Sunday 9 February 2020
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सपनों की बारिश में भींगता मन - सीमा कुमारी
सपनों की बारिश में भींगता मन
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चाय की केतली से उठता हुुआ भाप पिंटू के चेहरे पर सफेद बादलों की तरह उड़ रहे थे। वह उस खौलते हुए चाय को बड़े ही ध्यान-मग्न होकर देख रहा था। चाय की पतीली फिर से चूल्हे पर चढ़ाते हुए उसे एक ढक्कन से ढंक दिया था। पानी में उबाल आते ही वह ढक्कन अपनी जगह से जब उछलने लगा तब उसकी कौतुहल भरी मुस्कान देखकर अम्मा ने उसे झिड़की दी थी ।
"अरे पिंटुआ तू कौन दुनिया में है रे..."
जा जल्दी से उधर पड़े हुए जूठे गिलासों को धो ले तब तक मैं चाय छानती हूँ।
अरे जा न भोर प्रहर बोहनी का बेला होता है न ....
बेंच पर बैठे हुए ग्राहकों को देखते हुए माँ ने कहा था ।
माँ इन पैसों से मेरे जूते खरीद दोगी न ?
बड़ी ही मासूमियत से पिंटू ने माँ को कातर नजरों से देखते हुए यह पूछा था ।
माँ उसका इशारा समझ चुकी थी ....
तुम्हरे बाबू होते तो आज ये दिन देखने नहीं पड़ते।
बगल के स्कूल में लाॅउडस्पीकर पर गाना बज रहा था
"इतनी शक्ति हमें देना दाता, मन का विश्वास कमजोर हो न
हम चलें नेक रस्ते पे हमसे भूल कर भी कोई भूल हो न..."
दोनों माँ-बेटे की आँखों में वह सीन उभर गया जब बिना ड्रेस और जूते के उसे चेतना-सत्र के दौरान डाँटा गया था और उसकी एक अलग लाइन बनाई गई जो अन्य लड़कों के जूतों की एकरूता को देख स्वयं के लिए भी खरीदने के लिए लालायित हो सके।
माँ ने सांत्वना देते हुए बेटे से कहा- आज की कमाई से थोड़ा-थोड़ा पैसे जोड़ कर कुछ दिनों में जरूर खरीद दूँगी तेरे लिए नए जूते ।
तू जल्दी से यह बर्तन मांज ले।
पिंटू की नजर फिर से उस चाय वाले बर्तन पर गई जिसके ढक्कन पर ढेर सारी पानी की बूंदें जमा हो गई थी।
वह उस ढक्कन को पलट कर माँ को दिखाते हुए कहा कि देखो माँ बारिश ऐसे होती है .....
जब बादल पानी से भर कर भारी हो जाता है तब वह बूंदों के रुप में धरती पर बरसने लगता है ठीक ऐसे ही...
हाँ माँ पोखर का पानी ही गरम होकर भाप में बदलता है फिर वह बादल बनकर बरसता है।
वह तन्मय होकर माँ को कहानी सुना रहा था कि तभी उसकी नजर श्रेया मैम पर पड़ी जो काफी देर से माँ - बेटे के वार्ता-लाप को सुन रही थी।
श्रेया मैम ने उसे कल से रोज स्कूल आने को कहा और कहा, " तुम्हारे जूते मेरी तरफ से लेकिन एक शर्त पर"..
पिंटू ने डरते हुए मैम को देखा ।
श्रेया मैम ने उसके सिर पर हाथ रखते हुए कहा कि इसके लिए और कुछ नहीं बस तीन से चार दिन तुम्हें स्पेशल क्लास लेना होगा जिसमें मैं तुम्हें पीछे के छूटे हुए कोर्स को पढ़ाऊँगी।
पिंटू की माँ को भी खास हिदायत देते हुए कहा कि, "अब अपनी चाय की दुकान आप खुद संभालिए और पिंटू को पढ़-लिख कर राजा-बाबू बनने दीजिए"।
क्यों पिंटू तुम बनोगे न एक दिन "सर आइजक न्यूटन" !
पिंटू की आँखों में तैरते सपनों ने आखिर अपना ठिकाना ढूँढ ही लिया था ।
सीमा कुमारी
राजकीयकृत मध्य विद्यालय बीहट
प्रखंड - बरौनी, जिला - बेगूसराय
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अतिसुन्दर रचना मैम
ReplyDeleteइस रचना से वर्ग 8 के 'खेमा'की याद ताजी हो गयीl
सार्थक कथा,धन्यवाद
ReplyDeleteबहुत-बहुत सुन्दर रचना!
ReplyDeleteविजय सिंह
सुंदर रचना।
ReplyDeleteसुंदर रचना।
ReplyDeleteBahut hi achcha
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