Saturday, 11 April 2020
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हमारा अनुशासन और प्रकृति में डरावनी अठखेलियाँ करते कोरोना वायरस-देव कांत मिश्र
हमारा अनुशासन व प्रकृति में डरावनी अठखेलियांँ करते कोरोना वायरस
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कोरोना! कोरोना! कोरोना! बस एक ही चर्चा-जो मुंँह बाये खड़ी है। निगल जाने को आतुर है। एक भय, एक डर तथा मानव मन को उद्वेलित व खौफ पैदा करने वाली एक ख़तरनाक अज्ञात चीज। सच में, जब हमारी प्रकृति में ऐसी चीजें आती हैं तो सबके मन को झकझोर देती है। ऐसा प्रतीत होता है मानो वे हमारे साथ सही में अठखेलियांँ कर रहा है। इसकी आड़ में जनमानस को परेशान कर काल के गाल में समा रहा है। देश में अराजकता की स्थिति पैदा कर रहा है। इस वक्त हमें अनुशासन की बात सहसा मन में उपज आती है। यहांँ अनुशासन से तात्पर्य श्रेष्ठ लोगों के द्वारा कही गई बातों पर चलना, नियम कायदे को मानना, उनके द्वारा बताई गई राह को जामा पहनाना इत्यादिि है। आज हमारा देश भारत कोरोना की चपेट में है। कोरोना पूरी दुनियांँ में महामारी का रूप ले चुका है। एक सूक्ष्म वायरस के सामने हम घुटने टेक दिए हैं। विज्ञान प्रकृति के सामने बौना साबित होने लगा है। कोई कारगर व ठोस उपाय अभी तक नहीं दिख रहा है तो इस भीषण परिस्थिति में माननीय प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के द्वारा लॉकडाउन व सामाजिक दूरी (Social distancing) बनाने की पहल व इसका पालन करना अनुशासन का ही तो परिचायक है। यह तो एक तरह से अनुशासन पर्व बन गया है। इस संबंध में मेरी मानसिकता कहती है-- The festival of discipline has shown as if it were a sight for the whole world. The way we have waged a campaign against the corona- like epidemic of lock- down is truly a commendation. सच में, अनुशासन रुपी पर्व सारी दुनियाँ के लिए एक नज़ीर व काबिले-तारीफ है। साथ ही साथ यह हमारी सभ्यता व संस्कृति का प्रथम सोपान है। इसके बल पर ही हमारा पारिवारिक और सामाजिक जीवन पुष्पित और पल्लवित होता है। गौरतलब है हमारी प्रकृति भी समय का पालन करती है। सूरज समय पर उगता है और समय पर ही अस्ताचल की ओट में छुप जाता है। उसी तरह चांँद, तारे, ग्रह, उपग्रह सभी अनुशासनबद्ध रहते हैं। तात्पर्य है कि इसके कारण प्रकृति स्वस्थ है। उसकी नियमितता में बाधा नहीं आती है। यहांँ तक कि एक छोटी सी चींटी तथा नील गगन में उड़ते, विचरण करते पक्षी भी जब कभी कतारबद्ध होकर चलते हैं तो मानो प्रकृति में कितना सुन्दर दृश्य उपस्थित हो जाता है।
हमारी प्रकृति को जीवंत दिशा दिखाने वाला छठ पर्व में अस्ताचलगामी व उदयाचलगामी सूर्य देवता को ही अर्घ्य पड़ता है। थोड़ा सोचिए! हम कितने पवित्र भाव से नियम का पालन करते हैं तो अभी क्यों नहीं। अभी भी वक्त है संभल जाने का, नियम कायदे में बंँध जाने का। यानी यूंँ कहा जाय अनुशासन सद्भावों का प्रेरक, विनय और शील का स्रष्टा, साधन का सखा और निरंकुश स्वेच्छाचार का दुश्मन होता है। यह प्रेरणा से लेकर सृजन तक की श्रृंखला का देवता होता है। सच में, अनुशासन बड़ा ही प्यारा शब्द है। इसमें एक कशिश है। तब न आज हमें सामाजिक दूरी बनाने की बात जुबां पर उमड़ रही है। यहांँ दूरी से मतलब स्नेह प्रेम की कमी नहीं है बल्कि अनुशासन का पालन कर स्वयं को सुरक्षित बचाए रखना है। विद्यालय में भी नैतिक शिक्षा के तहत बच्चों को यह बताया जा सकता है कि अनुशासन एक बहुमूल्य चीज है। इसे अच्छी तरह अपनाकर ही आप एक सच्चा इंसान व सभ्य नागरिक बन सकते हैं। इसके साथ-साथ योग शिक्षा को विद्यालय के पाठ्यक्रम में शामिल कर इसके प्रति जागरूक कर सकते हैं। इससे हमारी संस्कृति और ही ज्यादा मजबूत बनेगी। यह वक्त खुद के प्रति अपनी जिम्मेदारी महसूस करने का है। विश्व को अमन शांति का पैगाम देना वाला भारत आज सूक्ष्म वायरस के सामने नतमस्तक हो गया है। किंकर्तव्यविमूढ़ हो गया है।अमेरिका, इटली, फ्रांस, जर्मनी, ब्रिटेन, चीन तथा अन्य देशों की स्थिति से हम वाकिफ हो ही गए हैं। इन विकसित व शक्तिशाली देशों का हश्र हमने देख लिया।अब एक ही उपाय है- बस हम प्रकृति की ओर लौट जाएंँ। इससे ही नाता जोड़ें। धर्म की ओर कदम बढ़ाएंँ। 'घर में' ही रहकर अपने जीवन को सुरक्षित बनाएंँ।
मेरा ज़मीर कह रहा है
यह जीवन बड़ा अनमोल है
इसे यूंँ व्यर्थ न गवांँइए।
लॉक डाउन का पालन कर
इसे खोने से बचाइए।।
देव कांत मिश्र
म. वि. धवलपुरा
सुल्तानगंज, भागलपुर, बिहार
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हमें पर्यावरण का संरक्षण करते हुए प्रकृति के नियमों का अनुपालन करना चाहिए। कोरोना जैसी चुनौतियां समय पर विश्व के सामने उपस्थित होती रही हैं। हमें अपने उपलब्ध ज्ञान और विवेक के सहारे उनका सामना करना चाहिए। उपयोगी एवं प्रासंगिक आलेख हेतु बहुत बहुत बधाई एवं शुभकामनाएं.....
ReplyDeleteThis comment has been removed by the author.
ReplyDeleteSahe hay
ReplyDeleteDear friend,
ReplyDeleteCongrats for your Article. Its really awesome in reading. Few of the point's reflecting in my mind that how we are helping the people to maintain the discipline as many of us don't know the reality's of CORONA COVID-19. Few more points like day to day food arrangements and other needs are also being's a tragedic and drastic situations for the people who are facing every day new challenges to feed their family's.
अतिसुंदर!
ReplyDeleteविजय सिंह
Very thoughtful & considerable
ReplyDeleteVery useful article
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