Thursday, 23 April 2020
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साक्षर और शिक्षित में अंतर-निधि चौधरी
साक्षर और शिक्षित में अंतर
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कदाचित साक्षर की परिभाषा दी जा सकती है, परंतु शिक्षित की परिभाषा देना कठिन है। डिग्रियाँ प्राप्त पढ़े लिखे कहलाने वाले युवक जिनका न मानसिक विकास होता है न ही नैतिक और सामाजिक। ये विद्यार्थी कुछ ज्ञान को रट कर परीक्षा के उत्तरपुस्तिकाओं में उगल तो देते हैं लेकिन इससे ज्ञान प्राप्त नहीं होता। ऐसे विद्यार्थियों के विषय ज्ञान के बारे में हम कह सकते हैं कि उन्होंने साक्षरता तो प्राप्त कर ली परन्तु ज्ञान से वंचित रह गए और शिक्षित नहीं हो पाए।
अनाटोले (फ्रांस) ने भी कहा है :-
शिक्षा का ये मतलब नहीं है कि आपने कितना कुछ याद किया हुआ है या ये कि आप कितना जानते हैं, इसका मतलब है आप जो जानते हैं और जो नहीं जानते हैं उसमे अंतर कर पाते हैं कि नहीं।
शिक्षा एक विस्तृत शब्द है जिसके दायरे को सीमित करना असंभव है। इसमें मानव जाति के सभी पहलू मानसिक, सामाजिक, आर्थिक, नैतिक इत्यादि आतें हैं। शिक्षा एक गतिशील प्रक्रिया है। शिक्षा मनुष्य के साथ माँ के गर्भ से आजीवन चलती रहती है, विद्यार्थी जीवन तो मात्र इसका एक अंग है।
साक्षरता से आपके सामाजिक व्यवहार में परिवर्तन नहीं आता परंतु शिक्षा से आपके जीवन में मधुरता आती है, आपके व्यवहार में कुशलता आती है और यदि एक शिक्षित व्यक्ति में यह सब नहीं हो तो उसे हम पूर्ण शिक्षित नहीं कह सकते। शिक्षा मनुष्य को केवल परिस्थितियों के साथ समायोजन करना ही नहीं सिखाती अपितु उसमें अनुकूल परिस्थितियों का निर्माण करने की क्षमता का विकास भी करती है। यह व्यक्ति, समाज और राष्ट्र की आवश्यक्ताओं की पूर्ति करती है।
विद्या ददाति विनयं विनयाद् याति पात्रताम् ।
पात्रत्वात् धनमाप्नोति धनात् धर्मं ततः सुखम् ।।
अर्थात:- विद्या विनय (विनम्रता) देती है, विनय से पात्रता (योग्यता) आती है, पात्रता से धन आता है, धन से धर्म होता है, और धर्म से सुख प्राप्त होता है |
कुमारी निधि चौधरी
किशनगज, बिहार
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अच्छी रचना!
ReplyDeleteविजय सिंह
बाउट ही सुंदर ������
ReplyDeleteबेहतरीन तरीके से परिभाषित किया गया है
ReplyDeleteअति सुन्दर
ReplyDeleteQ. शिक्षा और रूढ़िवाद में संबंध स्थापित करें और वर्तमान समय में शिक्षा की भूमिका स्पष्ट करें।
ReplyDeleteAnswer Chahiye !