रोल नम्बर - अरविंद कुमार - Teachers of Bihar

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Friday 10 January 2020

रोल नम्बर - अरविंद कुमार

    
  रोल  नम्बर
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" सर जी मेरा ...रोल...नम्बर... कितना..है....? । " काला कलूटा सा दिखने वाला छात्र गोपी लगभग डरते हुए अपने वर्ग शिक्षक दीलिप सर से बोला ।

" अरे ... !  कहां...था..  ? ,
अभी..आये..हो.....?  हाजरी... बनाने..वक्त..? कहां..रहता..है ?  कहां..है..रे..मनवा..लाओ..तो छड़ी रे " ।

गोपी की बात सुनते ही मास्टर  दीलिप गोपी पर बरस पड़े   ... ।

अक्सर मास्टर दीलिप छड़ी लाने की बात तो करते है मगर उसके प्रयोग से कोसो दूर ही रहते है 
         उनका गुस्सा ढोरिहा सांप की तरह है ,जिसमें फूफकार तो है ,मगर विष नही है ।

काफी समय से दीलिप जी सरकारी गुस्से से ही काम चला रहे है ,जिसे यहां की भाषा में  "मार..कम..बपराहट ज्यादा " कहा जाता है अर्थात मार - पिटाई कम डांट-डपट ज्यादा  ।        
            क्योंकि उन्हें मालूम है की अब छड़ी लाने की बात करना महज एक दिखावा है , जिसे बच्चे भी भलीभांति समझते है ।

हल्की डांट- डपट के बाद दीलिप जी बांये हाथ से अपने चश्मे को संभालते हुए रजिस्टर का पेज पलटने लगे । " तुम्हारा नाम..तो..कट..गया.. है.. रे , कहां था इतने दिनों  से ? " दीलिप सर ने शख्स लहजे में सवाल किया ।

" सर..जी..मेरे ..पिताजी ..के..टांग..में..पता ..नही ..क्या हो ..गया है ....पैर उठता ही नही है...। गांव के  लोग..सब..कहते .है  लकवा..हो .गया..है ..पहले..बाबू जी..ही...पंजाब..जाते ..थे. कमाने ..इस बार नही....जा..सके..इसलिए ..हम .....नत्थू काका..के..साथ जालंधर..चले ...गये..थे  .. नत्थू काका..वहां .. मकान के..ठीकेदार..है ..उन्हीं.के .साथ में..वहां.मकान..में.बेलदारी..करते थे .." । गोपी ने गुरू को सच्चाई बताई उनकी बातों में डर , कशिश , दुख तथा अनचाही जिम्मेदारियों का समावेश था ।

गोपी की बात सुनते ही दीलीप बाबू का गुस्सा करूणा में बदल गया  ।

दीलिप बाबू ठाकुरगंज के रहने वाले है,वो अपने स्कूल मध्य विद्यालय रघुनाथपुर ,भरगामा  के ऊपरी मंजिल पर ही अपना डेरा डाले हुए है ।

दीलिप बाबू जिस क्षेत्र में सर्विस करते है, वो पूरी तरह से कृषि प्रधान इलाका है ,बच्चें, स्त्री, पुरुष सभी जमकर खेतों में पसीना बहाते है । हल - बैल ,माल-मवेशी ,बकरी, भैंस यहां के लोगों  के जीविका का साधन है । 

फसल लगने के कुछ समय बाद तक बच्चें खेतों की पहरेदारी  करते है , अन्यथा मक्का या गेहूं की डीभी कौवे - मैना या अन्य पक्षियों के द्वारा नष्ट होने का खतरा बना रहता है । खेतों में कौआ उड़ाना यहां के बच्चों का परंपरागत काम है । जब फसलों की बालियां खेतों में लहलहाने लगती है, कोयल की कूकने की आवाजें आने लगती है, बटेर फसल के बीचों - बीच आंख मिचौली खेलने लगते है, कंधे पर कचिया, मुंह में बीडी सुलगाते लोग बाध की ओर रूख करने लगते है । तब जाकर इस स्कूल में बच्चों की संख्या में आशातीत वृद्धि होती है । 
               फिर फसल कटने से लेकर खमहार पर जमा होने तथा तैयारी होने तक स्कूल में बच्चों की स्थिति ढीली ही रहती है । 
                 हालांकि विद्यालय में बच्चों के ठहराव को लेकर नित्य नये सरकारी शोध जारी है । मगर आर्थिक तंगी व पेट की भूख के कारण बच्चों व अभिभावकों के ऊपर जारी सरकारी प्रयासों को अभी आशातीत सफलता मिलना बाकी  है ।  
                ऐसे हालात में  शिक्षकों की जिम्मेवारी बढ़ जाती है । परेशानी के बाबजूद भी शिक्षक शिक्षा के क्षेत्र में  नए कीर्तिमान के लिए संघर्षरत है ।

