Monday, 27 April 2020
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तभी एक फ़ोन आया-राकेश कुमार
📞☎ "तभी एक फ़ोन आया" 📞☎
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हालात भी कभी-कभी अजीब हो जाते हैं। उलझन ऐसी कि सुलझने का रास्ता हीं न दिखे। माह फरवरी इंटर और मैट्रिक परीक्षाओं का दौर शुरू ।विद्यालय में सर जी की संख्या में भारी गिरावट लेकिन जाते-जाते सर जी की गुरु वाणी- देखो बच्चों हमलोग तुम्हारे बड़े भाई-बहनों की परीक्षा लेने हेतु जा रहें है लेकिन तुमलोगों को एक बहुत बड़ी "जिम्मेवारी" देकर जा रहें हैं। मन में एक अजीब जिज्ञासा "जिम्मेवारी" हमलोगों को !
फिर सर जी- देखो बच्चों बड़े-बड़े महापुरुषों ने कहा है कि प्रतिकूल परिस्थितियों में भी जो बेहतर कार्य करता है वही आगे चलकर महान बनता है । अभी विद्यालय में शिक्षकों की संख्या कम रहेगी इसलिए विद्यालय संचालन में दिक्कत हो सकती है इसलिए तुम सबों का दायित्व है कि विद्यालय संचालन में अपना भरपूर सहयोग प्रदान करो क्योंकि अगले माह तुमलोगों की भी वार्षिक परीक्षा है इसलिए पढ़ाई पर ध्यान देना है।
सर जी - सभी बच्चों ने मेरी बातों को ध्यानपूर्वक सुन लिए हो न ! सभी बच्चे बोले-जी सर
मेरी कही बातों का पालन करोगे न सभी बच्चों ने एक साथ कहा यस सर।
सर जी चले गए हमलोग भी अपने छात्र होने के दायित्व के साथ आगे बढ़ रहे थे। फरवरी माह भी गुजर गया।
मार्च महीना आ गया सब सर जी लोग भी आ गए ।विद्यालय फाल्गुन महीना के रंगों से सराबोर होने को आतुर था। हमलोगों को अपनी वार्षिक परीक्षा का इंतजार और नई क्लास में जाने की उत्सुकता थी।
एक दिन अचानक सर लोग आपस में चर्चा कर रहे थे - उस चर्चा में एक शब्द "कोरोना" मुझे नई लगी। मैं वापस अपनी कक्षा में चला गया।
होली छुट्टी के पूर्व वर्ग मे सर के द्वारा "कोरोना" पर चर्चा की गई। चर्चा के दौरान ये बात उभरकर आई कि ये एक वैश्विक बीमारी है और हमलोगों को भी इसके प्रति सावधानी बरतने की जरूरत है। कोरोना से बचाव के संदेश के साथ विद्यालय मे होली की छुट्टी हो गई।
रास्ते में घर जाते समय हमलोग ये बात करते जा रहे थे कि छोड़ो "कोरोना" को हमलोग होली जमकर खेलेंगे।
होली के बाद जब स्कूल खुला तो समझ में हीं नहीं आ रहा था कि स्कूल खुला है या बंद! सिर्फ कोरोना हीं कोरोना सुनाई दे रहा था। मेरा बालमन भयभीत हो रहा था। सर लोगों के द्वारा केवल कोरोना से बचाव के उपाय हीं बताए जाते। फिर एक दिन विद्यालय अचानक बंद हो जाता है। टीवी और अखबार से पता चलता है कि कोरोना के कारण पूरे देश में "लॉकडाउन" है जिसके कारण विद्यालय बन्द हो गया है और "घर मे रहें तथा सुरक्षित रहें " ये संदेश दिया गया।
सर से फ़ोन करने पर पता चला कि विद्यालय खुलने हेतु प्रतिदिन अखबार देखते रहना लेकिन फिलहाल तो 14 अप्रैल तक सब-कुछ पूरी तरह से बंद है।
कुछ दिनों के उपरांत पता चला कि बिना परीक्षा के हीं हमलोग अगली कक्षा में चले गए। अगली कक्षा में जाने की खुशी तो थी लेकिन मन में उत्साह की अनुभूति नहीं हो पा रही थी। मनोरंजन हेतु मोबाइल और टीवी हीं सहारा था। सर ने कक्षा के दौरान बताया था कि मोबाइल का इस्तेमाल केवल मनोरंजन हेतु हीं इस्तेमाल मत करो इसको अपने पढ़ाई से भी जोड़ो। फ़ेसबुक पर जाओ , और "टीचर्स ऑफ बिहार" सर्च करो और देखो उसमें कितनी सारी शैक्षणिक गतिविधियाँ होती है लेकिन तुमलोगों को तो केवल मोबाईल मनोरंजन का ही साधन लगता है।
वक़्त बीत रहा था। "कोरोना" पूरी तरह से पूरी दुनियाँ मे छा चुका था। हमलोग भी अपने-अपने घर में ही रहते थे, पढ़ाई पूरी तरह ठप था, समझ में हीं नहीं आ रहा था कि पढ़ाई की शुरुआत कैसे करूँ? सत्र की शुरुआत भी हो चुकी थी लेकिन हमलोगों की शैक्षणिक गतिविधि पूरी तरह "कोरोना" पर निर्भर था।
वक्त बीत रहा था। मैं एक दिन अपने घर के दरवाजे पर बैठा मोबाईल चला रहा था और आज के दौर का प्रचलित गीत- "एक वायरस" ने दुनियाअँ हिला दी जिसका नाम "कोरोना" सुन रहा था कि अचानक मोबाईल की घंटी बजी। देखा तो सर जी का फोन, मन में हड़बड़ाहट और उत्सुकता दोनों साथ - साथ सक्रिय हो गए। सर की बात भी याद आ रही थी कि कठिन से कठिन हालात में काम करना हीं प्रगति का मार्ग प्रशस्त करता है"। सर जी पढ़ाई के बारे मे पुछेंगे तो क्या बताऊँगा!
