राहुल सांकृत्यायन-नीरज कुमार - Teachers of Bihar

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Thursday, 9 April 2020

राहुल सांकृत्यायन-नीरज कुमार

महापंडित राहुल सांकृत्यायन के जयंती पर विशेष
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सैर कर दुनियाँ की गाफिल जिदंगानी फिर कहाँ
औ जिंदगी जो गर रही नौजवानी फिर कहाँ
                 ख़्वाजा मीर दर्द


           विद्वान देश, काल, गोत्र, धर्म, जात, विचारधारा इत्यादि की सीमाओं से परे होते हैं। ऐसे ही देश में एक महान विभूति हुए महापंडित "राहुल सांस्कृत्यायन" "घुमक्कड़" संज्ञा से लबरेज अपने यात्रा से दुनियाँ को कलम और कागजों से जीवंत किया।
          महापंडित राहुल सांकृत्यायन का जन्म 9 अप्रैल 1893 को अपने ननिहाल पंदहा जिला आज़मगढ़, उत्तर प्रदेश में हुआ था। उनके पिता श्री गोवर्धन पाण्डेय, कनैला (आजमगढ़, उत्तर प्रदेश) के निवासी थे, अत: आपका पैतृक गाँव कनैला था। आपके बाल्यकाल का नाम केदारनाथ पाण्डेय था।
          उन्होंने पाठ्य पुस्तक में एक शेर पढ़ा - " सैर कर दुनियाँ की गाफिल जिंदगानी फिर कहाँ , औ जिंदगी जो गर रही नौजवानी फिर कहाँ। " इसके बाद राहुल जी उर्फ केदारनाथ पांडेय उर्फ परसा मठ के महंत बाबा रामोदार दास निकल गए सैर करने। अब वे भला कहाँ रुकने वाले थे। वे राहुल थे और उनका नारा था - चरैवति ! चरैवति ! यानी चलते रहो ! चलते रहो !
          उस जमाने में पढ़ाई के लिए इतने शहरों की यात्रा करने वाले वह विरले व्यक्ति थे। अध्ययन और ज्ञान की पिपासा ने उन्हें एक शोधार्थी और घुमक्कड़ स्वभाव का बना दिया। उन्होंने विश्व के अनेक देशों की यात्रा की और खूब पढ़ा-लिखा। इस घुमक्कड़ी के चलते महापंडित हिंदी, उर्दू, संस्कृत, तमिल, कन्नड़, पाली, अंग्रेजी, जापानी, रूसी, तिब्बती और फ्रांसीसी भाषाओं के अच्छे जानकार हो गए। कहते हैं इनके अतिरिक्त भी उन्हें 20-25 भाषाओं का ज्ञान था। कुछ आलोचकों के मुताबिक महान यायावर- ज्ञानी राहुल सांकृत्यायन 36 भाषाओँ के ज्ञाता थे।
          राहुल जी की हिंदी में लिखी किताब ' मध्य एशिया का इतिहास, ऑक्सफोर्ड यूनीवर्सिटी के कोर्स में पढ़ाई जाती रही। 1947 में मुंबई  ‘हिंदी साहित्य सम्मेलन’ में उन्हें निर्विरोध सभापति चुना गया। 'वोल्गा से गंगा तक' उनकी सबसे महत्वपूर्ण कृति है।
          राहुल सांकृत्यायन का बिहार से गहरा नाता था। उन्हें बिहार के अंग क्षेत्र से गहरा लगाव था। देश की पहली रंगीन हिंदी पत्रिका गंगा के सम्पादन के सिलसिले में उन्होंने भागलपुर के सुल्तानगंज में लंबा समय गुजारा था। उस क्रम में उन्होंने भागलपुर विश्वविद्यालय से पीएचडी की डिग्री प्राप्त की। बिहार में सारण में असहयोग आन्दोलन में वे सक्रिय थे।
          राहुल सांकृत्यायन महान लेखक, इतिहासविद, पुरातत्ववेत्ता, त्रिपिटकाचार्य के साथ-साथ एशियाई नवजागरण के प्रवर्तक-नायक थे
          ऐसे महान विभूति को उनकी जयंती पर शत-शत नमन।


 
✍🏻......नीरज कुमार
 रूपापुर
 पलीगंज
 पटना

10 comments:

  1. बहुत हीं सुन्दर!
    विजय सिंह

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  2. समयानुसार अच्छी व सराहनीय रचना है सर।

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  3. राहुल सांकृत्यायन पर तथ्यपरक जानकारी के लिए एवं अच्छी लेखन शैली के लिए बहुत-बहुत धन्यवाद एवं शुभकामनाएं.....

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  4. साहित्य के क्षेत्र में दिए गए योगदान को याद रखने की कड़ी में अत्यंत महत्वपूर्ण लेख

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  5. धन्यवाद मैम��

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