बच्चों के द्वारा पूछे गए प्रश्नों के जबाव एवं उनका व्यक्तित्व विकास-अरविंद कुमार - Teachers of Bihar

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Saturday, 11 April 2020

बच्चों के द्वारा पूछे गए प्रश्नों के जबाव एवं उनका व्यक्तित्व विकास-अरविंद कुमार

बच्चों के द्वारा पूछे गए प्रश्नों के जवाब एवं उनका व्यक्तित्व विकास
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          बच्चे तो बच्चे होते ही हैं। वे जब घर की चहारदीवारी लांघकर विद्यालय में अपने साथियों बच्चों की टोलियों के साथ विद्यालय पहुँचते हैं, परिवार से अलग होने, माता-पिता से दूर होने से असुरक्षा, अज्ञात भय उन्हें प्रभावित करता है। प्रारंभ में विद्यालय जाते समय बच्चे प्रायः रोया करते हैं अथवा चुप-चाप बैठे भी रहते हैं परंतु धीरे-धीरे अन्य बच्चों की देखा-देखी नए बच्चे भी खेलते हैं और कुछ जानने का प्रयास करते हैं। किताबों से, शिक्षकों से, सहपाठियों से एवं अपने आस-पास के वातावरण से भी। अचानक अपने आस-पास कई तरह की नई-नई वस्तुओं जैसे- पेड़, खेत, विद्यालय, बच्चे और न जाने क्या-क्या। सूरज और चंदा उन्हें बरबस ही अपनी और खींचते हैं। इस प्रकार ढेरों चीजों को देखकर बच्चों के मन में तरह-तरह के प्रश्न आते हैं। प्रारंभ में उनके सवालों का जबाव परिवार से लेकर शिक्षकों द्वारा भी दी जाती है लेकिन कई बार उनके द्वारा पूछे गए सवालों के जबाव या तो बहुत उलझाने वाले होते हैं अथवा कई बार शायद उम्र के हिसाब से नहीं होते हैं अथवा हमें खुद भी उनके जबाव पता नहीं होते हैं।
          बहुत अधिक जिज्ञासु बच्चों के बार-बार प्रश्न पूछने के कारण कई बार हम उसे झिड़क देते हैं। हल्की डाँट पिला देते हैं। इतना ही नहीं कई बार उनके जबाव पता नहीं होने से हम उनका जबाव देने में सक्षम नहीं होने के कारण चुप करा देते हैं। इस प्रकार बच्चे का विकास दबने-रुकने लगता है। उसे लगता है कि मेरे शिक्षक, मेरे माता-पिता को इसके जबाव ही नहीं पता है। मैं फिर उनसे प्रश्न क्यों पूछूं? इस प्रकार उनकी जिज्ञासा, कौतूहल एवं प्रतिभा  दबने लगतीे है। इस तरह बच्चों के क्यों का जबाव देना बहुत ही जरूरी है। बच्चा यदि कोई प्रश्न करें तो उसे उदाहरण देकर समझाएँ एवं आवश्यकता के अनुसार उसे करके भी दिखाएँ। अटपटे प्रश्नों के जबाव देने के लिए हम स्थिति का आकलन करें एवं आवश्यकतानुसार उन्हें जानकारी से अवगत कराएँ। अगर हमारे पास तत्काल उसके जबाव नहीं हैं तो हम उन प्रश्नों के जबाव तलाश कर उसे अगले दिन जरूर बताने का प्रयास करें ताकि उनकी प्रतिभा कुंठित न हो। अगर बच्चा प्रश्नों के जबाव नहीं पाएगा तो उसका मन अशांत रहेगा और अशांत रहने पर बच्चे का विकास जो होना चाहिए वह कदापि नहीं हो सकता। बच्चे के किसी भी प्रश्न को ignore नहीं करें एवं उनके माता-पिता को भी इसके लिए सचेत करें कि आप बच्चे द्वारा पूछे गए प्रश्नों के जबाव यथासंभव देने का प्रयास करें।


अरविंद कुमार 
गौतम मध्य विद्यालय न्यू डिलियाँ 
रोहतास

8 comments:

  1. बच्चों के मन में कौतूहल होना स्वाभाविक है। ऐसे में एक कुशल शिक्षक को धैर्य का सहारा लेते हुए उनकी जिज्ञासा शांत करने की कोशिश करनी चाहिए। उपयोगी आलेख हेतु बहुत बहुत बधाई एवं शुभकामनाएं....

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  2. बहुत-बहुत सुन्दर मित्र
    विजय सिंह

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  3. Nice article over the curiosity of children which must has been settle by the wise peoples.
    Thanks.

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  4. This comment has been removed by the author.

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