Tuesday 23 July 2019
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जिम्मेदारियाँ हम शिक्षकों की - विजय सिंह (शिक्षक)
विद्यालय एक परिवार की तरह है जिसे विद्यालय परिवार भी कहते हैं। इसके सभी सदस्यों की उचित भागीदारी से हीं इसका विकास संभव है। यहाँ देश को चलाने वालों का निर्माण होता है अर्थात हर क्षेत्र की जानकारी बच्चों को यहीं दी जाती है। इस कार्य में हम शिक्षक-शिक्षिकाओं की जिम्मेदारी बहुत ही बड़ी होती है जिसको पूरा करना हम सबों का परम कर्तव्य है।
1) सभी शिक्षक-शिक्षिकाओं को समयनिष्ठ और कर्तव्यनिष्ठ होना चाहिए । जब हम समयनिष्ठ होंगे तभी बच्चे भी ससमय विद्यालय आएँगे।
2) विद्यालय पहुँचते हीं वहाँ की गतिविधियों में बढ़-चढ़कर भाग लेना चाहिए।
3) हमेशा साफ-सुथरी पोशाक में विद्यालय जाना चाहिए जिससे बच्चे भी साफ-सुथरे कपड़ों में विद्यालय आएँगे।
4) विद्यालय के हर बच्चों में अपने वर्ग को साफ रखने के महत्व को समझाना चाहिए।
5) प्रत्येक बच्चे पर एक समान नजर रखनी चाहिए। किसी से किसी भी प्रकार का भेद-भाव नहीं करना चाहिए।
6) प्रतिदिन पाठ-योजना, पाठ-टीका तैयार करना चाहिए और योजना के अनुसार किसी भी पाठ की विस्तृत जानकारी प्राप्त कर ही बच्चों के बीच जाना चाहिए।
7) पाठ शुरू करने से पहले उस पाठ से जुड़ी बच्चों के परिवेश से संबंधित कुछ उदाहरणों की जानकारी का आदान-प्रदान करना चाहिए, फिर धीरे-धीरे पाठ की विषय-वस्तु की ओर बच्चों का ध्यान मोड़ने से बच्चों में उस पाठ की भरपूर जानकारी होने की संभावना प्रबल हो जाती है।
8) हमेशा अनुशासन में रहते हुए बच्चों को भी अनुशासन का महत्व समझाना चाहिए।
9) वर्ग कक्ष, बरामदे, खेल के मैदान, शौचालय, मुत्रालय आदि की सफाई का महत्व बच्चों को बताना बहुत ही जरूरी है।
10) हर सप्ताह अपने वर्ग के बच्चों के अभिभावकों के साथ बैठक कर बच्चों के सर्वांगीण विकास की चर्चा करनी चाहिए और बच्चों को हर दिन विद्यालय भेजने से होने वाले फायदों को समझाना चाहिए।
11) अपने सहयोगियों के साथ अपने परिवार के सदस्यों की तरह प्रेम पूर्वक रहना चाहिए। किसी की योग्यता या विद्वता से ईर्ष्या न कर उनसे नई-नई बातों को सीखने की कोशिश करना चाहिए।
12) विद्यालय के वार्षिकोत्सव में बढ़-चढ़कर भाग लेना चाहिए और दिये गए दायित्व को निष्ठापूर्वक निभाना चाहिए।
13) अपनी तुलना अन्य सहयोगियों से नहीं करना चाहिए। अपनी योग्यता से प्रसन्न रहना चाहिए।
14) विद्यालय के प्रति समर्पण की भावना होना जरूरी है। विद्यालय में प्रवेश से पहले घर की समस्याओं को भुला देना चाहिए। यदि समस्या जटिल हो तो एक-दो दिन छुट्टी लेकर उसका समाधान करके हीं विद्यालय आना चाहिए।
15) विद्यालय प्रधान के द्वारा दी जाने वाली उचित सलाह को जरूर मानना चाहिए और उसपर अमल करना चाहिए।
16) सप्ताह के अंत में पढ़ाई गई पाठों की जाँच परीक्षा अवश्य लेनी चाहिए जिससे यह पता चले कि कितने बच्चों ने पढ़ी गई बातों को आत्मसात किया। ध्यान नहीं देने वाले बच्चों को अपने पुत्र-पुत्रियों की तरह स्नेह पूर्वक पढ़ाई के महत्व को समझाना चाहिए।
17) गृहकार्य उतना ही देना चाहिए जिसे बच्चे कम समय में पूरा कर सके। गृहकार्य बोझ के रूप में नहीं होना चाहिए जिससे बच्चों का मन पढ़ाई से दूर भागने लगे। गृहकार्य परियोजना पर आधारित होने पर बच्चों में रूचि पैदा करता है।
18) कक्षा में सामुहिक क्रिया-कलाप पर जोर देना चाहिए और चित्रकारी, अंताक्षरी इत्यादि को भी रूटीन में शामिल करना चाहिए।
19) MDM के समय छात्र-छात्राओं को अपने बच्चों की तरह प्रेम पूर्वक खिलाना चाहिए और खाने से पहले बरतन और हाथों की सफाई अवश्य करवाना चाहिए।
20) छोटे बच्चों को प्रतिदिन पहाड़ा इत्यादि पाठ सामुहिक रूप से करवाना चाहिए।
21) विद्यालय छोड़ने से पहले वर्ग-कक्ष के खिड़की-दरवाजे इत्यादि को बंद करवाकर संतुष्ट हो जाना चाहिए कि कोई बच्चा अंदर रह तो नहीं गया। विद्यालय छोड़ने में अधीरता नहीं दिखानी चाहिए।
विजय सिंह
मध्य विद्यालय मोतीटोला
इस्माईलपुर
भागलपुर
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Only a responsible and caring teacher can think like it
ReplyDeleteThanks a lot.
Deleteबहुत सुन्दर।
ReplyDeleteविजय सर ने अपने इस पत्र में उन सभी बिन्दुओं पर चर्चा की जिस पर हम शिक्षकों का ध्यान विधालय में प्रतिदिन होना चाहिए ।
बहुत-बहुत धन्यवाद सर!
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