Wednesday, 8 April 2020
New
अद्भुत सोच--विजय सिंह
अद्भुत सोच (संस्मरण)
---------------------
एक दिन मैंने छठी कक्षा से आठवीं कक्षा के हर एक छात्र-छात्रा से पूछा कि बड़े होकर तुम क्या बनना चाहोगे? सभी ने कुछ न कुछ जवाब दिया। किसी ने डॉक्टर तो किसी ने इंजीनियर बनने की बात कही।अलग-अलग बच्चों ने पुलिस, दारोगा, एसपी, इंस्पेक्टर, वकील, शिक्षक, व्यापारी, दुकानदार, किसान, प्रोफेसर, बीडिओ, मुखिया, सरपंच, प्रमुख, चालक, पायलाॅॅॅट, कम्पाउण्डर, नर्स इत्यादि बनने की बात कही लेकिन एक लड़का था जिसका जवाब सुनकर मेरे साथ-साथ सभी बच्चे अचंभित हो गए क्योंकि जैसे उससे उसकी इच्छा पूछी गई तो उसने कहा कि मैं गुण्डा बनूँगा।
फिर मैंने सभी बच्चों को अलग-अलग पेशा वाले लोगों की भरपूर जानकारी दी। सब के अलग-अलग कार्य बताए। उनकी आमदनी बताई। काम के घंटे, सरकारी है या गैर सरकारी, किसमें कितनी स्वतंत्रता है, कैसे-कैसे कार्य करने होंगे और हमेशा अनुशासन में रहते हुए अपने कार्यों के प्रति समर्पण की भावना के महत्व को भी समझाया। सभी बच्चे काफी उत्सुकता से मेरी बातें सुन रहे थे। कोई काम न तो छोटा होता है और न ही बड़ा इसकी भी जानकारी दी गई।
अधिकांश बच्चियाँ मैडम बनना चाहती थी लेकिन मैडम क्या होता है उनकी जानकारी बहुत कम थी जिसकी भरपूर जानकारी दी गई। ऐसा कहा गया कि हर प्रकार के कार्य करने वाले शादी-शुदा महिला मैडम होती है चाहे वह नौकरी करे या घर का काम ही क्यों न करती हो।
अंत में उस बच्चे को फिर पूछा कि बेटा तुमने क्या बताया था कि तुम क्या बनना चाहते हो तो उसने फिर वही शब्द कहा कि मैं गुण्डा बनना चाहता हूँ। अब उसे आगे वाली बेंच पर बैठाया और उसके घर के सदस्यों के बारे में बात की। जब पिताजी के बारे में पूछा तो उसने कहा कि दिल्ली कमाने गए हैं और यह भी बताया कि अनपढ़ भी हैं। फिर मैंने उसके पिता के बारे में बताया कि तुम्हारी सुख-सुविधाओं की पूर्ति के लिए पिताजी दिल्ली गए हैं, क्या तुम्हें मालूम है कि शायद वे दोनों वक्त का भोजन भरपेट नहीं खा पाते होंगे। जिस कारखाने में काम करते होंगे वहीं सो जाते होंगे। ठंडी-गर्मी की परवाह किए बिना वे दिन-रात काम में लगे रहते होंगे कि मैं अपने बच्चों को भोजन, कपड़ा, पढ़ाई की सामग्री इत्यादि दे सकूँ जो बड़ा होकर एक अच्छा इंसान बनेगा और तुम कहते हो कि गुण्डा बनेंगे।
गुण्डा क्या होता है जब इसके बारे में पूछा तो वह चुप हो गया। फिर मैंने एक गुण्डे के जीवन के बारे में बताया कि किस तरह एक गुण्डा हमेशा दूसरों को दुःख पहुँचाने के साथ-साथ अपने सगे-संबंधियों को भी अंदर ही अंदर रोने को मजबूर कर देता है। उसके पीछे सभी उसकी बुराई करते हैं। पूलिस उसके पीछे पड़ी रहती है। न दिन में चैन और न ही रातों की नींद उसे नसीब होती है। हमेशा परेशान रहता है। न भर-पेट खाता है और न ही सुकून का जीवन बिताता है। घर- दरवाजा भी उसे छोड़ना पड़ता है और जंगल, पेड़-पौधों, झाड़ियों में छिपकर रहना पड़ता है जहाँ जंगली जानवरों का डर सताते रहता है। जब पुलिस पकड़ कर जेल में बंद कर देती है तो वहाँ एक छोटे से कमरे में रहना पड़ता है। मच्छर का दंश झेलना पड़ता है। आधा पेट खाने को मिलता है। थोड़ी सी गलती करने पर पिटाई होती रहती है। यदि पुलिस से छिपकर बच भी जाता है तो किसी अन्य गुण्डे के द्वारा गोली खाकर असमय मृत्यु को प्राप्त करता है।
