मजदूर दिवस-मनोज कश्यप - Teachers of Bihar

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Friday, 1 May 2020

मजदूर दिवस-मनोज कश्यप

मजदूर दिवस
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           1 मई पूरे विश्व में मजदूर दिवस के रूप में मनाया जाता है। मजदूरों के द्वारा किया गया संघर्ष, अपने हक की लड़ाई, समानता तथा सहभागिता इत्यादि के लिए किए गए उनके योगदान को श्रमिक दिवस या मजदूर दिवस के रुप में मनाते हैं। यह संघर्ष दो विचारधाराओं का संघर्ष है जिसमें एक अपने अस्तित्व के लिए संघर्ष करता है तो दूसरा अधिकार बचाए रखने के लिए।
          आज मजदूरों की परिभाषा बहुत व्यापक हो गई है। केवल वही मजदूर नहीं है जो मजदूरी करता है वरन् वे सभी मजदूर हैं जो अपने श्रम के बदले वेतन पाते हैं। चाहे वह श्रमिकों हो, कर्मचारी हो, अधिकारी हो। इस प्रकार एक देश में कामगारों की बहुत बड़ी संख्या उस देश के आर्थिक सशक्तिकरण की रीढ़ होती है।
          सर्वप्रथम अपने काम के घंटों को 8 घंटा निर्धारित करने की मांग करते हुए 1886 में अमेरिका के शिकागो में श्रमिकों के द्वारा हड़ताल किया गया जहाअँ हिंसा में कई मजदूर मारे गए। इन्हीं मजदूरों की याद में 1889 पेरिस में अंतरराष्ट्रीय समाजवादी संगठनों द्वारा 1 मई को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर उन्हें 1891 से मजदूर दिवस मनाने का निर्णय लिया गया। इस दिन को अंतरराष्ट्रीय छुट्टी रहती है। वहीं भारत में मजदूर दिवस मनाने की शुरूआत 1 मई 1923 को लेबर किसान पार्टी ऑफ हिंदुस्तान के द्वारा मद्रास में किया गया, जो आज तक निरंतर जारी है। भारत में कई मजदूर संगठनों ने श्रमिकों को उनका हक दिलाने हेतु कठिन संघर्ष किया जिसमें अखिल भारतीय ट्रेड यूनियन कांग्रेस, राष्ट्रीय ट्रेड यूनियन कांग्रेस इत्यादि है ।
          किसी देश के आर्थिक सशक्तीकरण के लिए सशक्त औद्योगिक संरचना आवश्यक है तथा औद्योगिक उन्नति के लिए कुशल सक्षम एवं शिक्षित श्रमिक आवश्यक है। श्रमिकों को यह अधिकार अवश्य है कि अपने कार्यों का समुचित पारिश्रमिक प्राप्त करें तथा उद्योगों के उत्पादन में उनकी हिस्से की हिस्सेदारी सुनिश्चित करें साथ ही यह भी आवश्यक है कि उद्योगों एवं अन्य संस्थाओं को कुशलता पूर्वक संचालन में सहयोग भी प्रदान करें क्योंकि उद्योगों तथा अन्य संस्थाओं के कुशल संचालन से ही उनकी आवश्यकता पूरी होती है। इसलिए अपने अधिकारों के साथ-साथ कर्तव्यों का भी निर्वहन आवश्यक है।                   
          श्रमिकों तथा प्रबंधकों के बीच सौहार्दपूर्ण संबंध के विकास को ही फ्रेडरिक ट्रेलर ने 'मानसिक क्रांति' का नाम दिया है।
          आइए हम सब मिलकर एक ऐसे भारत का निर्माण करें जहाँ समस्त शक्ति एवं कुशलता देश के विकास में लगे जिससे कि हमारा देश न केवल विकसित देशों की श्रेणी में अग्रणी बने वरण विश्व के नेतृत्व कर्ता के रूप में सामने आए क्योंकि हमारी पहचान देश से ही है तथा देश की पहचान हमसे है ।
        
                         


                         मनोज कश्यप
                     संकुल समन्वयक, सिमरा
                       फुलवारीशरीफ, पटना

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