Thursday, 2 April 2020
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वह दिव्यांग बालिका--राजेश कुमार सिंह
वह दिव्यांग बालिका
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कल मैंने एक दिव्यांग बालिका को देखा;
जिनके हाथ काम नहीं कर रहे थे पर हाथों से काम करने की चाहत तो थी !
उस बालिका के पैर काम नहीं कर रहे थे पर चलने की चाहत तो होगी !
वह मुड़ नहीं पा रही थी पर
मुड़ने की चाहत तो उनमें भी थी !
वह स्वयं बिछावन से उठ भी नहीं पा रही थी पर उनमें उठ खड़े होने की चाहत तो दिखी !
वह दिव्यांग बालिका बोल भी नहीं पा रही थी पर
उनमें बोलने की अदम्य चाहत दिखी थी !
अपलक उनकी आँखें मुझे घूर रही थीं; कम-से-कम आँखों को काम करने की आदत तो थी !
मैंने महसूस किया कि वह बालिका सुन भी पा रही थी पर बयाँ न करने की शिकायत तब भी थी !
वह साँस भी ले रही थी पर कुलमिलाकर जीवित तो नहीं ही थी !
मैंने गोद में उठाकर जब उन्हें सुलाया था तब वह मुस्कुरा पड़ी थी पर वह शाश्वत मुस्कुराहट न थी !
तीन साल की उस बच्ची के आगे पूरा जीवन पड़ा था पर
क्या उनमें जीने की चाहत बची थी ?
मेरे आँसू छलक पड़े थे, मैंने पल-भर में ही सहानुभूति का खज़ाना लुटाया था फिर भी बहुत सारी चीज़ें देने को शेष रही थी !
उस बालिका को जीवन के रूप में मिला हुआ यह वरदान है या अभिशाप;
दोषी कौन हैं "वह दिव्यांग" या फिर "हे दिव्य भगवान् आप"?
राजेश कुमार सिंह
उत्क्रमित मध्य विद्यालय बलथारा
मोहिउद्दीननगर, समस्तीपुर
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दुनियाँ में कितना गम है मेरा गम कितना कम है
ReplyDeleteऔरों का गम देखा तो मैं अपना गम भूल गया।
सब ईश्वर की महिमा है।
मर्मस्पर्शी! ईश्वर बहुत जल्द बिलिका का दुःख हर लेंगे।
विजय सिंह
धन्यवाद सर👏
Deleteमर्मस्पर्शी!
ReplyDeleteईश्वर बहुत जल्द हीं बालिका का दुःख हर लेंगे।
विजय सिंह
सादर आभार👏
DeleteHeart touching line and best thinking
ReplyDeleteThanks dear sir��
Deleteआपकी भावनाएं ऐसी ही बनी रहे
ReplyDeleteभावनात्मक बहुत ही मर्मस्पर्शी रचना
धन्यवाद मैम !👏
Delete👌
ReplyDeleteआप सभी श्रद्धेय पाठकों के प्रति आभार व्यक्त करता हूँ।👏👏👏👏👏👏
ReplyDeleteIshwar bahut dayalu hai vah sab theek Karega
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