Sunday, 12 April 2020
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पक्षियों को बचाइए--जैनेन्द्र प्रसाद(रवि)
पक्षियों को बचाइए
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मनुष्य की तरह पक्षी भी हमारे पर्यावरण का एक महत्वपूर्ण घटक है। आदमी जहाँ अपने स्वार्थ में पर्यावरण का दुश्मन बन बैठा है वहीं चिडियाँ अपने कार्य निःस्वार्थ भाव से कर रहीं हैं।
पहले सुबह-सुबह वृक्षों की डालियों एवं घरों के रोशनदानों से जब हमारे कानों में पक्षियों का कलरव गूँजने के साथ आँखें खुलती थी तब मन आनंद विभोर हो जाता था। कौआ ,गोरैया, बटेर, मैना की चहचहाहट से घर-आँगन गुलजार हो जाता था और बरबस होठों से मानो कुछ ऐसी पंक्तियाँ निकल पड़ती थीं --
"चीं-चीं करती आती छत पर मन ही मन मुस्काती,
फुदक-फुदक कर पंख हिलाती सुन्दर गीत सुनाती।
शाम-सकारे पंख पसारे जब बाहर से आती,
साथ इकठ्ठे बैठ डाल पर प्रीत की रीत सिखाती।"
विभिन्न तरह के पक्षियों में कबूतर को जहाँ 'शांति का दूत' कहा जाता है वहीं कौओं को 'संदेश वाहक'। पक्षी कीट-पतंगों को अपना आहार बनाकर जहाँ किसानों के मित्र बने रहते हैं वहीं अपने आहार के रुप में विभिन्न फलों को एक स्थान से दूसरे स्थान तक ले जाकर उनके बीजों के माध्यम से दुर्गम स्थानों पर भी वृक्षों के पुष्पित एवं पल्लवित होने में अहम भूमिका अदा करते हैं।आखिर सुदूर पहाड़ी क्षेत्रों, दुर्गम घाटियों में जहाँ मानव का पहुंचना असम्भव था किसने बीजारोपण किया? पक्षी अनेक तरह से हमारे मददगार हैं। कुछ तो हमारे आस-पास की गंदगी को साफ करते हैं जैसे- कौए, चील और गिद्ध। कुछ देशों में आज भी बाज को गुप्तचर के रूप में उपयोग किया जाता है। नीलकंठ पक्षी का दर्शन जहाँ शुभ माना जाता है वहीं मोर के पंख से हमारे अराध्य भगवान कृष्ण अपने मुकुट की शोभा बढ़ाते थे।मोर को उसकी सुन्दरता के कारण भारत का राष्ट्रीय पक्षी होने का गौरव प्राप्त है।
पर आज न उसकी मन मोहती मुस्कान है और न ही अठखेलियाँ करती चहचहाहट। न जाने उसे किसकी नजर लग गई है? कोयल की कूक और बुलबुल की तान सुनने को भी कान तरस गये हैं। घरों के पुराने छप्परों मे गोरैया, मैना का घोसला बनाना, अण्डे देना और पास आने पर फुर्र से उड़ जाना प्रकृति के अनोखेपन का एहसास कराता था।
हमारी महत्वाकांक्षाओं ने इनके पर कतर दिये हैं। बेतरतीब विकास के अंधी दौड़ में उजड़ते जंगल, फसलों को बचाने हेतु कीटनाशकों के उपयोग ने इनके जीवन पर ग्रहण लगाने का काम किया है। रही सही कसर मोबाईल कम्पनियों द्वारा लगाये गये ऊँचे-ऊँचे टावरों ने पूरा कर दिया है।
यदि आने वाली पीढी को इनकी सुरीली आवाजों से अवगत कराना है तो फौरन बचाव के रास्ते तलाशने होगें। तत्काल हमें इनके घोसलों का संरक्षण एवं जीवन यापन के लिए कदम उठाते हुए अपने आस-पास ऐसा माहौल विकसित करना होगा ताकि वे अपने को सुरक्षित महसूस कर सके।
इसके लिए अपने घरों के छतों पर दाने डालना, पानी के बर्तन रखना एवं हो सके तो अपने हिस्से से काटकर रोटी के कुछ टुकड़े डालने का प्रयास भी करना चाहिए। छतों पर कृत्रिम घोसले का निर्माण एवं फलदार वृक्ष लगाया जाए ताकि इनके प्रजनन के अनुकूल वातावरण विकसित हो। अंत में यही कहना चाहता हूँ-
"हमने मन में ठाना है पक्षियों को बचाना है,
उचित माहौल विकसित करके
इनकी दुनिया को बसाना है।"
जैनेन्द्र प्रसाद "रवि"
म.वि.बख्तियारपुर
पटना
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पक्षी भी पर्यावरण का एक महत्वपूर्ण अंग हैं और प्राकृतिक संतुलन को बनाए रखने में उनका योगदान अभूतपूर्व है। हमारी महत्त्वाकांक्षाओं ने उनका काफी नुकसान पहुंचाया है पर अब लोगों में धीरे धीरे जागरूकता आने लगी है। उम्मीद है मनुष्य पक्षियों को अपना दोस्त समझकर उनके प्रति सकारात्मक रुख अपनाएंगे। अच्छी रचना हेतु बधाई एवं शुभकामनाएं....
ReplyDeleteआपके विचार से भी सहमत हूँ, बहुत बहुत आभार
Deleteबहुत ही सुंदर विचार है आपका। पर्यावरण को स्वक्ष एवं स्वस्थ रखने में पक्षियों का योगदान सदियों से रहा है।।मानव के मित्रों को मानवता से सींचा न जाए तो बहुत देर हो जाएगा।।
ReplyDeleteसबका सबसे संबंध बना है
पक्षी मानव का मित्र रहा है।।
Good think, about environment.
ReplyDeleteबहुत-बहुत सुन्दर!
ReplyDeleteविजय सिंह