Sunday, 12 April 2020
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गोपी-एकलव्य
गोपी
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गोपी अपने घर में खेल रहा था। मुश्किल से वह चार-पाँच साल का होगा। अपने पिता अकाश के बाईक की आवाज सुन दौड़कर बाहर आया और आकाश से लिपट जाना चाहा। तभी आकाश घबड़ाहट में जोर से डाँटते हुए अपने से दूर रहने की हिदायत देता है। गोपी को दूर देख वह निश्चिंत होकर स्वयं के साथ वस्त्रों को धोने लगा। इधर गोपी अप्रत्याशित डाँट से डरकर कमरे में जाकर चादर से मुँह ढककर रोने लगा। दुख छिपाने की कला बड़े ही नहीं, शायद बच्चे भी जानते हैं।
गोपी के दादा जी घर के पीछे बाड़ी (छोटा सा बगीचा) में ज्यादा समय व्यतीत करते थे। लॉकडाउन की वजह से दोपहर का समय जो आज भी गाँवों में ताश खेलने का अधिकृत समय माना जाता है, उसको भी छोड़ दिए। बाड़ी में आम, लीची, अमरूद, नीम के साथ गेंदा, डालिया, गुलाब, अड़हुल बाड़ी को मन-मोहक बना रहे थे। वहीं करेला, झिमनी, कद्दू के नवांकुर पौधों का विशेष ध्यान रख रहे थे। भिण्डी, बैंगन में लटके फल भी अपनी ओर देखने के लिए मानो इशारा कर रहे थे। गेहूँ और गुलाब को यह बाड़ी बहुत हद तक चरितार्थ कर रहा था। गोपी और उसके भाई-बहन बाड़ी में बने झूले पर झूला झूलते, चटाई बिछाकर कैरम खेलते, ड्राइंग करते या फिर विचार न मिलने पर खट-पट करते।
परिवार के सदस्य बाड़ी, टी. वी. या व्यक्तिगत व्यस्तता के कई कारण हो सकते हैं, जिस वजह से किसी का ध्यान गोपी पर नहीं गया होगा। इधर आकाश जब घर (कमरे) में प्रवेश किया तो रोने की आवाज सुनकर वह समझ गया कि जोर से डाँटने के कारण ही गोपी रो रहा है। कभी-कभी बच्चा सामान्य डाँट को नजर-अन्दाज कर डाँट की विश्वसनीयता को परखना चाहता है। आकाश को शायद इसका भान था। कदाचित मनुष्य अपने भीतर के भय को भी ऊँची आवाज देकर बाहर निकालने का प्रयास करता है। आकाश का जोर से डाँटना शायद इसी का प्रतिफल था। गोपी को गोदी में लेकर वह चुप कराते हुए समझाने लगा कि बाहर कोरोना वायरस रहता है। अगर जोर से नहीं डाँटते तो तुम मुझसे लिपट जाते। अब मैं स्वच्छ हो गया हूँ और तुम्हें गोदी भी लिया हूँ। गोपी चेहरे पर प्रसन्नता का भाव लाते हुए पूछता है- क्या आप चॉकलेट भी लाये हैं। आकाश उसको भी सेनेटाईज्ड कर रखा था। चॉकलेट पाते ही गोपी के खुशी का ठिकाना न रहा। बच्चे सामान्य चीजों को पाकर भी उत्सव मनाते हैं, वहीं बड़ी-बड़ी उपलब्धियों पर भी कुछ और पाने की निराशाओं के दल-दल में डूबे रहते हैं। चॉकलेट पाते ही गोपी पूछता है - पापा, कोरोना क्या होता है। आकाश उसके सूनी आँखों को देखकर उत्तर देना ज्यादा श्रेयकर समझा। गोपी यह एक खतरनाक वायरस है, जिसे कोविड-19 कहा गया है। संक्रमित व्यक्ति जब किसी के सम्पर्क में आता है तो वह भी संक्रमित हो जाता है। अभी तक कोई सार्थक उपचार नहीं मिला है। वर्तमान में इस वायरस से लड़ने का श्रेष्ठ उपाय है- सामाजिक दूरी बनाए रखना व साफ-सफाई करते रहना। परन्तु पापा टी.वी. पर डॉक्टर तो ईलाज करते हैं। क्या उनको कोरोना से डर नहीं लगता। टी. वी. पर नहीं वह अस्पताल का सीन (दृश्य) होता है जिसे हमलोग टी. वी. पर देखते हैं । यह एक ऐसी छूत की बीमारी है जो न धर्म देखता है न हीं जात-पात। डॉक्टर तो धरती के भगवान होते हैं। उन्हीं के वजह से कई लोग इस रोग से लड़कर ठीक हुए और अपने घर लौट चुके है। गोपी कहता है- अच्छा तभी भगवान को डर नहीं लगता। आकाश समझाते हुए गोपी से कहता है- नहीं गोपी, यह कोरोना धरती के भगवान और इन्सान में भी फर्क नहीं करता। डॉक्टर भी तो पहले एक इन्सान है। डॉक्टर पूरे शरीर को ढककर कोरोना से संक्रमित व्यक्ति का ईलाज करते है। फिर भी असावधानी बढ़ने का खतरा बना ही रहता है। फिर गोपी आश्चर्य से पापा को देखते हुए पूछता है- क्या वे अपने बच्चों को गोदी में नहीं लेते हैं। आकाश इस प्रश्न के लिए बिल्कुल तैयार नहीं था। उसे बेचैनी सा महसूस होने