Saturday 28 March 2020
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बच्चा--राकेश कुमार
बच्चा
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जी हाँ एक शिक्षक की दुनियाँ इसी के इर्द-गिर्द घूमती है, इसलिए आज हम बच्चों की ही चर्चा करेंगे। अक्सर हम देखते हैं कि शैक्षिक गतिविधि के क्रम में विभिन्न अधिगम क्षमता के बच्चों से हम रूबरू होते हैं और उनकी अधिगम क्षमता के रुचिनुसार शिक्षा देने का प्रयास करते हैं क्योंकि एक शिक्षक होने के नाते हमें ज्ञात है कि वर्तमान शिक्षण पद्धति इस बात को आगे लेकर बढ़ती है कि --
बच्चे खाली बरतन नहीं होते कि उसमें हम जानकारी ठूँसते जाएँ बल्कि वे तेल-बाती से भरे दीपक हैं जिसे एक बार जलाने की आवश्यकता है
फिर वे प्रकाश बिखेरते रहेंगे। बच्चा कल्पनाशीलता, सृजनशीलता, सीखने की असीम क्षमता लेकर इस धरती पर आता है तथा उनमें असीम जिज्ञासा भी होती है। अगर हम छोटे बच्चों के निजी सहजात गुणों या धर्मों के आधार पर स्वाभाविक रूप से किये जाने वाले क्रियाकलापों या गतिविधियों को गौर से बिना बाधा डाले देखें तो आश्चर्य होगा कि उनकी हर हरकत के पीछे कोई राज छुपा हुआ है, जिसे समझने की जरूरत है। हमें उनके मनोभाव, उनकी बहुमुखी प्रतिभा, मनोदशा, मनोविज्ञान, मनोकामना को समझना होगा, तभी हम उनके मनोबल को बढ़ा सकते हैं।
वैसे तो हम बच्चे की तुलना किसी मूर्त वस्तु के साथ नहीं कर सकते हैं, पर समझने के लिए उदाहरण के तौर पर उसे एक पौधे की तरह कहते हैं। उसके अंदर विकास के सारे गुण और अपनी प्रवृतियाँ मौजूद हैं, सिर्फ उसे खाद-पानी व सुरक्षा की जरूरत है। बच्चे जितना इनपुट लेते हैं, उससे कई गुणा ज्यादा आउटपुट निकालते हैं। वे कभी-कभी ऐसे प्रश्न कर बैठते हैं जिसका कोई उत्तर हमारे पास नहीं होता लेकिन वे प्रश्न अकाट्य व युक्तिपूर्ण होते हैं।
तो चलिए हम बच्चों के सहजात गुण, जिज्ञाशा, सक्रियता, रुचि, सृजनशीलता, समूह में काम करने की भावना, बच्चों की निजी सोच व उनका नजरिया, पहचानने की क्षमता और बच्चों की ग्राहयक्षमता को लेकर आगे बढ़ें और एक शिक्षक के उद्देश्य को सफल करें।
राकेश कुमार
मध्य विद्यालय बलुआ
मनेर, पटना
About Ravi Raushan Kumar
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बहुत बढ़िया आलेख महोदय।
ReplyDeleteधन्यवाद सर
Deleteबहुत-बहुत.....सुंदर रचना!
ReplyDeleteविजय सिंह
धन्यवाद सर
ReplyDeleteभावनात्मक रचना
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