Saturday 2 November 2019
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छठ पर्व का पर्यावरणीय महत्व- विमल कुमार विनोद
छठ पर्व का पर्यावरणीय महत्व ।
छठ पर्व जो कि आस्था विश्वास स्वच्छता,सांप्रदायिक सद्भाव परिवार/तप का प्रमुख पर्व माना जाता है जिसमें लोग अपने घरों तथा आस-पास के सड़कों तथा गलियों की पूरी तरह से साफ सफाई करने का प्रयास करते हैं ।इस अवसर पर लोग नदी घाटों की भी साफ सफाई करते हैं, ताकि स्वच्छता बनी रहे।चूँकि स्वच्छता जीवन का अभिन्न अंग क्योंकि स्वच्छता में कमी रहने के चलते जल,मिट्टी,वायु,सारी चीज़ें प्रदूषित हो जाती है।साथ ही जमीन में ज्यादा रासायनिक कीटनाशकों के प्रयोग किये जाने से पर्यावरण प्रदूषित होता है तथा इसके चलते 'डाला' में चढ़ाये जाने वाले फल भी प्रदूषण का शिकार हो जाते हैं। चूँकि प्रदूषण रहने के कारण से सूर्य नहीं निकलेंगे और सूर्य नहीं निकलेगा तो जल शुद्ध नहीं मिल पायेगा ,क्योंकि जल की शुद्धता सूर्य के किरण पर निर्भर करती है। चूँकि छठ पर्व की शुरूआत कद्दू भात से होती है।पर्यावरणविद के रूप में मेरा मानना है कि कद्दू की सब्जी आसानी से उपलब्ध हो जाती है तथा यह ठंडा भी होता है ,जो हमारे शरीर के लिये लाभदायक है तथा स्वास्थ भी अच्छा रहता है एवं मानसिक शांति भी रहती है। ईख का भी छठ पर्व में काफी महत्व है,क्योंकि ईख उर्जा का स्त्रोत है।इससे ज्यादा ग्लूकोज की प्राप्ति होती है,जो कि पर्व करने वालों को शक्ति प्रदान करती है।साथ ही डाब ,नींबू इत्यादि फल से विटामिन सी की प्राप्ति होती है।साथ ही सभी प्रकार के जीव जंतु के लिये भी सूर्य के किरण का प्रमुख स्थान है।
जीवन की उत्पत्ति का मूल कारण जल और सूर्य है।जल में सूर्य प्रकाश के साथ मिलने से ही जीव जंतु पैदा होता है।जल से होकर सूर्य की रोशनी के पार होने से सात रंग की किरण निकलती है,जो स्वास्थ के लिये अच्छा है। यह एक ऐसा पर्व है जिसमें अन्य धर्म के लोग के लोग भी सड़कों की सफाई करते हुए नजर आते हैं ।
सूर्य इस पृथ्वी पर जीवन जीने वाले सभी जीवों को प्राण वायु ऑक्सीजन उपलब्ध कराने का काम करती है। इसके लिए हरे पेड़ पौधों को सूर्य रोशनी प्रदान करते हैं जिससे कि क्लोरोफिल की उपस्थिति में प्रकाश संश्लेषण की क्रिया कर भोजन बना सके। छठ पर्व में अनेक प्रकार के फल छठ व्रती अपने डाला में चढ़ाते हैं ।ये फल वृक्षों में लगते हैं और वृक्षों के जीवित रहने तथा प्रकाश संश्लेषण के लिये सूर्य के रोशनी की आवश्यकता है ।साथ ही छठ व्रती लोग सूर्य को अर्ध्य देने के लिए नदी के घाट पर जाते हैं ।लेकिन आज के समय में तो नदियां अपना अस्तित्व खोती जा रही है वैसी स्थिति में नदियों के अस्तित्व को बनाये रखना भी एक चुनौतीपूर्ण कार्य बन गया है।इसके अलावे हमारे पर्यावरण का मुख्य चीज नदी,सूर्य,फल,मिट्टी,स्वच्छता इत्यादि है,जिसकी इस पर्व में सख्त आवश्यकता है,जिसके बिना यह पर्व करना संभव नहीं हो पायेगा । साथ ही जब सूर्य को अर्ध्य देते समय जल से सूर्य की किरण पार होकर छठ व्रती के शरीर में जाती है, बहुत सारी बीमारी को समाप्त कर देती है।
इस प्रकार हम कह सकते हैं कि छठ व्रत का पर्यावरणीय दृष्टिकोण से बहुत महत्व है ,क्योंकि अगर पर्यावरण सुरक्षित नहीं रहेगा तो आने वाले समय में छठ पर्व करने में बहुत परेशानी का सामना करना पड़ेगा। इसलिए हमलोगों को पर्यावरण से जुड़े पेड़-पौधों,नदी,तालाब मिट्टी इत्यादि को बचाये रखने की कोशिश करनी चाहिए ।
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*बहुत ही सुन्दर आलेख*,
ReplyDeleteवास्तव में यदि देखा जाए तो जनआस्था से जुड़ा षष्ठी व्रत का यह पावन लोक पर्व *छठ* अपनी संस्कृति के महत्त्व को सारगर्भित तो करता ही है,साथ ही पर्यावरणीय दृष्टिकोण से भी इसका महत्वपूर्ण योगदान हमारे जीवन को सुन्दर,स्वच्छ एवं निर्मल बनाती है। इस पर्व का प्रत्यक्ष सम्बन्ध प्राकृतिक घटक से है क्योंकि हमारा जीवन ही तो प्रकृति को लेकर है जिसके मुख्य अंग पृथ्वी, सूर्य और जल है।जल है तो जीवन है,सूर्य है तो प्रकाश है तथा पृथ्वी है तो आवास है।इस लोक पर्व में इन तीनो के ही महत्त्व को समझा जा सकता है।
अतः हम सभी को लोक आस्था के इस पर्व पर दृढ़ संकल्पित होना चाहिए कि प्राणी समाज को पोषित करने वाले इन प्राकृतिक घटकों को स्वच्छ एवं सुन्दर बनाए रखें जिससे पर्यावरण संरक्षित रह सके और भावी पीढ़ी का भी अपनी इस संस्कृति से सम्बन्ध प्रगाढ़ रहे।
*धन्यवाद*