Wednesday 23 October 2019
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पापा, आप नहीं समझते- ज्ञानवर्द्धन कंठ (प्रधानाध्यापक)
पापा, आप नहीं समझते
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भोलू चौक से जल्दी ही लौट आया।बोला- पापा, बस छूट गयी।स्कूल कैसे जाऊंगा?आप ही पहुँचा दीजिये न।मैंने कहा-लेकिन स्कूटी का टायर तो पंक्चर है।चलो,साइकिल से छोड़ आता हूँ।पहले तो वह हिचकिचाया,फिर मम्मी के कहने पर तैयार हुआ।दोनों बाप-बेटे चल पड़े।
स्कूल से पहले 'अमघट्टा चौराहा' पहुँचते ही भोलू बोला-पापा, मुझे यहीं छोड़ दीजिये।यहाँ से पैदल चला जाऊँगा।मैंने कहा-बस पाँच मिनट तो लगेंगे।स्कूल तक छोड़ देता हूँ।
भोलू-पापा, आप नहीं समझते।एक तो साइकिल से लाये हैं, दूसरा आपके कपड़े भी ढंग के नहीं।इतना कहते ही वह वहीं उतरकर स्कूल की ओर तेजी से भाग पड़ा।मेरे मन में स्कूलिंग, शिक्षा और अपनी बुद्धिमत्ता पर ढेर-सारे प्रश्न उमड़ने-घुमड़ने लगे।मैं वहाँ बड़ी देर तक खोया-खोया -सा रहा।तभी किसी ने मेरी पीठ को छुआ।स्वर कर्णगोचर हुए- अरे,कंठ बाबू?सवेरे-सवेरे यहाँ? देखा,शर्माजी थे।बोला- नमस्कार शर्माजी।एक काम से आया था।
शर्माजी-अजी साहब, आपका बेटा मेरे बेटे नंदू का क्लासमेट है।नंदू कह रहा था कि वह बड़ा ही मेधावी है।क्लास में हमेशा अव्वल आता है।बड़ा नाम करेगा। हें हें हें...
-ज्ञानवर्द्धन कंठ,
प्रधानाध्यापक,
मoविoभवप्रसाद
डुमरा(सीतामढ़ी)
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👏👏👏👌👌
ReplyDeleteजय हिन्द। वाह-वाह, प्रभावकारी लघुकथा।देखन में छोटन लगे,घाव करे गंभीर। लेकिन इसमें बच्चों का क्या कसूर? हम बड़ों ने उनके लिए जैसी दुनिया बना दी है यह उसका प्रतिबिम्बन है।क्या हम अपनी वर्तमान शिक्षायी व्यवस्था की इस नजरिए से पड़ताल करते हैं कि इसका दूरगामी प्रतिफल क्या होगा?क्या हमें अपनी पाठचर्या, पाठ्यक्रम, पाठयपुस्तकों को पुनः अवलोकित करने की जरुरत है? ज्ञानदेव
ReplyDeleteThis comment has been removed by the author.
Delete🙏🙏
DeleteGood
ReplyDeleteमुझे भी अपना लिखा हुआ पोस्ट करना है । कृपया बताएं कि कैसे टीचर्स ऑफ बिहार ग्रुप में लिखा जाए या पोस्ट कैसे करें ।
ReplyDeleteयथार्थ और कल्पना की मिश्रित अभिव्यक्ति,सुन्दर।
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