इतनी बातें सुनने के बाद वह लड़का अपनी आँखों में पश्चाताप का आँसू लिए खड़ा हुआ और बोला सर जी मैं भी अन्य बच्चों की तरह ही कोई कार्य करना चाहूँगा और वह कार्य किसान का होगा क्योंकि पिताजी के बाहर रहने से माँ ही खेती का काम करती है जो बड़ा होने पर मैं ही अपना लूँगा। ऐसा सुनकर मेरे अंदर एक अजीब संतोष का अनुभव हो रहा था।
विजय सिंह
मड़वा बिहपुर भागलपुर
मध्य विद्यालय मोती टोला
सदस्य टीओबी टीम
About ToB Team(Vijay)
Teachers of Bihar is a vibrant platform for all who has real concern for quality education. It intends to provide ample scope and opportunity to each and every concern, not only to explore the educational initiative, interventions and innovations but also to contribute with confidence and compliment. It is an initiative to bring together the students, teachers, teacher educators, educational administrators and planners, educationist under one domain for wide range of interactive discourse, discussion, idea generation, easy sharing and effective implementation of good practices and policies with smooth access.
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
बहुत सुन्दर सर।हम शिक्षक बच्चों के मन पर काम करते हैं।सिर्फ कितबी रट्टा लग्वना हमारा काम नही है ।हमें बच्चों को उसके जीवन में सही रास्ता दिखाना है।एक सच्चा नागरिक तैयार करना है ताकि देश और समाज गलत दिशा में न जाए।
ReplyDeleteबहुत-बहुत धन्यवाद मित्र
Deleteविजय सिंह
सिर्फ एक शिक्षक ही बच्चों के मन के अनुरूप उसे सही एवं गलत में अंतर करना सिखा सकते हैं गीली मिट्टी कौन सा रूप लेगी यह हमारी शिक्षा पर ही निर्भर करता है बहुत ही मार्मिक अनुभव
ReplyDeleteबहुत-बहुत धन्यवाद मित्र
Deleteविजय सिंह
बच्चे तो कच्ची मिट्टी के लौंदे होते हैं हम शिक्षक उसे जैसा चाहें वैसा बना सकते हैं। पर इसके लिए शिक्षक में समर्पण का भाव होना बहुत जरूरी है। तभी वह अपने उद्देश्य में सफल हो सकता है। अच्छे संस्मरण के लिए बहुत-बहुत बधाई एवं शुभकामनाएं......
ReplyDeleteबहुत-बहुत धन्यवाद मित्र!
Deleteविजय सिंह
प्रेरणादायक और मार्गदर्शन भरा अनुभूति।
ReplyDeleteबहुत-बहुत धन्यवाद मित्र!
Deleteविजय सिंह
क्या कहूँ, कैसे कहूंँ सर बड़ा ही मार्मिक अनुभव आपने इस संस्मरण के माध्यम से रखा है। बहुत-बहुत धन्यवाद सर!
ReplyDeleteबहुत-बहुत धन्यवाद मित्र!
ReplyDeleteविजय सिंह