भयमुक्त वातावरण का निर्माण
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सीखने और सिखाने की क्रिया भय मुक्त होनी चाहिए क्योंकि जब तक मेरे अंदर का भय (सीखने और सिखाने मेें) समाप्त नहीं होगा तब तक हम न तो सीख पाएँगे और न ही सिखा पाएँगे। यहाँ पर मैं यह स्पष्ट कर देना चाहूँगा कि भय से मेरा तात्पर्य अपने
अंदर की झिझक है न कि डर क्योंकि भय का अर्थ अगर हम डर से लगा लेंगे तो
अनुशासन पर इसका बुरा प्रभाव पड़ेगा और सीखने-सिखाने की क्रिया पीछे छूट जाएगी फिर बच्चे टूट कर बिखर जाएँगे। इसलिए हमें अपने अंदर के
झिझक को तोड़ना होगा। मैं इस संदर्भ में अपना एक अनुभव आप सबों के बीच में रखना चाहूँगा। मैं अपने विद्यालय में इस भय को निकालने हेतु अपना ध्यान छात्रों और शिक्षकों के ऊपर केंद्रित किया। मैं प्रतिदिन चेतना सत्र में बच्चों को संबोधन में कहा करता था कि आप अपने अंदर के भय को दूर भगाएँ, अपने झिझक को तोड़ें तभी आप सफल होंगे नहीं तो आप सफलता की ऊँचाइयों को नहीं छू पाएँगे। यह प्रयास निरंतर चलता रहा और एक दिन वह समय आ गया जब मेरे विद्यालय में एक सहायक शिक्षिका के द्वारा चेतना सत्र में घोषणा की गई कि मैं आज आप सबों के बीच
हारमोनियम पर राष्ट्रगान का प्रस्तुति करूँगी। इससे पहले उस शिक्षिका ने कभी भी राष्ट्रगान को बच्चों के बीच हारमोनियम पर गाने के लिए कोई सफल प्रयास नहीं की थी लेकिन उन्होंने अपने उद्घोषणा में कही कि इसके लिए हमारे प्रधानाध्यापक प्रेरणा के स्रोत हैं जो आज मैं अपने अंदर के भय को समाप्त कर आपसबों के बीच हारमोनियम पर राष्ट्रगान की प्रस्तुति कर पा रही हूँ। बच्चे काफी खुश थे क्योंकि यह कार्य निजी विद्यालय से टक्कर लेने के लिए तैयार हो रहा था। ऐसा होने से विद्यालय के चेतना सत्र का स्वरूप ही बदल गया। फिर विद्यालय के वैसे छात्र जो पढ़ने में तो साधारण थे लेकिन विद्यालय के किसी भी कार्यक्रम में अपनी भागीदारी सुनिश्चित नहीं किया करते थे ने तो हमें मंत्रमुग्ध ही कर दिया। जब 26 जनवरी को बच्चों ने अपनी प्रस्तुति दी तो वे सभी बधाई के पात्र बने। मुझे अपने विद्यालय में इस प्रकार के वातावरण के निर्माण पर
खुशी के आँसू निकल पड़े।
संजय कुमार प्रधानाध्यापक
मध्य विद्यालय शिवगंज, डेहरी
भयमुक्त वातावरण अधिगम के लिए एक अनिवार्य शर्त है। भयमुक्त वातावरण में ही बच्चों को उनकी रूचि के अनुसार अधिगम को प्रभावी बनाया जा सकता है। अच्छे लेख के लिए बहुत-बहुत बधाई एवं शुभकामनाएं...
ReplyDeleteप्रयोगात्मक आलेख
ReplyDeleteसंजय भाई बहुत बहुत शुभाशीष,
ReplyDeleteइस लेख हेतु प्यार भरा वक्शीष।
बहुत-बहुत सुन्दर आलेख!
ReplyDeleteविजय सिंह
बिल्कुल सही।संकोच और झिझक के कारण बहुत से नेक कार्य रास्ते में ही दम तोड़ देते हैं।। सकारात्मक ऊर्जा का संचरण करते रहना आपके आलेख को उम्दा बनाता है।।
ReplyDeleteक्रियात्मक आलेख,बहुत सुंदर।
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