लाॅकडाउन में असल जिंदगी के मायने-शफ़क़ फातमा - Teachers of Bihar

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Tuesday, 5 May 2020

लाॅकडाउन में असल जिंदगी के मायने-शफ़क़ फातमा

लाॅकडाउन में असल जिंदगी के मायने
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          जब से कोरोना जैसी महामारी का आगमन पहले विदेश में फिर अभी भारत मे हुआ है तब से लोग व्याकुल हो गए हैं। मन क्षुब्ध हो बैठा है। सब कुछ एकदम ठहर सा गया है। लोग अपने-अपने घरों में कैद हो गए हैं जैसे कि कोई पशु और पक्षी। हो भी क्यों नहीं, आखिर इस महामारी से बचने का यही तो उपाय कारगर हो रहा है। ईलाज तो बाद में है पहले तो बचाओ ही इसका ईलाज है। अंग्रेज़ी में एक कहावत है- Prevention is better than cure.
यही कहावत आज चरितार्थ हो रहा है।
          अभी कुछ दिन पहले की ही बात है, हम सब खुद में कितना व्यस्त थे। ज़िन्दगी की भागदौड़ में इतना खोए हुए थे कि हमें ये भी पता नही था कि ऐसा भी होने वाला है। सब लोग अपने जीवन की गाड़ी इतनी तेजी से दौड़ा रहे थे कि यह ख्याल ही नहीं रहता था कि कुछ चीजों को हम जान-बूझकर पीछे छोड़ देते हैं। इस आधुनिक युग ने जीवन की परिभाषा को बिल्कुल ही बदल डाला है। वक़्त ने भी इसका साथ दिया। पहले जीवन जीने की आवश्यक वस्तुएँ- रोटी, कपड़ा और मकान तक ही लोगों की सोच सीमित थी पर अब यही रोटी- नान, पावरोटी, बाड़ापाव, घी के पराठे में परिवर्तित हो गए हैं। कपड़ा तो ब्रांड में ही भाने लगा है और मकान अब आलीशान बिल्डिंग का रूप ले रहा है। मेरे इस टिप्पणी का यह अर्थ बिल्कुल भी मत निकालियेगा कि यह महज अमीर लोगों के लिए ही मुमकिन है। खैर..............
          वक़्त ज़रा सा निकला, साल 2020 का मार्च के महीने से ही हमे सतर्क किया जाने लगा। पहले लाॅकडाउन 1 को सफल बनाया, अब लाॅकडाउन 2 भी समाप्त हो चुके हैं। देश के विभिन्न राज्यों के कोविड-19 से संक्रमित व्यक्ति की संख्या में कमी नही आई है, तत्पश्चात पूरे भारत वर्ष में लाॅकडाउन 3 की भी घोषणा 17 मई तक हो गयी। इन सब बातों का यह असर हुआ है कि अब हमारे अंदर मानव सेवा की भावना जग गई। विदेशों में खास कर इटली, अमेरिका में कोरोना महामारी से पीड़ित की मृत्यु ने हमे यह सोचने पर मजबूर कर दिया कि आखिर हम किस प्रकार ज़िंदा रह सकते हैं। इस तरह मौत की कामना किसी ने भी नहीं की होगी कि संक्रमण के फैलने के वजह से मृतक के परिवार वाले उसके पास होना तो दूर, उसे सही से देख भी नहीं सकते।
          रोज़ ही नए-नए अविष्कार हो रहे हैं। अंतरिक्ष में उपग्रह भेजे जा रहे हैं पर इन सबका अभी के इस महामारी पर कोई असर नही हो रहा। अभी तो केवल जीवन की ही कल्पना कर लें वही काफी है। पहले हम इतने व्यस्त थे कि खुद के अंदर झाँकने का मौका तक नहीं था। आज हम अपने साथ अपने परिवार और आस- पास का भी ख्याल रख रहे हैं। जीवन में हम जिस लक्ष्य प्राप्ति की योजना बना रहे थे उन बातों को अपने प्रिय से कहते नही थक रहे। वाक़ई में इस बुरे वक्त ने हमे असल जिंदगी से मिलवाया है। अब परिवार और रिश्तेदारों का ख्याल दिल से होने लगा है। जो भी ज़रूरतें हैं बिना हिचकिचाहट के पूरे करने को आगे आ रहे हैं। वर्तमान में महँगी गाड़ी, टेलीविज़न, कूलर, ए. सी. के बिना भी जीवन संभव हो रहा है। इस विषम परिस्थिति में ही "सब का साथ, सब का विकास" जैसे नारे का चित्रण सही ढंग से हो रहा है।