हिम्मत करके मैंने फ़ोन उठाया और बोला- प्रणाम सर! उधर से सर बोले कैसे हो हर्षित पढ़ाई चल रही है? मैंने भी बोला जी सर चल रही है। मेरे बोलने के शैली से सर जी को हमारी परेशानी का आभास हो चुका था। उन्होंने कहा कि चलो कोई बात नहीं कल से पढ़ाई की तैयारी शुरू कर दो!
सर जी की बात से मैं प्रफुल्लित हो उठा और बोल पड़ा सर कल से स्कूल खुल रहा है! सर जी बोले हाँ कल से स्कूल खुल रहा है और मैं तुम्हें एक जिम्मेवारी भी दूँगा। मेरा मन सोचने लगा फिर जिम्मेवारी क्योंकि सर जी के अनुसार जिम्मेवारी कठिन हालातों से हमें सिखाता है। फिर भी मैंने कहा जी सर, और पूछा कि सर स्कूल कितने बजे से आना है ? सर बोले स्कूल आने की कोई जरूरत नहीं स्कूल घर पर हीं चलेगा। मैं कुछ समझ हीं नहीं पा रहा था और फिर पूछा सर स्कूल और घर से वो कैसे ?
सर जी फिर बोले- तुमने ठीक सुना स्कूल घर से और वो भी तुम्हारे मोबाइल पर! मेरे आश्चर्य की सीमा बढ़ती ही जा रही थी। फिर मैं पूछ बैठा मोबाइल पर स्कूल! वो कैसे?
सर जी बोले- तुमलोगों से मैं क्लास में फेसबुक पर "टीचर्स ऑफ बिहार" के बारे में हमेशा बताता था न वही "टीचर्स ऑफ बिहार" तुमलोगों के लिए कल से "सोम" अर्थात "स्कूल ऑन मोबाईल" कार्यक्रम लेकर आ रहा है जिसका समय सुबह 10:30 बजे से 2:00 बजे तक है। इसमें सभी विषय जैसे हिंदी, गणित, अंग्रेजी, विज्ञान औऱ गणित की पढ़ाई होगी। इसकी समय सारणी तुम्हारे व्हाट्सएप पर भेज दूँगा, तुम्हारा काम होगा अधिक से अधिक बच्चों को इसकी जानकारी देना और ये भी ध्यान रखना है कि कोरोना से बचने हेतु जो उपाय बताए गए हैं उनका भी पालन करना है।
मैंने कहा- जी सर लेकिन मेरा ध्यान तो कल से शुरू हो रही "सोम" पर थी। मेरे बालमुख से एक हीं बात निकल रही थी धन्यवाद "टीचर्स ऑफ बिहार" धन्यवाद "टीचर्स ऑफ बिहार"। 🌹🌹💐💐🙏🙏🙏
राकेश कुमार
मध्य विद्यालय बलुआ
मनेर (पटना)
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Wah! ToB has been doing the greatest job in Bihar.
ReplyDeleteबहुत सुन्दर आलेख है। इसमें बालमन की कौतूहल, आश्चर्य कभी असमंजस।अंत में जिज्ञासा सोम(SOM) से पूरी होती है।
ReplyDeleteसुंदर आलेख।
ReplyDeleteवाल मन की जिज्ञासा को हवा देने वाला सारगर्भित आलेख।
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