Sunday, 26 April 2020
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छोटी मुँह बड़ी बात--जैनेन्द्र प्रसाद "रवि'
छोटी मुँह बड़ी बात
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चेतना सत्र प्रतिदिन की भाँति आज भी प्रार्थना, राष्ट्र गान, समाचार वाचन, प्रेरक प्रसंग, आज का सुविचार एवं गाँधी कथा से बढ़ते हुए अंतिम दौर में था।कुछेक शिक्षक एवं शिक्षिकाओं को छोडकर बाकी लोग अपने कक्ष मे जा चुके थे। इसी बीच छात्रों की पंक्ति से अमर अचानक बाहर निकला और माईक पर बोलने लगा। बहुत खेद के साथ कहना पड़ रहा है कि चेतना सत्र समाप्त होने से पहले ही हमारे अधिकांश शिक्षकगण हमें छोड़कर आराम करने कमरे में चले जाते हैं। इसे देखकर छात्रों के बीच हलचल शुरू हो जाती है जिससे हमारा ध्यान भंग होता है। मैं प्रधानाचार्य महोदय का ध्यान इस मुद्दे पर आकर्षित करना चाहता हूँ। वह बाल संसद का सदस्य था और हर विद्यालयी समस्याओं पर सजग एवं मुखर रहता था। इससे पहले भी बाल संसद की बैठक में कई बार इस मुद्दे पर चर्चा के पश्चात प्रधानाचार्य महोदय के संज्ञान में दिया गया था।
चेतना सत्र समाप्ति के पश्चात बच्चे वर्ग में जाने लगे। इसी बीच एक शिक्षिका ने अमर को बुलाकर बहुत भला-बुरा कहते हुए डाँटा। कुछ देर के बाद वह उदास होकर वहाँ से निकलाऔर लोग कुछ समझ पाते उससे पहले ही अपनी किताबें ले तेजी से विद्यालय के बाहर निकल गया। उसके दोस्तों से पूछने पर पता चला कि चेतना-सत्र में सार्वजनिक रूप से बोलने पर मैडम ने डाँट पिलाई है। मैंने तत्क्षण उसके कुछ साथियों को उसके पीछे उसे बुलाने को भेजा परन्तु वह आत्म सम्मान पर चोट को बर्दाश्त नहीं कर सका और घर लौट गया। मध्याह्न भोजन की समाप्ति के पश्चात सभी शिक्षकों की उपस्थिति में मैंने इस मसले को उठाया। मैंने कहा कि जिस बात का ज्ञान हमें स्वयं होना चाहिए उसका ध्यान बच्चे दिलाते हैं जो हमारी शान के खिलाफ है। प्रार्थना सत्र के दौरान जब बच्चे आपस में बातचीत करते हैं तो हम उन्हें टोकते हैं, उसकी अनुशासन हीनता पर दण्डित करते हैं, उससे आज्ञा पालन की अपेक्षा रखते हैं लेकिन यदि हमारे फर्ज की याद हमें बच्चे दिलाते हैं तो हमारे सम्मान को ठेस लगती है? बच्चे, विद्यालय के अनुशासन का पालन बखूबी करते हैं, हमें आदर करते हैं, चरण रज लेते हैं। वे हमारे हर आदेश का पालन तत्परता के साथ करते हैं। क्या हमलोग भी अपना फर्ज ईमानदारी पूर्वक निभा पाते हैं? देर से वर्ग में जाना, समय से पहले ही वर्ग छोड़ना, वर्ग संचालन के समय ही निजी कार्य निपटाना तथा आवश्यक कार्य का बहाना बनाकर बिना अवकाश लिए ही विद्यालय छोड़ देना और सबसे बढ़कर आपसी सहमति से विद्यालय से अनुपस्थित रहकर भी अगले दिन उपस्थिति बना लेना कहाँ तक न्याय संगत एवं उचित है? जिसके बल पर हमारे अपने बच्चे महँगे निजी विद्यालयों में पढ़ते हैं उसके साथ भी न्याय करना होगा। बच्चे कल के भविष्य हैं। इनकी जिम्मेदारी हमारे कंधों पर है। भविष्य हमें माफ नहीं करेगा, क्योंकि यदि भ्रष्ट अभियंता, नेता हो तो भवन व्यवस्था चरमरा जाती है। इसी तरह यदि शिक्षक भी जड़ता अपनाएँगे तो देश रसातल मे चला जाएगा।
साथियों हम बच्चों से सम्मान की अपेक्षा रखते हैं तो हमें भी अपने गिरेबान मे झाँकना होगा वरना बच्चे सबकुछ देखते और समझते हैं। हमें आत्ममंथन करना चाहिए।अंत में अगर मेरी बातों से किन्हीं की भावना को ठेस पहुँची हो तो माफी चाहूँगा। प्रधानाचार्य महोदय ने भी हमारी बातों का मूक अनुमोदन किया। तत्पशचात शिक्षकों के बीच गुफ्तगू होने लगी। कुछ देर के बाद उक्त शिक्षिका ने अपने कृत्य पर अफसोश जताया और आगे से उक्त बातों का ख्याल रखने की हामी भरी।
दूसरे दिन चेतना सत्र में अमर को आगे बुलाकर आगे से हमलोगों ने अपने कर्तव्य पालन का भरोसा दिलाया और उसके साथ हुए बर्ताव के लिए अफशोश जताया। उसकी आँखों में चमक थी और डबडबाई आँखों से उसने माफी के रूप में अपना हाथ जोड़ लिया।
जैनेन्द्र प्रसाद "रवि''
म.वि.बख्तियारपुर
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आज सर्वाधिक शिक्षकों को आत्ममंथन करने की आवश्यकता है।क्योंकि जिस दिन देश के शिक्षकों को सही अर्थों में अपने कर्तव्यों का भान हो जाएगा उस दिन देश की दशा और दिशा दोनों बदल जाएगी।शिक्षकों को दर्पण दिखाने का सुंदर प्रयास है।साधुवाद।
ReplyDeleteबहुत खूब
ReplyDeleteयह आज की सच्चाई है!
ReplyDeleteअनुकरणीय!
ReplyDeleteविजय सिंह
बिल्कुल
ReplyDeleteआलेख आत्मचिंतन की प्रेरणा प्रदान करता है। पता नहीं हममें कब सुधार होगा।
ReplyDeleteसच में,इस आलेख में वर्तमान की सच्चाई को उजागर किया गया है।बच्चे जो देखते हैं वो दीर्घकाल तक उनके स्मरण में बनी रहती है। अतः हम शिक्षकों को जड़ता नहीं बुद्धिमत्ता अपनाते हुए सही न्याय करना चाहिए।
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