Wednesday 12 February 2020
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प्रथम पुरस्कार-पूजा कुमारी
प्रथम पुरस्कार
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26 जनवरी 2020 की सुबह थी और बच्चों का उल्लास अपनी चरम सीमा पर था। झंडोत्तोलन और राष्ट्रगान के बाद बच्चों के बीच देेेेशभक्ति गीत, भाषण- प्रतियोगिता और कविताओं का दौर शुरू हो गया। एक से बढ़कर एक प्रस्तुति हुई और अंततः पुरस्कारों की घोषणा हुई। छठी कक्षा के रुपेश को भाषण-प्रतियोगिता में प्रथम पुरस्कार प्राप्त करता देख बगल में बैठी शिक्षिका की आँखें भर आई और एक वर्ष पूर्व की घटना उनकी आँखों के सामने तैर गई।
बात 2019 के गणतंत्र-दिवस के कुछ दिन पूर्व की है। सभी बच्चे देशभक्ति गीत, भाषण, कविता, इत्यादि प्रस्तुत करने के लिए अपना नाम लिखवाने के लिए उत्साहित थे। एक बच्चा दरवाजे के पास खड़ा होकर सबकुछ देख रहा था। उसके चेहरे पर तो उत्साह था लेकिन आँखें बेरंग लग रही थी। वह कुछ कहना चाह रहा था लेकिन बोल नहीं पा रहा था। शिक्षिका ये सब समझ रही थी। उन्होंने उसे बुलाया और बड़े प्यार से पूछा- क्या बात है, तुम कुछ कहना चाहते हो? बच्चे ने कहा- मैडम जी मुझे भी भाषण-प्रतियोगिता में भाग लेना है। मैडम खुश होकर बोली, ये तो बहुत अच्छी बात है। आगे उसने कहा कि उसे हिंदी पढ़ना नहीं आता। वहाँ बहुत से बच्चे थे और वे लोग उसी बच्चे को गौर से देख रहे थे इसलिए मैडम ने उस बच्चे से कहा कि हमलोग लंच की घंटी में इसपर बात करेंगे।
लंच की घण्टी लगते ही मैडम ने उस बच्चे को बुलाया। उन्होंने उससे पूछा कि तुम हिंदी नहीं पढ़ सकते तो कोई बात नहीं। मैंने भी कभी हिंदी पढ़ना सीखा था। मैं तुम्हें हिंदी पढ़ना सिखाऊँगी। अगर तुम कोशिश करो तो फर्राटेदार हिंदी पढ़ना और बोलना सीख लोगे। बच्चे का आत्मबल बढ़ा और बोला आप जैसा कहेंगी मैं वैसा ही करूँगा और हिंदी पढ़ना-लिखना सीखूँगा। चूँकि गणतंत्र दिवस में चार-पाँच दिन ही शेष बचे थे और इतनी जल्दी तो वह हिंदी पढ़ना सीख नहीं सकता था, इसलिए मैडम ने एक तरक़ीब निकाली। उन्होंने तय किया कि उस बच्चे को दो पंक्ति का एक स्लोगन लिखकर दे देगी और याद करवा देगी ताकि उसका मनोबल बना रहे। प्रभातफेरी के दौरान वह इसे दोहराएगा। इस बार के लिए इतना ही काफ़ी है उसके लिए।
गणतंत्र दिवस के बाद बाल-पोथी से उस बच्चे की हिंदी-यात्रा शुरू हुई। चुँकि बाल-पोथी देखकर उसकी कक्षा के बच्चे मज़ाक उड़ाते इसलिए मैडम उसे लंच के समय अकेले में पढ़ाया करती। बाल-पोथी से शुरू हुआ उसका सफर अब उसकी कक्षा की किताबों तक पहुँच गया था। उस बच्चे ने पूरी लगन से मेहनत की और फर्राटेदार हिंदी पढ़ना-लिखना सीख गया। उस बच्चे रूपेश ने इस गणतंत्र दिवस के अवसर पर सैकड़ों लोगों के बीच अपनी वाक-शैली से न केवल सबका दिल जीत लिया बल्कि प्रथम पुरस्कार का भागी भी बना।
"कोई भी लक्ष्य मनुष्य के साहस से बड़ा नहीं,
जीतता वही जो चुनौतियों को देखकर डरा नहीं।"
एक तेरह साल के बच्चे ने आज इस चरितार्थ को सच साबित कर दिखाया था। इस बच्चे ने न केवल अपना बल्कि उस शिक्षिका का मनोबल भी बढ़ाया साथ ही सीखने-सिखाने के सिलसिले में एक यादगार कड़ी जोड़ गया !
प्रयत्न कभी व्यर्थ नहीं जाता ! इसलिए सदैव प्रयत्नशील व ऊर्जावान रहें !
पूजा कुमारी,
मध्य विद्यालय जितवारपुर
प्रखंड+ जिला - अररिया
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बहुत बढ़िया 💐
ReplyDeleteप्रेरक एवं उत्कृष्ट रचना
ReplyDeleteBahut hi badhiya ma'am
ReplyDeleteBhut achha lga padhkar didi......
ReplyDeleteAmazing 💐👍🙏
ReplyDeleteदिल को छू गया।
ReplyDeleteबहुत अच्छा पूजा जी।
बहुत सुंदर कहानी!
ReplyDeleteविजय सिंह
Student and teacher ke sambandh bahut achha laga
ReplyDeleteएक शिक्षक और छात्र दोनो के लिये प्रेरणादायी
ReplyDeleteशिक्षक और छात्र दोनों के लिये प्रेरणादायी
ReplyDeleteप्रतिक्रिया देने के लिए सबका धन्यवाद ���� मैं कोशिश करूँगी कि इस बच्चे की हिन्दी-यात्रा की तरह मेरी भी लेखन-यात्रा जारी रहे....
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