Monday, 13 April 2020
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पर्यावरण अध्ययन के प्रति जनचेतना की आवश्यकता-रवि रौशन कुमार
पर्यावरण अध्ययन के प्रति जनचेतना की आवश्यकता
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मनुष्य इस समय जिन भौतिक सुख-सुविधाओं और सम्पदाओं का उपभोग कर रहा है, वे सभी विज्ञान एवं तकनीकी ज्ञान के वरदान हैं लेकिन यदि विज्ञान एवं तकनीकी ज्ञान का बुद्धिमत्तापूर्ण उपयोग नहीं किया गया तो इस वरदान को अभिशाप में बदलते देर नहीं लगेगी। ऊर्जा उत्पादनों के संयंत्र, खनन, रासायनिक एवं अन्य उद्योग आज के मनुष्य के कल्याण के लिए अपरिहार्य बन गये हैं लेकिन ये ही चीजें हमारी बहुमूल्य सम्पदाओं, यथा, वन, जल, वायु एवं मृदा आदि को अपूर्णीय क्षति भी पहुँचा सकती है। पर्यावरणीय अवनयन के खतरे नाभकीय दुर्घटनाओं के समकक्ष खतरनाक है लेकिन इस भय से औद्योगीकरण एवं विकास योजनाओं को बन्द नहीं किया जा सकता। इसलिए हम सभी को एक मध्यम मार्ग अपनाने की जरूरत है। इस मध्यम मार्ग का अर्थ है सम्पोषित अथवा निर्वहनीय विकास की नीति को अपनाना। मनुष्य में निर्वहनीय विकास एवं उसकी जीवनशैली को अपनाने की समझ तो सम्यक पर्यावरणीय अध्ययन के प्रति जनचेतना को प्रबुद्ध करने से ही उत्पन्न हो सकती है।
पर्यावरण अध्ययन के प्रति जन चेतना की, जागृति की आवश्यकता पर्यावरण के प्रति लापरवाहियों के दुष्परिणामों से परिचित होने की दृष्टि से भी जरूरी है।यह एक सर्वविदित तथ्य है कि पर्यावरण के प्रति लापरवाही के दुष्परिणामों को भोगने के लिए वर्तमान एवं भावी पीढ़ी लगभग अभिशप्त बन चुकी है। पर्यावरण के प्रति लापरवाहियों के अग्रलिखित दुष्परिणाम हमारे सामने आ चुके हैं- वर्षा में कमी, पेयजल की कमी, मृदा की उपजाऊ शक्ति में ह्रास, पशुओं के चारे की कमी, अन्न एवं सब्जियों की कमी, मरुस्थलों का विस्तार, अकाल, रोग एवं मृत्यु, जैव विविधता में ह्रास, पर्यावरणीय प्रदूषण एवं जलवायु परिवर्तन। इससे स्पष्ट है कि पर्यावरण अध्ययन का महत्व संदेह से परे बन चुका है। निर्वहनीय विकास की आवश्यकता मनुष्य की भावी खुशहाली की आधारशिला है। पर्यावरण ह्रास का मुख्य कारण प्रदूषण, वनों का विनाश, ठोस कचरों के निपटारे, आर्थिक उत्पादकता एवं राष्ट्रीय तथा पर्यावरणीय उष्णता का बढ़ता स्तर, ओजोन परत का क्षय एवं जैव विविधता है जिसके गम्भीर क्षति ने हम सबको पर्यावरण पर मँडराते भयानक संकटों के प्रति सचेत बनाया है। रियो डि जेनेरो का ‘संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण एवं विकास सम्मेलन’ (1992ई0) ने विश्व भर की जनता का ध्यान पर्यावरण की बदलती हालातों की ओर आकर्षित किया है। इससे स्पष्ट है कि संसार का कोई भी समझदार नागरिक पर्यावरण संबंधी प्रश्नों और मुद्दों के प्रति अनजान बना नहीं रह सकता। व्यक्ति में पर्यावरणीय समस्याओं की समझ तभी जागृत हो सकती है जब उसे पर्यावरण की समुचित शिक्षा दी जाय। पर्यावरणीय अध्ययन के प्रति जन चेतना की आवश्यकता यहीं पर स्पष्ट हो जाती है।
