परिवर्तन--अपराजिता कुमारी - Teachers of Bihar

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Friday, 3 April 2020

परिवर्तन--अपराजिता कुमारी

परिवर्तन
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          परिवर्तन प्रकृति का नियम है। हम चाहे या न चाहे इसे होना ही है, इसे स्वीकार करने या न करने का कोई विकल्प ही नहीं होता। परिवर्तन चाहे प्राकृतिक हो, शारीरिक व मानसिक हो या वैचारिक यह निरंतर होता रहता है। 
          जॉर्ज बर्नार्ड शॉ परिवर्तन को प्रगति मानते हैं। वह कहते हैं- परिवर्तन के बिना प्रगति असम्भव है और जो अपने विचारों को नहीं बदल सकते वह किसी चीज को नहीं बदल सकते। दो ऐसी स्थिती है जिसमें निरंतर परिवर्तन होते रहते हैं, वे हैं- प्रकृति एवं मन। मन में परिवर्तन मन के अनुकूल होता है या प्रतिकूल। परिवर्तन प्रगति से जुड़ा है जहाँ प्रगति है वहाँ जीवंतता है। आज के संदर्भ में जहाँ कोरोना वायरस वैश्विक आपदा का रूप ले चुका है वैसे में लॉकडाउन के अंतर्गत देश की सारी व्यवस्था ठप हो चुकी है। ऐसी स्थिति में बिहार के सरकारी विद्यालय के बच्चों का समय कैसे गुजरता होगा? शहरी क्षेत्रों के बच्चे एवं बच्चों के अभिभावक खासे तत्पर रहते हैैं, शिक्षा के प्रति एवं सीखने-सिखाने के प्रति मगर ग्रामीण परिवेश का क्या?
          परिवर्तन एवं प्रगति के अंतर्गत बच्चों  को सीखने-सिखाने एवं पढ़ाने के तौर-तरीके बदल रहे हैं? उनपर किताबों का बोझ जरूर बढ़ रहा है पर उसे कम करने की कोशिशें भी हो रही है। इंटरनेट इंफॉर्मेशन टेक्नोलॉजी के माध्यम से एवं ऑनलाइन स्टडी की उपलब्धता विभिन्न एप के द्वारा बच्चों को घर बैठे शिक्षा उपलब्ध करवाई जा रही है जिससे बच्चे आज के दौर की कड़ी प्रतिस्पर्धा में पीछे न रह जाए। कुछ अपवाद को छोड़कर शिक्षकों का बच्चों के प्रति व्यवहार भी पहले की अपेक्षा दोस्ताना हो गया है परन्तु ग्रामीण परिवेश के बच्चे जो पूर्णतः विद्यालय पर निर्भर है या स्थानीय कोचिंग संस्थानों पर तथा अभी नए-सत्र की शुरुआत का भी समय है ऐसे में लॉकडाउन का असर बच्चों के शैक्षणिक व्यवस्था पर सबसे अधिक पड़ रहा है। पुनः समस्या फिर वहीं की वहीं है। ग्रामीण परिवेश की शिक्षा व्यवस्था आधुनिक, उन्नत व उत्कृष्ट न के बराबर है। प्रयास जारी है, आईसीटी का उपयोग स्मार्ट क्लास के संचालन केे लिए हो चुकी है पर बहुत सीमित। कुछ प्रदेशों को छोड़कर पूरे देश में सरकारी विद्यालयों की स्थिति हम क्यों नहीं ढूंढ पा रहे हैं?
          क्यों नहीं इस व्यवस्था में परिवर्तन कर पा रहे हैं? क्यों नहीं परिवर्तन के आधार पर प्रगति कर पा रहे हैं? 
क्या ग्रामीण परिवेश के अभिभावकों की शिक्षा के प्रति उदासीनता है? क्या कुछ शिक्षकों की लापरवाही है? 
क्या सरकारी तंत्र की विफलता जिम्मेवार है? 
कब तक हम सिर्फ प्रयास करते रहेंगे? 
हम विकास क्यों नहीं कर पा रहे हैं? 
ऐसे अनेकों ज्वलंत सवाल हमारे सामने उठ खड़े होते हैं। बिना परिवर्तन इन सवालों के जबाव शायद ही हमें मिल पाए।


अपराजिता कुमारी
राजकीय उत्क्रमित मध्य विद्यालय जिगना जगन्नाथ 
हथुआ, गोपालगंज

18 comments:

  1. ध्यान देने योग्य!
    विजय सिंह

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  2. निस्संदेह परिवर्तन संसार का नियम है और हमें प्रकृति के बनाए नियमों का पालन करना चाहिए। पर्यावरण हितैषी जीवन शैली को अपनाकर ही हम अनंत काल तक जीवन का आनंद ले सकते हैं। समसामयिक विषय पर उपयोगी लेख के लिए बहुत-बहुत बधाई एवं शुभकामनाएं....

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  3. अच्छी व प्रेरक रचना।

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  4. अच्छी जानकारी। बधाई

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  5. बहुत ही विचारोत्तेजक एवं ज्ञान वर्धक आलेख हेतु साधुवाद,।
    प्रगति पथ पर हमेशा बढ़ते रहें,
    इतिहास नया जीवन मे गढ़ते रहेंं।

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  7. बहुत ही सार्थक प्रश्न है। बहुत बहुत बधाई। हमलोग भी अभिभावकों के मोबाइल नंबर से एक व्हाट्स ऐप ग्रुप बनाकर उसपर ऑन लाईन एडुकेशन देकर सकारात्मक परिणाम की ओर बढ़ सकते हैं।।

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  8. Aalekh to sahi hai madam parantugramin chhetra ke abhibhawak jab tak jagruk nahi hongetab tak bachha protshahan rashi or m.d.m me ulajh kar rah jayega isme teacher kya karenge unka koi dosh nahi prayah sabhi mehnat to karte hi hain

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  10. अति विचारणीय प्रश्न है।इसपर सोचने की जरूरत है।

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  11. अच्छी जानकारी के लिये धन्यबाद ।

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  12. Bahot Achha di 😊😊👍👍

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  13. परिवर्तन संसार का नियम है। बहुत अच्छा।

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  14. बहुत ही सुन्दर और ज्वलंत मुद्दे की बात है,।

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