्रतिष्ठा को धो गये।
प्रशिक्षण महाविद्यालय से बिछड़े हुए आज दो साल हो गये।।
शिक्षकों के स्वार्थी होते ही संसार सेवाभाव से वंचित रह जाएगा।
विश्वगुरु भारत में न कोई श्रीराम,न श्रीकृष्ण,न ही नरेंद्र बन पाएगा।।
बीस सौ पन्द्रह-सत्रह सत्र की स्मृतियाँ जगाती रहीं; हम सो गये।
प्रशिक्षण महाविद्यालय से बिछड़े हुए आज दो साल हो गये।।
शाहपुर पटोरी का कर्पूरी प्रांगण हद से ज़्यादा याद आता है।
बरामदा युक्त तंग चार कमरों वाला विस्तृत मैदान लुभा जाता है।।
उषा से निशा तक राजेश अडिग रहा;जो पल थे वो गये।
प्रशिक्षण महाविद्यालय से बिछड़े हुए आज दो साल हो गये।
राजेश कुमार सिंह
उत्क्रमित मध्य विद्यालय बलथारा
मोहिउद्दीननगर
समस्तीपुर
बहुत सुंदर. शब्दों और भावों का बहुत अच्छा समायोजन।
ReplyDeleteबहुत बढ़िया सर जी
ReplyDeleteधन्यवाद
ReplyDeleteबेहतरीन।
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