वर्तमान में पर्यावरणीय समस्याओं को बहुत महत्व दिया जा रहा है तथा स्वच्छ पर्यावरण की प्राप्ति के प्रयत्न किये जा रहे हैं। सम्पूर्ण विश्व के जनमानस में इस विषय के प्रति जागरूकता में वृद्धि हुई है। पर्यावरण की विभिन्न समस्याओं को समझने एवं इसके सामाधान के लिए सम्पूर्ण विश्व में विभिन्न अन्तर्राष्ट्रीय संगठनों का गठन किया गया है। अमेरिकी सरकार द्वारा सन् 1969 ई. में पर्यावरण मानक परिषद की स्थापना पर्यावरण संरक्षण एवं देश की उत्पादकता बनाए रखने के उद्देश्य से की गई। संयुक्त राष्ट्र संघ की संस्था यूनेस्को द्वारा पर्यावरण संरक्षण एवं संवर्धन के तत्वों को स्कूली शिक्षा पाठ्यक्रमों में सम्मिलित करने हेतु विशेषज्ञ तथा वित्तीय सहायता प्रदान करता है। दक्षिण एशियाई सहकारी पर्यावरण कार्यक्रम के द्वारा सार्क के सदस्य देशों द्वारा एक दूसरे के सहयोग से पर्यावरण संरक्षण के विभिन्न उपायों को कार्यरत करने में सहयोग देते हैं। डब्ल्यू. डब्ल्यू. एफ. भी विश्व में प्राणी एवं पादप के संरक्षण के दिशा में अहम भूमिका निभा रहा है। इसके अलावा भी कई विश्वस्तरीय संस्थाएँ हैं जो पर्यावरण संरक्षण एवं पर्यावरण अध्ययन के प्रति जनचेतना को बढ़ावा देने के लिए प्रयास कर रहे हैं।
आशा है कि विश्व भर में इस प्रकार के और भी कई कार्यक्रम आरंभ किये जाएँगे। भारत सरकार ने भी पर्यावरण की महत्ता को ध्यान में रखते हुए अलग से वन एवं पर्यावरण मंत्रालय का ही गठन कर दिया है। इसके अलावे राष्ट्रीय हरित न्याधिकरण, इको क्लब, नेशनल ग्रीन कोर जैसे संस्थाओं के द्वारा समाज में पर्यावरण के प्रति लोगों में जागरूकता फैलाने का प्रयास किया जा रहा है। समय-समय पर वन एवं पर्यावरण मंत्रालय द्वारा कई कार्यक्रम आजित किये जाते हैं जिसमें शिविर, व्याख्यान, कार्यशाला, चित्र व फोटोग्राफी, सामान्य ज्ञान, निबंध, वाद-विवाद प्रतियोगिताएँ इत्यादि प्रमुख हैं।
इसके अलावे पर्यावरण के प्रति हमें खुद के स्तर पर भी जागरूक होना होगा क्योंकि अंतर्राष्ट्रीय व देश के स्तर पर चलाये जा रहे कार्यक्रम हमारी भागीदारी के बिना सफल नहीं हो सकते हैं। अतः हमें शुरूआत अपने परिवार, अपने गाँव व मुहल्ले से करनी होगी तभी हम पुनः प्रकृति के अनमोल धरोहरों को सहेजने में सफल हो पाएँगे।
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रवि रौशन कुमार
प्रखण्ड शिक्षक
राजकीय उत्क्रमित माध्यमिक विद्यालय, माधोपट्टी, केवटी, दरभंगा
मोबाईल नं0- 9708689580
ईमेल :- info.raviraushan@gmail.com
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मेरे विचार को इस प्रतिष्ठित मंच पर प्रकाशित करने के लिए पूरी टीम को हृदय से धन्यवाद।
ReplyDeleteउपयोगी एवं तथ्यपरक आलेख... बहुत बहुत बधाई एवं शुभकामनाएं...
ReplyDeleteबहुत अच्छी जानकारी। बधाई
ReplyDeleteवर्तमान समयानुकूल सटीक व सराहनीय आलेख।सच में पर्यावरण के प्रति लापरवाही बरतने से हम खतरे में पड़ सकते हैं। पर्यावरण को हम बनाएँ सरसमय, तभी जीवन बनेगा सुखमय।।
ReplyDeleteबहुत-बहुत सुन्दर
ReplyDeleteविजय सिंह