लगा। वह गोदी से गोपी को उतारकर बिस्तर पर लेट गया। उसका हृदय जोर-जोर से धड़कने लगा। आज कई दिनों के लॉकडाउन में पहली बार वह दवा और खाद्य सामग्री लाने हीं तो गया था। वह भी सामाजिक दूरी का पालन करते हुए, क्रय कर घर लौटा था। यहाँ तक कि रुपये-पैसे के साथ मोबाईल और पर्स को भी सेनेटाईज्ड किया था। वह डॉक्टर जो कोरोना जैसे आत्मघाती बम के साथ दिन-रात रहता है, जिसे यह भी न पता कि वह कब फट जाएगा और खुद क्वारन्टाईन हो जाएगा। मृत्यु के भय से आक्रान्त रूग्नाग्रस्त व्यक्ति के साथ दिन-रात वे एक अदृश्य भय के साये में नहीं जीते होंगे। यह मानव नहीं मानवता पर आई एक भयानक विपदा है, जिसे डॉक्टर अदम्य साहस के साथ लड़ रहे हैं। उसके बच्चे, पत्नी, बूढ़े माता-पिता का ध्यान कौन रखता होगा। बच्चे-पिता के लिए पत्नी अपने पति के लिए, माता-पिता अपने पुत्र के लिए क्या हमेशा चिंतातुर नहीं रहते होंगे। इन सब बातों को सोचकर आकाश इतना परेशान हो गया था कि पंखा चलने के बाद भी उसके चेहरे पर पसीने की बूंद स्पष्ट दिखाई पड़ रही थी।
गोपी की माँ चाय लेकर आती है। आकाश की स्थिति देख घबड़ाकर पूछती है- क्या हुआ आपको। पसीना क्यों आ रहा है। आकाश ने झट से उत्तर दिया- कुछ नहीं डॉक्टर का परिवार किस हाल में होगा। "पत्नी अपने बच्चे और पति के चेहरे को पढ़कर दर्द की गहराई जान जाती है।" गोपी की माँ चिन्ता का कारण जान दिलासा देते हुए कहती है- कुछ नहीं होगा। जो सबकी रक्षा करते हैं भगवान उनकी रक्षा स्वयं करते हैं। भगवान का नाम सुनते ही आकाश में आत्मविश्वास जगा। विज्ञान को मानने वाला आकाश कैसे भगवान के नाम से आत्मविश्वास पा गया। उसे पता भी नहीं चला। नहीं गोपी की माँ- डॉक्टरों के परिवार की चिन्ता सता रही है। हमलोगों के कारण देव-दूत व उनका परिवार भी खतरे में आ गया है। अगर कुछ हो गया तो उसके बच्चों को पिता का प्यार कौन देगा। गोपी जैसे मेरे छाती से लगकर जो सुरक्षा और खुशी महसूस करता है, उसे क्या अन्यत्र मिल पायेगा? उसकी पत्नी, बूढ़े माता-पिता, नहीं-नहीं। सबसे कह दो घर से बाहर न निकले। सामाजिक दूरी के साथ हाथों व घर को भी स्वच्छ रखें। तुम भी साफ-सफाई की आदत बच्चों में अभी से डालना शुरू कर दो। घर के बगल में रामवरण को कुछ खाने-पीने की दिक्कत हो तो अपने घर से दे दो परन्तु बाहर न जाने की बातें समझा दो। जितना कम प्रभावित होगा उतना परिवार सुरक्षित रहेगा। गोपी की माँ ढाँढ़स बँधाते हुए कहती है, हाँ-हाँ सबसे कह दूँगी। अब आप चिन्ता नहीं कीजिए। चाय ठंडी हो रही है, पी लीजिए। आकाश चाय पीते हुए मन ही मन अकारण बाहर न निकलने का व्रत लेता है। विज्ञान में विश्वास करते हुए भी भगवान से डॉक्टरों के जीवन की रक्षा का प्रार्थना करने लगता है। विज्ञान जब असफल होने लगता है तब वह भी भगवान का शरणागत हो जाता है। फिर उसे आत्मविश्वास प्राप्त होता है। इसी विश्वास के बल पर फिर एक नई विज्ञान का खोज करता है। गोपी तभी गोदी में आकर बैठ जाता है और गाल, दाढ़ी, कान, नाक को छूकर सहलाने लगता है। गोपी के कोमल हाथों के स्पर्श से आकाश विचार लोक से बाहर निकल कर संतोष प्राप्त करता है, परन्तु देव-दूतों के जिन्दगी की प्रार्थना के साथ। गोपी के गुद-गुदी लगाते हीं आकाश और गोपी दोनों एक साथ हँसने लगते हैं।
एकलव्य
संकुल समन्वयक
म0 वि0 पोखरभीड़ा
पुपरी, सीतामढ़ी
About ToB Team(Vijay)
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रोचक प्रस्तुति, प्रासंगिक विषय पर तथ्यपरक आलेख को कहानी के रूप में सफल प्रस्तुतिकरण हेतु बहुत बहुत बधाई एवं शुभकामनाएं......
ReplyDeleteआपका प्रोत्साहन बहुत ही सुखद एवं आदरणीय है।।बहुत बहुत धन्यवाद।
Deleteबहुत ही जागरूकता लाने वाला और सामाजिक दायित्वों का बोध कराता आलेख, साधुवाद एवं शुभकामनाएं
ReplyDeleteआपका विचार सदैव सन्मार्ग की ओर प्रेरित करता रहेगा।। हृदय से आभार।।
Deleteआकाश जैसे यदि सभी हो जाते तो कितना अच्छा होता!
ReplyDeleteविजय सिंह