दैनिक कार्यदिवस की तरह आज भी विद्यालय नियत समय पर बंद हो चुका था । बच्चें किलकारी मारते, खुशी मनाते घर की तरफ दौड़ पडे़ थे । मगर दीलिप बाबू की निगाहें भीड़ में गोपी को तलाश रही थी । बचपन में ही जिम्मेदारियों के बोझ तले दबा गोपी भीड़ के पीछे-पीछे शांत मुद्रा में आगे बढ़ रहा था । 

गोपी पर नजर पड़ते ही दीलीप बाबू ने उसे आवाज लगाया ।

गोपी वापस पलटकर दीलिप बाबू के पास आकर खड़ा हो गया ।

" देखो..गोपी..तुम्हारा..नाम..तो हम..लिख..देंगें , मगर..एक..शर्त है..तुम्हें..रोज..सुबह..मेरे..पास पढ़ने..आना..पड़ेगा "। दीलिप बाबू ने कहा 

गोपी की आंखे चमक उठी थी, उसकी आंखे में दीलिप बाबू के प्रति असीम श्रद्धा उमड़ पड़ा था ।

अरविंद कुमार 
ब्लॉक मेंटर, टीचर्स ऑफ़ बिहार 
म.वि.रघुनाथपुर गोठ 
 भरगामा 


   

7 comments:

  1. बहुत हीं सुन्दर लेख सर जी!
    विजय सिंह

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  2. एक चरित्र प्रधान कहानी जिसके सभी पक्ष अपने आप में अद्वितीय है, कल्पना से परे हमारे समाज की विवशता को प्रदर्शित करता हुआ। ये एक करारा प्रहार है समाज पर जिन्होंने एक बालक का बचपना छीन लिया, बच्चे का नटखटपन,शरारतपन,खेल-कूद के समय में उसे एक जिम्मेदारी का बोध ह़ो आया।अरे भी बदमाशी बच्चे नहीं करेंगे तो बूढ़े करेंगे।ये बातें हम सब के लिए शुभ सूचना नहीं है पर लेखक महोदय ने बड़ी सहजता से दिलीप बाबू(गुरूजी) को करूणा से उत्प्लावित कर दिया है और एक आशा के भाव से गोपी को उसका बचपन, लौटाने की चेष्टा पर कहानी का एक सकारात्मक अंत दिखता है। जो लेखक महोदय की सशक्त लेखन कला-कौशल को प्रदर्शित करता है। ऐसे ही एक कहानी श्रद्धेय मुंशी प्रेमचंद जी कहानी मिलती है *ईदगाह* ।जिसमें कथासम्राट महोदय ने वास्तविक परिस्थितियों का अंकन किया पर यहाँ की कहानी में लेखक महोदय ने वास्तविक स्थिति के साथ-साथ एक कदम आगे तक सोच कर दिखाया है। लेखक महोदय को मेरी ओर से अनन्त बधाई है।
    🙏🙏🙏🙏🙏

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  3. 👌🏻👌🏻
    भारत(गॉंव) के परिप्रेक्ष्य में *india(विकसित भारत) का निर्माण* शिक्षकों की सबसे बड़ी जिम्मेवारी है,इसमें कोई दो राय नहीं कि सरकारी विद्यालयों में कई ऐसे गोपी हैं जिनकी विपरीत परिस्थितियाँ उनकी विवशता के परिचायक हैं,किन्तु यदि शिक्षकों के मानवीय संवेदनाओं के आधार पर उन परिस्थितियों से छात्र समझौता करने को तैयार हो तो सचमुच में दिलिपबाबू जैसे मार्गदर्शक भी उनके भविष्य को लेकर फिक्रमंद होते हैं और एक शिक्षक होने के नाते हमें उनकी चिंता भी स्वाभाविक है,बशर्ते कि स्वभिप्रेरणा के साथ शैक्षिक कर्तव्यों के पालन में हम प्रतिबद्धता के साथ खड़े रहें।
    धन्यवाद!

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  4. बहुत बढ़िया

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  5. बेहतरीन मेरे विद्यालय का परिवेश ऐसा ही है।

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  6. Nice
    Laga jaise premchandra ki rakhna padh rahe hai
    Thanks !

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