मूल्यांकन की आवश्यकता ही क्यों-अमरेन्द्र कुमार - Teachers of Bihar

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Wednesday, 6 May 2020

मूल्यांकन की आवश्यकता ही क्यों-अमरेन्द्र कुमार

मूल्यांकन की आवश्यकता ही क्यों 
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          यदि शिक्षा में मूल्यांकन के प्रचलित तरीके को बदलना है तो कुछ बुनियादी सवालों के बारे में स्पष्टता लाने की आवश्यकता होगी। उदाहरण के लिए, मूल्यांकन की आवश्यकता ही क्या है? अर्थात यदि कक्षा में सीखना-सिखाना चल रहा है और यह माना जाता है कि बच्चे स्वभाविक रूप से सीखते ही हैं तो फिर मूल्यांकन की जरूरत ही क्या है? मूल्यांकन किसके लिए किया जा रहा है? यह शिक्षार्थी के लिए है, स्कूल के लिए है या फिर संपूर्ण शिक्षा व्यवस्था के लिए? एक और बड़ा सवाल कि मूल्यांकन अपने आपमें कोई स्वतंत्र गतिविधि है या इसका शिक्षा के उद्देश्यों के साथ किसी तरह का संबंध होता है? मूल्यांकन के तरीके क्या हो? अर्थात क्या परीक्षा ही मूल्यांकन का एकमात्रा तरीका हो सकती है या फिर अन्य तरीके भी हो सकते हैं?
          परंपरा से प्राप्त परीक्षा प्रणाली के प्रति शिक्षकों, अधिकारियों और प्रबंधकों में सामान्यतया इतना भाव दिखाई देता है कि वे इसके बारे में आलोचनात्मक तरीके से सोचने की जरूरत ही नहीं समझते। वे सामाजिक-ऐतिहासिक कारणों को भूल कर शिक्षा की सामयिक समझ को दरकिनार करते हुए बिना किसी समस्या के सहज रूप से मानते हैं कि परीक्षा मेरिट के आधार पर योग्य शिक्षार्थियों को छाँटने का काम करती है और इसमें गलत क्या है। अतः इन सवालों को बार-बार उठाने की आवश्यकता है। किन्हीं लक्ष्यों को पाने के लिए इंसान द्वारा की जा रही गतिविधियों में यह जानने की आवश्यकता होती है कि वे लक्ष्य पूरे हो रहे हैं या नहीं जिनके लिए वह गतिविधि की जा रही है। यानी उस गतिविधि से अपेक्षित मकसद पूरा हो रहा है अथवा नहीं।
          मानव समाज में शिक्षा को कुछ निश्चित लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिए संचालित किया जाता है। इस मायने में शिक्षा एक सोद्देश्य गतिविधि है। यदि शिक्षा के लक्ष्य निर्धारित हैं तो यह देखने की आवश्यकता होगी कि क्या शिक्षा के नाम पर रोजमर्रा में जो भी प्रक्रियाएँ चल रही हैं, क्या वे अन्ततः उन लक्ष्यों को प्राप्त करने या उस दिशा में आगे बढ़ने में मददगार हैं। अतः इसका पता करना अनिवार्य हो जाता है। मूल्यांकन यह समझने में मदद कर सकता है कि अपेक्षित लक्ष्यों की तुलना में वास्तविक स्थिति क्या है। वास्तविक स्थिति जानने के बाद शिक्षार्थी को फीडबैक देना तथा सीखने की प्रक्रिया में उसे आ रही समस्याओं को चिन्हित करके दूर करने के काम आ सकता है। इस मकसद से किया गया मूल्यांकन शिक्षार्थी की सीखने में मदद करने के अभिप्राय से किया जाता है। यह फीडबैक न सिर्फ शिक्षार्थी के लिए बल्कि व्यवस्था के लिए भी देना संभव हो सकता है।
          यदि मूल्यांकन को साल के अंत में पास-फेल के बजाय शिक्षार्थी को सीखने में मदद कर पाने के उपरकण के रूप में देखेंगे तो इसकी शैक्षिक उपादेयता ज्यादा सार्थक रूप से स्थापित होगी है। इसलिए राष्ट्रीय पाठ्यचर्या 2005 कहती है, ‘‘एक अच्छी मूल्यांकन और परीक्षा पद्धति सीखने की प्रक्रिया का अभिन्न अंग बन सकती है जिसमें शिक्षार्थी और शिक्षा तंत्र दोनों को ही विवेचनात्मक और आलोचनात्मक फीडबैक का फायदा हो सकता है।’’
          परीक्षा प्रणाली के बरक्स सतत एवं व्यापक मूल्यांकन से यह अपेक्षा की जाती है कि वह शिक्षार्थी की समझ और व्यक्तित्व के उन समस्त पहलुओं को समाहित करे जिनका दावा कम से कम शिक्षा के उद्देश्यों में किया गया है। परीक्षा पद्धति के प्रति असंतोष के पीछे भी यही वजह है कि कागज, पेंसिल जांच के माध्यम से शिक्षार्थी के कुछ निश्चित पहलुओं का एक हद तक ही पता लगाया जा सकता है जबकि शिक्षा के उद्देश्य कहीं ज्यादा व्यापक होते हैं। दूसरे, परीक्षा के प्रचलित तरीके में प्राप्त अंकों के आधार पर व्यक्ति के संपूर्ण व्यक्तित्व के बारे में दावा पेश किया जाता है और वही है जो कि उसके जीवन में आगे के अवसरों के दरवाजे खोलता है या उन्हें हमेशा के लिए बंद कर देता है।
          सतत एवं व्यापक मूल्यांकन के विचार को शिक्षा में लागू कर पाने में लम्बा वक्त लगा है। अतः सतत और व्यापक मूल्यांकन पर सम्यक समझ विकसित कर इसे धरातल पर लागू करने में सभी शिक्षाकर्मियों को अपनी भूमिका का निर्वहन करना चाहिए। तभी हम बच्चों के साथ न्याय कर पाएँगे। अन्यथा फिर से एक बार असफल होंगे और निराशा हमारे हाथों में होगी।



अमरेंद्र  कुमार 
प्राथमिक विद्यालय भुइया टोला, दरिहट 
जिला- रोहतास

5 comments:

  1. वाह!सम्यक ब्लॉग ।

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  2. सराहनीय विचार, NCF 2005 की मुख्य बातों को बहुत अच्छे से लिखा है आपने।

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  3. बगैर सतत और व्यापक मूल्यांकन पर अच्छी तरह समझ विकसित किए आगे का सोपान मजबूत नहीं बनाया जा सकता है और न ही सफलता की कोई कल्पना ही की जा सकती है। N.C.F संबंधी जानकारी अच्छी है। आलेख भी सराहनीय है।

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  4. बहुत-बहुत उपयोगी!

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