          जिस प्रकृति का हम अब तक विनाश करते आ रहे थे, इस लाॅकडाउन के कारण इसे भी कुछ राहत मिली है। प्रदूषण का स्तर कम होने लगा है। नदी-तालाब के पानी साफ हो गए हैं, यहाँ तक कि ओज़ोन छिद्र भी पहले से कम हो गया है। सच....यही वक़्त है कि हम प्रकृति के एहसान का बदला चुका सकते हैं। विभिन्न समाचार पत्रों के माध्यम से हम रोज़ ये जान पा रहे हैं कि बहुत से मज़दूर, पर्यटक, सगे संबंधी इस लाॅकडाउन की वजह से अपने देश से बाहर, अपने राज्य से बाहर, शहर से दूर रहने को मजबूर हैं। इन्हें भी किसी न किसी प्रकार से मदद पहुँचाई जा रही है। इनके खाने-पीने का प्रबंध हम जैसे लोग ही आगे आकर कर रहे हैं। 
          यह भी ज़िन्दगी का एक हिस्सा ही है जिसकी कल्पना शायद किसी ने नहीं की होगी। हम हर रोज़ सुबह उठकर खुद को इस वायरस से सुरक्षित पाते हैं तो ऊपर वाले का आभार प्रकट करते हैं। हर रोज़ एक नई जिंदगी की सुबह देने के लिए उनका शुक्रिया अदा करते नहीं थकते। विलासपूर्ण जीवन की इच्छा रखने वाले हम इंसान अब जितना है उतने में ही खुशियाँ तलाश कर रहे है। हाँ..... भविष्य की चिंता भी हो रही है मगर अब भागम-भाग नहीं कर रहे। इस दौरान प्रकृति को भी हमने अपनाना शुरू कर दिया है। अब एहसास होता है कि जो इस पूरे ब्रह्मांड को संभाले हुए है वही इस सृष्टि का रचना करने वाला है। हम चाहे कितना भी बड़े स्कूल, कॉलेज, विश्विद्यालयों में पढ़कर ज्ञान प्राप्त कर लें मगर उसके पास जो संसार को चलाने का गणित और मैनेजमेंट है वो हमें  किसी भी संस्थान में पढ़ने को नहीं मिल पाएगा।
          अंत में एक ही बात निकल कर आती है कि इस बुरे दौर में जहाँ सब इस महामारी के खत्म होने की प्राथना कर रहे हैं वहीं हम सब असल जिंदगी के मायने को भी अच्छे से समझ पा रहे है। आशा है कि जल्द ही इस आपदा से मुक्ति मिल जाएगी, जीवन फिर से सामान्य हो जायेगा । 
       घर पर रहें, सुरक्षित रहें।
       लाॅकडाउन 3 का पालन करें।




शफ़क़ फातमा
प्राथमिक विद्यालय अहमदपुर
प्रखण्ड- रफीगंज
ज़िला- औरंगाबाद 
 

10 comments:

  1. Dear team member,
    It's शफ़क़ फातमा not लशफ़क़ फातमा,

    Plz correct the name of possible.
    Thanks alot

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    1. Sorry for this but it was लशफक instead of शफक in your article sent by you. But no problem it is corrected in the article and can be sent a corrected copy of your poster and the link related to the article if our team has decided to do the same.

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  2. बेहतरीन लिखा है आपने ।

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  3. बहुत हीं सुन्दर आलेख!

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  4. आपका आलेख जीवन की असलियत से लोगो को रूबरू करा रहा है।आगे भी इस तरह का article post करती रहें ।धन्यवाद ।

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  5. Very nice and appreciable. article. really it indicates the real and true life.thanks a lot.

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  6. आप सभी पाठकों का शुक्रिया।

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  7. बहुत सुंदर लेख

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